संत, साधु, बाबा, अवधूत और औघड़ में क्या अंतर है, कौन है इनमें सबसे रहस्यमयी

3 weeks ago

आप रोज संतों के बारे में सुनते हैं. आध्यात्मिक बाबाओं का जिक्र होता है, साधु नजर आते हैं, कुछ लोगों को अवधूत कहा जाता है तो रहस्यमयी औघड़ भी हैं. आखिर इनमें अंतर क्या है. ये सभी करते क्या हैं. क्या ये सभी एक ही हैं या अलग. भारत की धार्मिक परंपराओं में वैसे ये सभी शब्द अलग अलग इस्तेमाल होते हैं.

वैसे आपको बता दें कि संत, साधु, बाबा, अवधूत और औघड़ जैसे शब्द भारतीय आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं में रोजाना प्रयोग किए जाते हैं. लेकिन इन सभी कुछ ना कुछ अंतर भी है और इनकी भूमिकाएं भी कुछ अलग हैं.

संत क्या होता है

संत वह व्यक्ति है जो आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति, और नैतिकता के उच्च स्तर पर होता है. यह शब्द ‘सत्य’ से निकला है, जो सत्य और पवित्रता का प्रतीक है. संत समाज को नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं. वे अक्सर भक्ति, ज्ञान, या कर्म योग के माध्यम से ईश्वर या सत्य की खोज करते हैं. सादगी से रहते हैं. सबसे बेहतर व्यवहार करते हैं और सब पर दयाभाव रखते हैं.

वे जनता को साधारण भाषा में उपदेश देते हैं, जाति-पांति का विरोध करते हैं और परमात्मा से प्रेम-भक्ति का मार्ग बताते हैं. संत किसी भी संप्रदाय या धर्म से हो सकते हैं, जैसे हिंदू, सिख, या सूफी. यह शब्द आमतौर पर सम्मान और पवित्रता के लिए प्रयोग होता है. संत ज़्यादातर गृहस्थ भी हो सकते हैं. जरूरी नहीं कि वे संन्यासी हों. कबीर, तुलसीदास, मीरा, या गुरु नानक जैसे व्यक्ति संत कहलाते थे.

साधु क्या होता है

साधु वह व्यक्ति है जो सांसारिक जीवन त्यागकर आध्यात्मिक साधना में लीन होता है. यह शब्द ‘साध्’ आया है, जिसका अर्थ है साधना करना या लक्ष्य प्राप्त करना.

साधु संन्यासी जीवन जीते हैं. गृहस्थ जीवन, संपत्ति, और सांसारिक सुखों का त्याग करते हैं. तप, ध्यान, और योग के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ते हैं. वैष्णव, शैव, शाक्त, नाथ, जैन, बौद्ध — सब परंपराओं में साधु होते हैं. साधु मुख्य रूप से हिंदू धर्म से जुड़े होते हैं, लेकिन जैन और बौद्ध परंपराओं में भी साधु होते हैं. वे किसी गुरु या संप्रदाय से दीक्षा लेकर साधना करते हैं.
साधू सांसारिक बंधनों का त्याग कर देते हैं. साधना उनके जीवन का उद्देश्य हो जाता है.

बाबा क्या होते हैं

‘बाबा’ एक सम्मानजनक संबोधन है, जो प्रायः वृद्ध, ज्ञानी, या आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए प्रयोग होता है. यह शब्द ‘पिता’ या ‘पूजनीय’ के अर्थ में भी लिया जाता है.

बाबा का प्रयोग संत, साधु, या किसी आध्यात्मिक गुरु के लिए हो सकता है. कुछ बाबा सामाजिक सुधार या भक्ति आंदोलनों से भी जुड़े होते हैं. जैसे “शिरडी साईं बाबा”, “नीम करौली बाबा”, “गोरखनाथ बाबा”. बाबा शब्द में अक्सर करुणा और चमत्कारिक छवि जुड़ जाती है. बाबा का प्रयोग हिंदू, सिख, और सूफी परंपराओं में आम है. यह शब्द अधिक लचीला है. जरूरी नहीं कि बाबा संन्यासी ही हों; वे गृहस्थ भी हो सकते हैं.

अवधूत किन्हें कहते हैं

अवधूत वह साधक है जो सांसारिक बंधनों और सामाजिक नियमों से पूरी तरह मुक्त हो चुका है. यह शब्द ‘अ’ (नहीं) और ‘धूत’ (हटाया हुआ) से मिलकर बना है, अर्थात् जो माया और अहंकार से मुक्त है.

अवधूत उच्च आध्यात्मिक अवस्था में होते हैं. अक्सर सामान्य सामाजिक नियमों का पालन नहीं करते. उनकी साधना गैर-पारंपरिक हो सकती है और वे अक्सर तंत्र, योग, या अद्वैत वेदांत से जुड़े होते हैं. दत्तात्रेय, गजानन महाराज. नीम करौली बाबा को भी अवधूत कहा जाता है. अवधूत नाथ, सिद्ध, या तांत्रिक परंपराओं से संबंधित होते हैं. वे समाज से अलग-थलग रह सकते हैं. उनकी जीवनशैली सामान्य लोगों के लिए समझना कठिन हो सकता है.

इसका मतलब “अव + धूत” भी कहा जाता है यानी जिसने सब मलिनताओं अहंकार, वासना, सामाजिक बंधनों को झाड़ दिया.यह शब्द खासकर नाथ-संप्रदाय और तंत्र परंपरा में प्रचलित है. बेशक अवधूत नियम-कानून से परे दिखते हैं. वे पागल या अजीब लग सकते हैं, लेकिन उनकी चेतना बहुत ऊंची मानी जाती है.

औघड़ क्या इन सबसे अलग होते हैं

औघड़ वह साधक है जो पूर्ण रूप से सांसारिक नियमों और सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर साधना करता है. यह शब्द अक्सर अघोर पंथ से जुड़ा है, जो तंत्र और शिव भक्ति पर आधारित है.

औघड़ साधक अक्सर समाज द्वारा अस्वीकार्य या अशुद्ध मानी जाने वाली चीजों जैसे श्मशान, मल-मूत्र, या मांस के साथ साधना करते हैं ताकि द्वैत भाव को समाप्त कर सकें. उनकी साधना रहस्यमयी और गैर-पारंपरिक होती है. भारत में अघोर परंपरा के संस्थापक किनाराम बाबा को इस श्रेणी में सबसे बड़ा औघड़ माना जाता है.

वो मुख्य रूप से अघोर पंथ या तांत्रिक परंपराओं से जुड़े होते हैं। वे सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हैं. सत्य की खोज में असामान्य मार्ग अपनाते हैं.

इसका मतलब “अघोर” से निकला है, जो हर भय, घृणा और सामाजिक वर्जनाओं से परे हो. औघड़ प्रायः अघोरी साधना या नाथ परंपरा से जुड़े होते हैं.

इन सभी में क्या है मुख्य अंतर

– संत समाज को प्रेरित करते हैं और भक्ति-ज्ञान पर जोर देते हैं. सादगी वाली जिंदगी जीते हैं.
– साधु संन्यासी जीवन जीते हैं और साधना पर केंद्रित होते हैं. मोहमाया से दूर रहते हैं.
– बाबा एक व्यापक और स्नेहपूर्ण संबोधन है, जो संत या साधु दोनों के लिए हो सकता है.
– अवधूत और औघड़ उच्च आध्यात्मिक अवस्था के साधक हैं, जो सामाजिक नियमों से परे रहते हैं, लेकिन औघड़ विशेष रूप से अघोर या तांत्रिक परंपराओं से जुड़े होते हैं.

इनमें कौन होता है सबसे रहस्यमयी

भारतीय परंपरा में रहस्य उस साधु को माना जाता है, जिसका आचरण सामान्य सामाजिक ढांचे से मेल न खाता हो और जो अपनी साधना के कारण अलौकिक या अद्भुत लगने लगे.

– संत सरल और स्पष्ट होते हैं. रहस्यमयी नहीं होते

– साधु तपस्वी जीवन जीते हैं, जिनके नियम समझे जा सकते हैं. रहस्यमयी नहीं होते.

– बाबा लोकप्रिय. लोग उन्हें तमाम कहानियों और रहस्यों से जोड़ देते हैं, जैसे साईं बाबा).

–  अवधूत बहुत रहस्यमयी होते हैं. उनका आचरण सामाजिक ढांचे से परे होता है – न कपड़ों की परवाह, न खानपान की, कभी अजीब-सी बातें, कभी मौन. वो “दिव्य पागलपन” की तरह दिखते हैं.

– औघड़ सबसे ज्यादा रहस्यमयी माने जाते हैं, क्योंकि वे श्मशान, शव-साधना, भस्म-लेपन, शराब या मांस जैसी चीजों को भी साधना में शामिल करते हैं. साधारण लोगों को यह डरावना या गूढ़ लगता है.

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

Read Full Article at Source