Last Updated:August 14, 2025, 07:56 IST
Supreme Court Hearing: सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर एक ऐसा मामला आया कि हंसी-ठिठोली का माहौल बन गया. दरअसल, राजस्थान हाईकोर्ट के एक क्रिमिनल केस को सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी मामला बताते हुए सुलाझाया. साथ ही इलाहा...और पढ़ें

Supreme Court Judge Pardiwala and Mahadevan: सुप्रीम कोर्ट में एक यूनिक केस से माहौल काफी हल्का हो गया. केस की प्रकृति को देखकर कोर्ट ने कहा कि ये क्रिमिनल केस तो नहीं है, इसे दीवानी केस ही माना जाए. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक दंपति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था. यह मामला एक दीवानी (सिविल) विवाद था जिसे बाद में आपराधिक रंग दे दिया गया था.
इस केस की सुनवाई जस्टिस जेबी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन के साथ पीठ कर रही थी. उन्होंने केस को देखते ही कहा कि वे ‘बहुत नियंत्रण में रहेंगे‘ थे. और वे इस केस पर हंसेंगे. उन्होंने कहा कि हंसी ही एकमात्र मेडिसिन है. दरअसल, वे इस केस को हाल के इलाहाबाद के जज प्रशांत कुमार को सभी क्रिमिनल केस से हटाने वाले मामले से जोड़ कर देख रहे थे. उन्होंने कहा, ‘आज हम अपना आपा नहीं खोएंगे. आज हम पूरी तरह नियंत्रण में हैं. इसका (केस का) इलाज हंसना है.‘ उन्होंने केस फाइल पढ़ते हुए ठहाके लगाकर हंसने लगे.
प्रशांत कुमार मामले में विवाद के बाद नियंत्रण में SC के जज
जस्टिस पारदीवाला की यह प्रतिक्रिया हाल ही में उनके और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार के बीच हुए विवाद से जोड़कर देखा जा सकता है. इसी महीने उन्होंने जज कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने का आदेश दिया था. उनका कहना है कि उन्होंने एक सिविल विवाद को क्रिमिनल केस में लिस्ट कर दिया था. हालांकि, बाद में जस्टिस पारदीवाला ने चीफ जस्टिस बीआर. गवई के अनुरोध पर उन आदेशों को वापस ले लिया था. उन्होंने कहा था कि शर्मिंदा करने का नहीं था.
नया केस क्या था?
सुप्रीम कोर्ट एक दंपति की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने प्लाइवुड की एक खेप के लिए कथित तौर पर बकाया राशि के मामले में अग्रिम जमानत देने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया था. शिकायतकर्ता का कहना है कि ₹3.5 लाख का भुगतान किया जा चुका है, लेकिन शेष ₹12.5 लाख का भुगतान नहीं किया गया है. दंपति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) का केस दर्ज हुआ. इस केस की प्रकृति को देखते हुए साफ पता चलता है कि एकमात्र संभावित आरोप धोखाधड़ी का ही था. पीठ ने आगे कहा कि एक बार बिक्री लेनदेन हो जाने के बाद आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं बनता.
गिरफ्तार करने की मांग
कोर्ट ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा, एकमात्र तर्क यह हो सकता है कि यह एक दीवानी विवाद का मामला है. एक बार बिक्री लेनदेन हो जाने के बाद, आपराधिक विश्वासघात का कोई प्रश्न ही नहीं उठता. कोर्ट की टिप्पणी पर सरकारी वकील ने कहा था कि ₹12.5 लाख की राशि की वसूली नहीं हो सकी क्योंकि अभियुक्तों को गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त था. इस हिस्से को पढ़ते हुए जस्टिस पारदीवाला फिर से हंस पड़े.
रद्द करना सही होगा
जस्टिस पारदीवाला ने आदेश में कहा, ‘इस केस से हमने जो समझा है, वह यह है कि राज्य के अनुसार शेष राशि की वसूली के लिए पुलिस तंत्र की आवश्यकता है. हमें इस मामले में और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है. आमतौर पर, हम हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने से इनकार करने के आदेश को रद्द नहीं करते. लेकिन, यह एक ऐसा आदेश है जिसे हम रद्द करना उचित समझते हैं.‘
दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें
दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 14, 2025, 07:56 IST