'संसद कानून बनाती है, जज एक याचिका पर रोक देता है', न्यायपालिका पर बिफरे धनखड़

1 day ago

Last Updated:April 17, 2025, 17:39 IST

VP Jagdeep Dhankhar News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका से तीखे सवाल किए हैं. धनखड़ ने पूछा कि 'बेसिक स्ट्रक्चर की दुहाई देने वालों ने 1975 की इमरजेंसी क्यों भुला दी?' उन्होंने इलाहाबाद HC के जस्टिस य...और पढ़ें

'संसद कानून बनाती है, जज एक याचिका पर रोक देता है', न्यायपालिका पर बिफरे धनखड़

'न्यायपालिका नहीं है कानून से ऊपर!' धनखड़ बोले- जांच से भागना संविधान का अपमान

हाइलाइट्स

अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है: VP'हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें''संविधान ने केवल माननीय राष्ट्रपति और माननीय राज्यपालों को अभियोजन से छूट दी'

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक कार्यक्रम में ऐसी बात कह दी, जिसे सुनकर लोकतंत्र और संविधान की बात करने वाले कई लोग असहज हो सकते हैं. लेकिन उन्होंने जो सवाल उठाए, वो सिर्फ एक न्यायिक बहस नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय आत्ममंथन की मांग है. धनखड़ ने यह भी कहा कि अब Article 142 एक ऐसा ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ बन गया है जो लोकतंत्र को 24×7 धमकाता रहता है. उन्होंने पूछा, ‘न्यायालय अगर राष्ट्रपति को निर्देश देने लगे कि इतने समय में फैसला लो, वरना वो कानून बन जाएगा, तो क्या ये संविधान की मर्यादा का उल्लंघन नहीं है?’

उन्होंने ‘सेकंड जजेस केस’ की व्याख्या पर भी सवाल उठाए. ‘सलाह-मशविरा’ का अर्थ ‘अनुमोदन’ कैसे हो गया? संविधान में दोनों शब्द अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल हुए हैं, तो फिर अदालत ने इन्हें समान क्यों मान लिया? क्या ये संविधान की व्याख्या है या उसका पुनर्लेखन?

‘जजों पर कार्रवाई क्यों नहीं?’

राजधानी दिल्ली में 14-15 मार्च की रात एक हाईकोर्ट जज के घर जो कुछ हुआ, उस पर एक हफ्ते तक चुप्पी क्यों रही? क्या ये देरी सिर्फ संयोग थी या एक सोची-समझी रणनीति? धनखड़ कहते हैं, ‘अगर ये घटना किसी आम नागरिक के घर होती तो एफआईआर दर्ज हो जाती, जांच शुरू हो जाती, सबूत सुरक्षित रखे जाते. लेकिन जब बात एक न्यायाधीश की होती है, तब नियम बदल जाते हैं.’ संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को अभियोजन से छूट देता है, फिर न्यायपालिका को ये विशेषाधिकार किसने दिया?

आपातकाल के समय मूल ढांचा कहां था?

धनखड़ इस बात से आहत हैं कि आज न्यायपालिका खुद को जांच के परे समझने लगी है. उनका कहना है कि जांच करना कार्यपालिका का अधिकार है, न्यायपालिका का नहीं. लेकिन एक समिति बनाई गई तीन जजों की. इस समिति को न तो संविधान का आधार मिला है, न संसद ने इसकी स्वीकृति दी है. तो फिर इसका कानूनी अस्तित्व क्या है? इस देश में न्यायिक सुधार इतने आवश्यक है कि संसद अब कोई बड़ा कानून पारित भी कर ले तो उसे कोई एक जज एक याचिका पर रोक देता है.

उपराष्ट्रपति ने 1975 की इमरजेंसी का हवाला देते हुए कहा, ‘आप आज ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ सिद्धांत की पूजा कर रहे हैं, लेकिन क्या 1975 में जब देश पर आपातकाल थोप दिया गया था, तब इस सिद्धांत ने कोई सुरक्षा दी? सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया था कि इमरजेंसी में कोई मौलिक अधिकार नहीं है.’

धनखड़ बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, जांच और पारदर्शिता से ऊपर नहीं हो सकती. ‘अगर किसी संस्था को यह गारंटी मिल जाए कि उस पर कोई जांच नहीं होगी, तो उसका पतन तय है.’ उन्होंने साफ कहा. कार्यपालिका जनता के प्रति जवाबदेह होती है- चुनावों में, संसद में. लेकिन अगर कार्यपालिका का काम न्यायपालिका करने लगे, तो सवाल किससे पूछें? जवाबदेही किसकी हो?

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

April 17, 2025, 17:13 IST

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