Last Updated:December 18, 2025, 17:03 IST
शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की संसदीय समिति की रिपोर्ट पार्लियामेंट में पेश कर दी गई है. इसमें साफ साफ कहा गया कि बांग्लादेश के हालात 1971 के बाद से सबसे ज्यादा खराब हैं. वह दूसरा पाकिस्तान बनने की ओर है. इसमें चीन पाकिस्तान की साजिश और जेनरेशनल डिस्कनेक्ट पर चिंता जताई गई.
बांग्लादेश पर शशि थरूर की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट संसद में पेश.नई दिल्ली: पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में तख्तापलट और शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद वहां जो हालात बने हैं, वे भारत के लिए सामान्य कूटनीतिक सिरदर्द नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक संकट हैं. शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की संसदीय समिति ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में यह डरावनी तस्वीर दिखाई है. रिपोर्ट साफ इशारा कर रही कि ढाका में सत्ता परिवर्तन केवल एक सरकार का बदलना नहीं है, बल्कि यह भारत के प्रभाव को जड़ से उखाड़ने की एक गहरी साजिश का हिस्सा हो सकता है. भारत 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद आज बांग्लादेश में अपनी सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती का सामना कर रहा है. यह खतरा सीमाओं पर गोलीबारी का नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के भारत से दूर जाने और चीन-पाकिस्तान की गोद में बैठने का है.
रिपोर्ट में एक गैर-सरकारी विशेषज्ञ की गवाही का हवाला दिया गया है, जिसने 26 जून 2025 को समिति के समक्ष जो कहा, वह भारत के सुरक्षा तंत्र की नींद उड़ाने के लिए काफी है. उसके मुताबिक, भारत 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद से बांग्लादेश में अपनी सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती का सामना कर रहा है. 1971 की चुनौती अस्तित्व से जुड़ी थी- एक मानवीय संकट और एक नए राष्ट्र का जन्म. लेकिन आज का खतरा अधिक सूक्ष्म है, और संभवतः उससे भी अधिक गंभीर और गहरा है.
जेनरेशनल डिस्कनेक्ट
रिपोर्ट बताती है कि आज का बांग्लादेश वह नहीं है जिसे भारत ने खून पसीने से सींचा था. वहां एक जेनरेशनल डिस्कनेक्ट पैदा हो गया है. 1971 की यादें धुंधली हो चुकी हैं और नई पीढ़ी के दिमाग में राष्ट्रवाद की एक ऐसी परिभाषा गढ़ी जा रही है, जिसमें भारत के लिए जगह कम और शक ज्यादा है. विशेषज्ञों ने समिति को बताया कि अवामी लीग के वर्चस्व का पतन और युवा नेतृत्व वाले उग्र राष्ट्रवाद का उभार, भारत के लिए खतरे की घंटी है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस खालीपन को भरने के लिए इस्लामवादी ताकतें, चीन और पाकिस्तान एक साथ आ गए हैं. यह तिकड़ी भारत के ‘चिकन नेक’ कॉरिडोर के ठीक बगल में एक नया मोर्चा खोल सकती है.
शेख हसीना और पर्सनल फोन का रहस्य
बांग्लादेश में जारी राजनीतिक भूचाल के बीच सबसे बड़ा सवाल शेख हसीना की भारत में मौजूदगी और उनकी बयानबाजी को लेकर है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और वहां के कट्टरपंथी गुट लगातार आरोप लगा रहे हैं कि भारत शेख हसीना को अपनी जमीन से राजनीति करने दे रहा है. इस पर संसदीय समिति की रिपोर्ट में विदेश सचिव के बयान ने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की है, लेकिन यह स्पष्टीकरण कूटनीतिक असमंजस को भी दर्शाता है. विदेश सचिव ने समिति को बताया, शेख हसीना अपना बयान अपने पर्सनल कम्युनिकेशन डिवाइस के माध्यम से दे रही हैं, जिन तक उनकी पहुंच है. भारत सरकार उन्हें भारतीय क्षेत्र से किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि करने के लिए न तो कोई राजनीतिक मंच उपलब्ध कराती है और न ही कोई राजनीतिक स्थान.
भारत का यह स्टैंड साफ करता है कि हम अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होने देंगे, लेकिन साथ ही यह भी बताता है कि तकनीक के इस दौर में किसी नेता को पूरी तरह ‘चुप’ कराना कितना मुश्किल है. भारत ने साफ किया है कि वह अपने क्षेत्र का उपयोग किसी पड़ोसी के खिलाफ साजिश के लिए नहीं करने देता, लेकिन हसीना के निजी बयानों को रोकना सरकार के लिए भी एक चुनौती बना हुआ है.
सरकार को क्यों नहीं लगी भनक?
शशि थरूर की समिति ने विदेश मंत्रालय से सबसे चुभने वाला सवाल पूछा- आखिर इतनी मीडिया रिपोर्ट्स के बावजूद भारत सरकार बांग्लादेश के इस महा-संकट का पूर्वानुमान लगाने में क्यों चूक गई? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत हमेशा से बांग्लादेश की राजनीति पर बारीक नजर रखता आया है. क्या हमारी खुफिया एजेंसियां सो रही थीं?
इसके लिखित जवाब में विदेश मंत्रालय ने बचाव की मुद्रा अपनाते हुए कहा कि सरकार वहां के घटनाक्रमों पर प्राथमिकता के आधार पर नजर रखती है. मंत्रालय ने दलील दी कि 7 जनवरी 2024 को हुए चुनावों में शेख हसीना की अवामी लीग ने 300 में से 224 सीटें जीती थीं, जिससे उनकी पकड़ मजबूत दिख रही थी. हालांकि, मंत्रालय ने यह भी माना कि उस चुनाव में मतदान प्रतिशत केवल 40% था, जो यह इशारा कर रहा था कि जमीन पर सब कुछ ठीक नहीं था.
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Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
December 18, 2025, 17:03 IST

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