हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बंपर जीत हासिल की. बंपर इसलिए कि भाजपा ने 2014 में मिलीं 47 और 2019 की 40 सीटों के मुकाबले इस बार 48 सीटों के साथ परचम लहराया है. सीटें तो भाजपा के साथ कांग्रेस की भी बढ़ी हैं, लेकिन सत्ता की दहलीज तक कांग्रेस नहीं पहुंच पाई, जो इस बार उसके लिए आसान माना जा रहा था. महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे पुराने और पारंपरिक चुनावी मुद्दों के अलावा कांग्रेस के पास अग्निवीर, किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के तात्कालिक मुद्दे भी थे. भाजपा ने इनकी काट निकाली, अपने में बदलाव किया और कामयाबी हासिल कर ली. कांग्रेस की विफलता और भाजपा की कामयाबी के कारण और कारक जानने की अब कोशिशें शुरू हो गई हैं. कांग्रेस मध्य प्रदेश की तरह हाथ आई बाजी हार जाने के कारणों की यकीनन पड़ताल करेगी. भाजपा भी जीत की वजह तलाश कर इस साल होने वाले झारखंड और महाराष्ट्र के चुनावों में अपनी रणनीति बदल सकती है.
भाजपा के लिए संजीवनी बने हैं नतीजे
केंद्र में नरेंद्र मोदी जब से भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के प्रमुख बने, तभी से कांग्रेस की चूलें हिलने लगीं. यह क्रम हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनावों तक जारी रहा. झारखंड और महाराष्ट्र में भी यह सिलसिला बरकरार रहे तो अब किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. वर्ष 2014 से अब तक देश में 62 विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को 47 में हार का सामना करना पड़ा. लगातार दो बार से लोकसभा चुनावों में ऊपर उठती रही भाजपा के लिए इस बार का लोकसभा चुनाव एक बड़ा सेटबैक था. सेटबैक इसलिए कि अकेले बहुमत के आंकड़ों से भाजपा इस बार पिछड़ गई. सहयोगियों के बल पर नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का रिकार्ड भले स्थापित कर लिया, लेकिन भाजपा नेताओं के मन से बहुमत न पाने की टीस बनी हुई थी.
मोदी की रौनक लौटी, भाजपा में उत्साह
चुनाव नतीजे आने के बद नरेंद्र मोदी के चेहरे की रौनक लौट आई है. भाजपा में भी उत्साह की लहर है. जो लोग यह मानने लगे थे कि मोदी का नैजिक अब खत्म हो गया है, उनमें नए उत्साह का संचार हुआ है. पीएम मोदी भी शायद अपनी ताकत देखकर ही अधिक खुश हैं. दरअसल, भाजपा ने 2014 से विधानसभा चुनाव भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ने की परंपरा बना ली है. लगातार मोदी के चेहरे पर लड़े जा रहे विधानसभा चुनावों में कोई सीएम चेहरा भाजपा सामने नहीं रखती. इसीलिए जीत-हार का जिम्मेवार नरेंद्र मोदी को ही माना जाता है. बंगाल, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में भाजपा को शिकस्त मिली तो इसमें मोदी की ही बदनामी हुई. हरियाणा में अगर भाजपा तीसरी बार हार जाती तो निश्चित ही इसका ठीकरा मोदी के सिर ही फूटता. लोकसभा के बाद विधानसभा का चुनाव हारना मोदी की साख में बट्टा की तरह होता.
जम्मू-कश्मीर से हरियाणा तक सफलता
भाजपा को सिर्फ हरियाणा में ही सफलता नहीं मिली है, बल्कि सरकार न बना पाने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में भी भाजपा का परफार्मेंस बेहतर रहा है. जम्मू कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा का चुनाव हुआ था. उसके बाद मोदी सरकार ने कश्मीर से धारा 370 हटाया. इसका वहां के सियासी दलों ने विरोध किया. कट्टरपंथी और अलगाववादी ताकतों ने इसे मुद्दा बनाकर इस बार चुनाव लड़ा. जनता ने ऐसे 30 नेताओं को पराजित कर यह साबित कर दिया कि वे कश्मीर की मौजूदा स्थिति से ही खुश हैं. जम्मू-कश्मीर की 90 सीटों में 60 मुस्लिम बहुल हैं. इनमें बाजपा ने तीन सीटें जीती हैं. हिन्दू बहुल 30 सीटों में भाजपा ने अकेले 26 जीत लीं. इससे एक बात तो साफ हो गया है कि मोदी सरकार के कदमों का कश्मीर के अवाम ने समर्थन ही किया है.
भाजपा हरियाणा में कैसे सफल हो गई
हरियाणा के बारे में यह मिथक रहा है कि कोई भी पार्टी तीसरी बार सत्ता में नहीं आती. भाजपा ने इस मिथक को तोड़ा है. भाजपा जब लोकसभा चुनाव में पांच सीटें हार गई और कांग्रेस ने पांच सीटें जीत लीं तो इसे भाजपा के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी माना गया. भाजपा के खिलाफ कांग्रेस द्वारा गढ़े गए नैरेटिव ने उसे पांच सीटों पर सफलता तो दिला दी, लेकिन उसकी हकीकत का शायद एहसास मतदाताओं को कुछ ही महीनों में हो गया. भाजपा ने गैर जाट राजनीति का अपना मूल सिद्धांत नहीं छोड़ा. दलित वोटरों ने भी भाजपा का साथ दिया. पिछड़ों पर भाजपा का भरोसा भी कारगर रहा. योगी आदित्यनाथ का हिन्दू जागरण का नारा- ‘बंटोगे तो कटोगे’ भी कारगर साबित हुआ.
कांग्रेस की हरियाणा में दुर्गति क्यों हुई
ठीक इसके उलट कांग्रेस की स्थिति रही. जाट, दलित और मुस्लिम का समीकरण कांग्रेस ने बनाया. जाट भी बंट गए. जाट बेल्ट की आधी सीटें भाजपा ने जीत लीं. सबसे दिलचस्प तो अहीरों वाले इलाके की सीटें रहीं. बिहार-यूपी की तरह लालू यादव और अखिलेश यादव के फेर में यादव वोटर नहीं पड़े. उनके इलाके में भी भाजपा की पैठ कांग्रेस के मुकाबले मजबूत रही. मनोहर खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी पर दांव लगाने की भाजपा की रणनीति एंटी इन्कम्बेंसी के असर को कम या खत्म करने में कारगर रही. यही वजह रही कि भाजपा अपने अब तक के रिकार्ड तोड़ने में कामयाब रही. कांग्रेस जवान, किसान और पहलवान के तात्कालिक मुद्दों को भी भुनाने में नाकाम हो गई.
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FIRST PUBLISHED :
October 10, 2024, 16:49 IST