हीराकुंड बांध: 25.8 KM लंबा पानी का वो पहाड़ जिसने महानदी के वेग को थाम लिया!

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Last Updated:July 07, 2025, 04:53 IST

Hirakud Dam: ओडिशा के संबलपुर जिले में बना हीराकुंड डैम इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना है. 6 जुलाई को भारी बारिश के चलते डैम का जलस्तर तेजी से बढ़ा, और इस साल पहली बार डैम से बाढ़ का पानी छोड़ा गया. आगे जानें क्यों खास है हीराकुंड डैम?

हीराकुंड डैम दुनिया का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है, जिसकी लंबाई लगभग 25.8 किलोमीटर है. इसे महानदी पर इसलिए बनाया गया क्योंकि ये नदी हर साल भारी तबाही मचाती थी. 1937 की भीषण बाढ़ के बाद इस प्रोजेक्ट की जरूरत महसूस हुई. एम विश्वेश्वरय्या जैसे महान इंजीनियर ने इसका प्रस्ताव रखा, और 1948 में निर्माण कार्य शुरू हुआ. 1957 में यह बांध बनकर तैयार हुआ. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बांधों को 'आधुनिक भारत के मंदिर' कहा था.

हीराकुंड डैम के मुख्य अभियंता सुशील कुमार बेहरा ने बताया कि परंपरा के मुताबिक पूजा कर सुबह 10 बजे पानी छोड़ने की प्रक्रिया शुरू की गई. फिलहाल तीन गेट खोले गए हैं, जबकि 12 गेट चरणबद्ध तरीके से खोले जाएंगे. पानी छोड़े जाने से पहले सायरन बजाकर चेतावनी दी गई, ताकि निचले इलाकों में रहने वाले लोग सतर्क हो जाएं. हीराकुंड प्रशासन ने पहले ही 13 जिलों को अलर्ट पर रख दिया था ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके. ये बांध आज भी लाखों लोगों की जिंदगी की सुरक्षा और कृषि की रीढ़ बना हुआ है.

हीराकुंड का सबसे अहम उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण है. बारिश के मौसम में जब छत्तीसगढ़ और पश्चिम ओडिशा में जोरदार बारिश होती है, तब यही बांध महानदी को काबू में रखता है. इस वजह से कटक, पुरी और जगतसिंहपुर जैसे जिलों में बाढ़ की आशंका कम हो जाती है. पानी छोड़ना एक रणनीतिक कदम होता है, ताकि डैम की संरचना सुरक्षित रहे और नीचे बहने वाली नदियों में संतुलन बना रहे. डैम में कुल 98 गेट हैं - 64 स्लूइस गेट और 34 क्रेस्ट गेट - जिनके ज़रिए पानी का संचालन किया जाता है.

हीराकुंड ने ओडिशा की खेती को नई जान दी है. इसका नहर नेटवर्क 15 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन की सिंचाई करता है. खासकर बरगढ़, बलांगीर और सुबर्णपुर जैसे जिलों में खरीफ और रबी फसलों की निर्भरता इस डैम पर है. यहां बुर्ला और चिपलीमा में दो बड़े हाइड्रोपावर स्टेशन भी हैं, जो साफ और सस्ती बिजली हजारों घरों और फैक्ट्रियों तक पहुंचाते हैं. यही वजह है कि पश्चिम ओडिशा में अब एलुमिनियम, कागज और धातु उद्योगों का विकास तेजी से हुआ है.

हीराकुंड का निर्माण आसान नहीं था. हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा. लेकिन लंबे समय में इस प्रोजेक्ट ने आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाए हैं. डैम से बने विशाल जलाशय ने मत्स्य पालन को भी बढ़ावा दिया, जिससे हजारों परिवारों को वैकल्पिक आजीविका मिली.

आज हीराकुंड केवल एक डैम नहीं, बल्कि ओडिशा की विकास गाथा का केंद्र है. ये एक ऐसी संरचना है जिसने प्रकृति की विनाशकारी ताकत को नियंत्रित कर मानव सभ्यता के हित में बदल दिया. और जब हर साल मानसून आता है, हीराकुंड फिर से उसी जिम्मेदारी के साथ खड़ा मिलता है.

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