नई दिल्ली (Abroad Education). हर साल लाखों स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए विदेश का रुख करते हैं. अपने देश, घर-परिवार को छोड़कर विदेश में एडजस्ट होना आसान बात नहीं है. इसीलिए शुरुआत में खुद को देश की मिट्टी से जोड़कर रखने के लिए वे अपने सूटकेस में कपड़ों, किताबों और जरूरी दस्तावेजों के साथ यादों की गठरी भी बांध लेते हैं. जब भारतीय छात्र हायर एजुकेशन के लिए नई धरती पर कदम रखते हैं तो उनका सूटकेस किसी भावुक संदूक से कम नहीं होता है.
छात्रों के सूटकेस में मां की ममता, घर की खुशबू, अनमोल यादें, संस्कार और आत्मविश्वास का मिश्रण होता है. फोन और लैपटॉप के चार्जर और जैकेट के बीच ऐसी अनमोल चीज़ें छिपी होती हैं, जिनका न तो किसी चेकलिस्ट में जिक्र होता है और न ही किसी वीज़ा गाइड में. ये चीज़ें उन्हें अपने घर-परिवार से जोड़कर रखती हैं. जब फोन पर बात करके मन नहीं भरता है, तब यादों से भरे इस सूटकेस में से एक-एक चीज़ को निकालकर उन्हें महसूस किया जाता है. ऑनट्रैक एजुकेशन की ममता जानी से जानिए, बच्चे अपने सूटकेस में क्या ले जाते हैं.
भारतीय स्टूडेंट्स के सूटकेस में क्या होता है?
जो कभी घर से दूर न गया हो, वह इस भाव को समझ भी नहीं पाएगा. घर से दूर रहने पर होमसिकनेस होना आम बात है. आपके सूटकेस में सिर्फ 23 किलो सामान की सीमित जगह होती है. टिफिन, लेटर और मेमोरीज़ का अपना कोई वजन नहीं होता है लेकिन फिर भी ये सबसे भारी सहारे बन जाते हैं. इस स्थिति से लड़ने के लिए स्टूडेंट्स अपने सूटकेस में यादों का पिटारा पैक करके लाते हैं.
मसाले का डिब्बा और घर की खुशबू
मसाला केवल एक स्वाद नहीं है, बल्कि घर की यादों का भी प्रतीक है. कई स्टूडेंट्स अपने साथ नानी, दादी या मां के खास मसाले लेकर आते हैं. कुछ मसाले पुराने कॉफी जार में रखे हुए हैं, उस पर लिखा मसाले का नाम अब धुंधला हो चुका है. एक हैदराबादी छात्रा ने बताया कि उसकी नानी ने 12 अलग-अलग मसालों को मिलाकर धूप में सुखाकर खास ‘बिरयानी मिक्स’ बनाया था. कुछ स्टूडेंट्स सूखे करी पत्ते या घी में बना सांभर पाउडर भी अपने साथ रखते हैं. उनका मानना है कि दुकानों पर मिलने वाले मसालों का स्वाद कभी भी घर जैसा नहीं होता.
खुशबू से मिलता है अहसास
नवरत्न तेल, तुलसी के ड्रॉप्स और गुलाबजल जैसी चीजें सिर्फ साफ-सफाई के लिए नहीं होती हैं, बल्कि ये उन्हें अपनेपन और घर से जुड़े रहने का जरिया लगती हैं. एक पंजाबी स्टूडेंट ने बताया कि उसने अपने हॉस्टल में मां का अत्तर लगा हुआ दुपट्टा रखा है ताकि जब उसे उदासी महसूस हो तो उसका कमरा ‘घर जैसी महक’ से भर जाए. कुछ स्टूडेंट्स तो रोजाना की पूजा के लिए हल्दी और गुलाब के फूल तक साथ लाते हैं. इसके अलावा धूपबत्ती, कपूर आदि लाना भी आम बात है.
रक्षा के प्रतीक- एक अनजाने देश में बढ़ता है भरोसा
नज़रबट्टू, हनुमान चालीसा वाला लॉकेट और गणेशजी की मिट्टी की मूर्तियां- कई स्टूडेंट्स अपने साथ ये चीजें भी लेकर जाते हैं. इनका उद्देश्य प्रदर्शन करना नहीं, बल्कि कठिनाइयों का सामना करना है. एक छात्र ने रक्षाबंधन के दिन बंधी राखी को अपनी डायरी में छिपाकर रखा. एक अन्य छात्र ने गणेश चतुर्थी पर तैयार मिट्टी की मूर्ति को सुखाकर अपने साथ ले जाना चुना. ये चीजें सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक कवच थीं, पहली सर्दियों की तन्हाई और कल्चर शॉक से लड़ने के लिए.
चिट्ठियां, रेसिपी और छोटी-छोटी यादें
वॉट्सऐप के जमाने में भी इस बात को नहीं नकारा जा सकता है कि असली चीजें असली भावनाओं को संजोती हैं. माता-पिता बैग में अक्सर हाथ से लिखी हुई चिट्ठियां, खास रेसिपी कार्ड, जैसे ‘जब तेल गरम हो जाए, तब जीरा डालना’ या पुरानी पारिवारिक तस्वीरें रख देते हैं. एक स्टूडेंट ने बताया कि उसके भाई ने चुपचाप उसके पेंसिल बॉक्स में एक पुराना-सा नोट और राखी रख दी थी, जिस पर लिखा था: तू अपनी सोच से कहीं ज़्यादा मज़बूत है. ये चीजें विदेश में ताकत देती हैं.
घर में बने ‘सरवाइवल किट’
जेट लैग जुगाड़ किट: सोंठ, सौंफ, लौंग, हाजमोला, अमृतांजन
रेनी डे राशन: खाखरा, तिल चिक्की, मुरुक्कू, शक्करपारा
पूजा पाउच: माचिस, दिया, चावल, छोटी डिब्बियों में हल्दी-कुमकुम
पैकिंग से परे– ये है पहचान बचाने का तरीका
भारतीय छात्रों के लिए पैकिंग सिर्फ सामान को संजोकर रखने का काम नहीं है, बल्कि यह अपनी संस्कृति को संजोने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. जब आप अपने सूटकेस को बंद करते हैं तो उसमें बहुत कुछ बंद हो जाता है-खुशी और दुख के पल, बड़ों का आशीर्वाद, छोटों का प्यार, यादें और भारत की खास पहचान. कुछ बच्चे तो देश की खुशबू के लिए अपने साथ साबुन तक ले जाते हैं. वहीं, भगवान की मूर्तियां उनके लिए सिर्फ मूर्ति नहीं, बल्कि वे सभी प्रार्थनाएं हैं, जिन्हें मंदिर की भीड़ में धीरे-धीरे बुदबुदाया गया था.