वो महाराजा जो औरतों से भागता था दूर लेकिन उसकी पार्टियां होती थीं खूब रंगीन

1 week ago

हाइलाइट्स

महाराजा जयसिंह को खास मौकों पर महल में बड़ी पार्टियां देने का शौक था
इन पार्टियों में सुरा-सुंदरी के साथ होता था आमोद प्रमोद, रंगीनियों के किस्से होते थे
दरबारियों ने कैसे फंसाया तब मुसलमान मंत्री को, उसने तब क्या किया

, अलवर में एक राजा हुए जिनका नाम था जयसिंह लेकिन उनका पूरा नाम लिखा जाता था माननीय कर्नल. एचएच राज राजेश्वर भारत धर्म प्रभाकर महाराजा श्री सवाई सर जय सिंहजी वीरेंद्र शिरोमणि देव बहादुर जीसीएसआई जीसीआईई, जो ऊंचे और बड़े पवित्र राजवंश में पैदा हुए थे. ये वही महाराजा थे जिन्होंने 06 रोल्स रॉयस कारें खरीदीं और उन्हें कूड़ागाड़ी में बदल दिया था. बाद में जब उनकी मृत्यु हुई तो उत्तराधिकारी को लेकर विवाद छिड़ गया. इन महाराजा के बारे में कहा गया कि उन्हें औरतों की शोहबत अच्छी नहीं लगती थी. हालांकि उनकी पार्टियां बहुत चर्चित होती थीं.

दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब महाराजा में इसके बारे में विस्तार से लिखा है. जिसमें महाराजा की उन पार्टियों का जिक्र किया है, जिसमें खूब रंगरेलियां होती हैं. जय सिंह ने मई 1933 तक 29 वर्षों से अधिक समय तक शासन किया, जब अंग्रेजों ने उन्हें निर्वासन के लिए मजबूर किया. वह भारत और यूरोप में कई अन्य स्थानों पर रहे. 1937 में 55 वर्ष की आयु से पहले पेरिस में उनकी मृत्यु हो गई.

राजा बहुत फिजूलखर्च थे
उसकी फिजूलखर्ची के कारण राज्य भारी कर्जदार हो गया. ऋण चुकाने के लिए उन्हें किसानों पर अनुचित रूप से भारी कर लगाना पड़ा. इसके कारण समय-समय पर कृषि विद्रोह होते रहे.

भगवान राम जैसी वेशभूषा अपना ली थी
हजारों साल पहले भगवान रामचंद्र की जो वेषभूषा थी, वही महाराज ने भी अपना ली. महाराजा को औरतों से बिल्कुल लगाव नहीं था. हालांकि उनकी चार शादियां हुईं थीं. लेकिन उनको मर्दों की शोहबत ज्यादा पसंद थी. अपने मंत्रियों, प्राइवेट सेक्रेट्री और सहायकों का चुनाव वह बहुत सावधानी से करते थे. उनके दरबार में कई नामवर अफसर थे, जो आजादी के बाद और बड़े पदों पर आसीन हुए.

महाराजा जयसिंह अलवर के इसी महल में देते थे शानदार चर्चित पार्टियां. हालांकि अपनी फिजूलखर्ची से उन्होंने राज्य के खजाने को खाली कर दिया था. (विकी कामंस)

महल की पार्टियों में होती थीं रंगरेलियां
महाराजा को बेशक औरतों की शोहबत ज्यादा पसंद नहीं थी लेकिन वो महल में अक्सर जश्न करते थे और इसमें काफी रंगरेलियां मनाई जाती थीं. इसमें उनकी महारानियां, चहेतियां, उनके खास मंत्री लोग और निजी अफसरान शरीक हुआ करते थे. इन पार्टियों की आड़ में काफी मस्ती भी होती थी. मौका मिलने पर औरतें और मर्द लुत्फ उठाने से नहीं चूकते थे.

सुरा-सुंदरी के आमोद- प्रमोद के दौर चलते 
ऐसी रंगरेलियों में महाराज बराबर मौजूद रहते और उनको इस बात पर कोई एतराज नहीं होता था कि उनके सामने उनके अफसरान महारानियों और महल की औरतों के साथ बेतकल्लुफी से पेश आएं. शराब के दौर चला करते और अफसरान अपनी मनपसंद महिलाओं के साथ आमोद-प्रमोद करते. सारी रात ये दौर चलता रहता.

एक मंत्री के रनिवास की रानियों और महिलाओं से संबंध बन गए
इसी में एक थे वित्त मंत्री गजन्फर अली खां, वो बाद में पाकिस्तान के हाईकमिश्नर की हैसियत से भारत में तैनात भी हुए. महाराजा उन पर इतना विश्वास करने लगे थे कि उन्हें रनिवास में आने – जाने की छूट थी. वह रंगीन मिजाज थे और आकर्षक व्यक्तित्व वाले. लिहाजा ये चर्चाएं आम थीं कि रनिवास की रानियों समेत कई स्त्रियों से उनके अंतरंग संबंध बन गए हैं.

सभी अफसरों को बीवियों-बेटियों के साथ पार्टी में आना होता था
महाराजा इन पार्टियों में अंग्रेज अफसरों को छोड़कर अपने सभी अफसरों और मंत्रियों की बीवियों और बेटियों को बुलाना अनिवार्य रखते थे. जिससे उनको लगता था कि जब सभी एक रंग में रंग जाएंगे तो कोई किसी का फंडाफोड़ क्या करेगा.

दरबारी इस मंत्री से कुपित होने लगे
महाराजा की पार्टियों में अन्य महिलाएं भी उनके इर्दगिर्द दिखाई देती थीं. इसे देखकर राज्य के दूसरे मंत्री और अफसर कुपित हो गए. गजन्फर अली खां ने महाराजा से कह रखा था कि उनका परिवार लाहौर में रहता है और सच्चा मुसलमान होने के नाते उनकी औरतें पर्दे में रहती हैं. उन्हें दूसरे मर्दों के सामने चेहरा दिखाने की आजादी नहीं है.

फिर कैसे उस मंत्री को फंसाने की योजना बनी
कई साल बीतने के बाद नाराज अफसरों ने मीटिंग की कि गजन्फर अली को कैसे घेरा जाए, क्योंकि वो खुलेआम पार्टियों की आड़ में रनिवास से लेकर सभी की महिलाओं के साथ नजदीकी हासिल करने में कामयाब रहता था. एक रोज जब महाराजा खुश मूड लग रहे थे, तब सबने अपनी बात रखी और बताया कि गजन्फर क्या कर रहा है और जानबूझकर वह अपने घर की औरतों को इससे दूर रखता है. उसके परिवार की महिलाओं को भी बुलाया जाए.

दरबारियों और अफसरों ने इतराज जाहिर किया कि खान हमारी औरतों से घुलते मिलते हैं और अंतरंग होते हैं लेकिन अपनी घर की औरतों को महल से दूर रखते हैं. महाराजा ने बात सुनी. पहले तो इससे चिढ़े लेकिन फिर शांत हो गए. उन्हें भी लगा कि ये लोग जो कह रहे हैं, वो ठीक ही है.

महाराजा ने खान को हुक्म दिया अब बीवी को लेकर पार्टी में आएं
अब महाराना ने खान को हुक्म दिया कि अगली बार जब महल में जलसा हो तो वह अपनी बीवी को उसमें जरूर लाएं. बहाना बनाया. लेकिन महाराजा ने एक नहीं सुनी. उन्हें राजी होना पड़ा कि एक महीने बाद जब महल में दीवाली का जलसा होगा तो वह अपनी बेगम को लेकर आएंगे. उन्होंने कुछ दिन की मोहलत मांगी क्योंकि उनकी बेगम लाहौर में रहती थीं. महाराजा से इंतजाम करने के लिए कुछ पैसे मांगे.

तब उन्होंने दिल्ली में तवायफ से मुताह निकाह किया 
खान दिल्ली आए. परेशान से. उन्होंने यहां अपने करीबी दोस्तों को बताया कि उनकी बेगम कभी अलवर महाराज के जलसे में शामिल होने को तैयार नहीं होंगी. अगर वह बेगम को नहीं ले गए तो महाराजा उन्हें गिरफ्तार कराकर जेल में डाल देंगे. तब दोस्तों ने समझाया कि वह किसी खूबसूरत तवायफ से मुताह विवाह करके उन्हें बेगम बनाकर अलवर में पेश कर दें.

खान को ये आइडिया पसंद आ गया. तुरंत दिल्ली के कई कोठों को उन्होंने छाना. एक जगह एक निहायत हसीन और होशियार लड़की मिली. उससे अनुमति लेकर उससे मुताह शादी की. मुताह की शर्तें तय की. फिर उसे कुछ दिनों तक दिल्ली के एक मकान में रखकर अलवर महल के जलसों से संबंधित ट्रेनिंग दी. फिर ट्रेन से अलवर पहुंच गए.

हसीन बेगम के साथ अलवर पहुंचे
महाराजा भी खुश कि खान उनकी उम्मीदों पर खरे उतरे. खान नौकर-चाकरों के साथ अलवर पहुंचे. महाराजा ने स्टेशन पर जाकर खान और उनकी बेगम की अगवानी की. खान ने बेगम को कोठी में सेट किया और अब दरबार में बेगम की खूबसूरती के चर्चे होने लगे. वहां दरबारी और अफसर ये सोच कर खुश हो रहे थे कि अब ऊंट आया है पहाड़ के नीचे.

बेगम की शोहबत से सभी खुश हो गए
उन्होंने सोच रखा था कि खान जिस तरह रनिवास की रानियों और महिलाओं के साथ साथ उनकी औरतों से अंतरंग होते थे और कई के साथ रंगीनियां मना चुके थे, वैसा ही अब उनकी बेगम के साथ किया जाएगा. जलसे में खान नई बेगम के साथ पहुंचे. ट्रेनिंग तो उन्हें मिल ही चुकी थी. खान ने भी पार्टी में पूरे मजे लूटे तो बेगम ने भी दरबारी और अफसरों को खुश कर दिया. सभी बेगम की तारीफों के पुल बांधने लगे.

और फिर महाराजा को भेजा ये तार
इसके बाद बेगम वापस लौट गईं. खान ने उन्हें छोड़़कर पहले तो बेगम की गंभीर बीमारी का तार भेजा और फिर कुछ दिनों बाद दूसरा तार भेजा कि बेगम का इंतकाल हो गया. महाराजा और दरबारियों ने जब तार पढ़ा तो उन्हें बहुत अफसोस हुआ. उसके बाद पार्टियों में खान जब तक महाराजा की रियासत में रहे तब तक उसी तरह से आनंद लूटते रहे.

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Tags: Alwar News, Rajasthan Royals, Royal Traditions, Royal wedding

FIRST PUBLISHED :

April 24, 2024, 10:52 IST

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