रामपुर, प्रतापपुर, जयपुर, रायपुर, नागपुर... आप दुनिया में कहीं भी हो जैसे ही ये नाम पढ़ने या सुनने को मिलेगा तो आपको भारत याद आएगा. लगेगा कि भारत के किसी शहर या गांव की बात हो रही है. सवाल यह है कि क्या सिंगापुर के लिए भी यही तर्क रहेगा? इसका जवाब है - हां. यूपी के भदोही जिले में एक जगह है सिंहपुर. यहां के लोग तो मौज में खुद को सिंगापुर ही कह देते हैं. हालांकि सच्चाई ये है कि सिंगापुर सदियों पहले से भारत से जुड़ा रहा है. उसका नाम सिंगापुर (सिंहपुर) संस्कृत से लिया गया है. क्या आप जानते हैं एक समय ऐसा भी आया था जब कलकत्ता (आज का कोलकाता) से सिंगापुर के फैसले होते थे.
नई दिल्ली में 5वां अटल बिहारी वाजपेयी मेमोरियल लेक्चर देने के लिए आए सिंगापुर के पूर्व डिप्टी प्राइम मिनिस्टर टिओ ची हिन ने कहा कि सिंगापुर या सिंगापुरा नाम संस्कृत से लिया गया है. यह दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के शुरुआती प्रभाव को दिखाता है. उन्होंने आगे कहा कि 1867 तक सिंगापुर का प्रशासन कलकत्ता से संचालित होता था.
Singapore comes from the Sanskrit name सिंहपुर (singhpur) meaning the lion city.
सिंह (Singh) : lion
पुर (pur): city
— Shivan Chanana (@ShivanChanana) December 9, 2025
एक राजकुमार को दिखा शेर यानी सिंह
ऐसे में लोगों की दिलचस्पी सिंगापुर का इतिहास जानने में बढ़ गई है. इसका शुरुआती नाम तेमासेक मिलता है. यह एक प्रमुख समुद्री व्यापारिक सेंटर हुआ करता था. 14वीं सदी में भारतीयों के प्रभाव के चलते इसका नाम 'सिंहपुर' और बाद में सिंगापुर हो गया. सिंहपुर या सिंहपुरा नाम के पीछे एक कथा प्रचलित है. कहते हैं एक द्वीप पर एक राजकुमार आए और उन्होंने ऐसे जानवर को देखा तो सिंह की तरह दिखता था. उस जगह का नाम सिंहपुरा या सिंहपुर रख दिया गया. इसका अर्थ है सिंहों का शहर. मलय लोककथाओं की मानें तो इस राजकुमार के पूर्वज भारतीय ही थे.
चीन को जीतने निकले भारतीय राजा
मलय इतिहास की कथा बताती है कि राजा शूलन एक बार चीन को जीतने निकले और उनका जंगी बेड़ा आज के सिंगापुर कहे जाने वाले एक द्वीप पर रुका था. राजा शूलन को 11वीं सदी के शक्तिशाली दक्षिण भारतीय चोल राजा राजेंद्र प्रथम माना जाता है. उन्होंने सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों पर नौसेना के जरिए हमला किया था. इसी समय का एक पत्थर भी पहली बना हुआ है.
सिंगापुर पत्थर आज भी रहस्य
हां, जब भी भारत और सिंगापुर के रिश्तों की बात होती है सिंगापुर स्टोन का जिक्र जरूर होता है. 1819 में यह पत्थर मिला था. यह सिंगापुर नदी के मुहाने पर आने वाले आगंतुकों का वेलकम करने वाले स्लैब का टुकड़ा है. ज्यादातर हिस्सा नष्ट हो चुका है. केवल तीन टुकड़े बचाए जा सके. 1848 में इसे कलकत्ता की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के म्यूजियम में समझने के लिए भेजा गया था. 1918 में सिंगापुर म्यूजियम ने मांगा तो अंग्रेजों ने केवल एक हिस्सा भेजा. बाकी दो हिस्से के बारे में किसी को कुछ नहीं पता. इस पत्थर पर 50 लाइनें लिखी गई हैं. इसे 10वीं शताब्दी के दक्षिण-पूर्वी भारत के एक राजा से जोड़ा जाता है. अभी इसे पढ़ा या समझा नहीं जा सका है.
दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने इस पर कब्जा कर लिया. युद्ध के बाद अंग्रेजों के कब्जे में वापस आया. बाद में मलेशिया संघ का हिस्सा बना. 1965 में सिंगापुर एक आजाद देश बना.

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