मेवाड़ में गूंजी घंटियां...आस्था,अनुशासन और लोक रंग का महापर्व

2 days ago

Last Updated:August 11, 2025, 16:07 IST

Udaipur News: उदयपुर अंचल में भील आदिवासी समुदाय का 40 दिन चलने वाला गवरी उत्सव सांस्कृतिक, धार्मिक और अनुशासन का अनूठा संगम है. देवी गवरजा की आराधना में मंचित यह नृत्य-नाट्य गांवों में खुशहाली और शांति का संदे...और पढ़ें

मेवाड़ में गूंजी घंटियां...आस्था,अनुशासन और लोक रंग का महापर्वgavri utsav

उदयपुर: उदयपुर अंचल में इन दिनों जनजातीय संस्कृति की एक अनूठी छटा बिखरी हुई है. रक्षाबंधन के दूसरे दिन से शुरू होकर 40 दिनों तक चलने वाला गवरी उत्सव अब अपने पूरे रंग में है. भील आदिवासी समुदाय द्वारा देवी गवरजा की आराधना में आयोजित यह नृत्य-नाट्य कार्यक्रम न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि लोक परंपरा, धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता का अद्वितीय प्रतीक भी है. गवरी का उद्देश्य गांवों में खुशहाली, सुख-शांति और समृद्धि लाना है.

गवरी उत्सव के दो प्रमुख पात्र हैं- बुडिया, जो भगवान शिव का प्रतीक माने जाते हैं, और राई, जिन्हें देवी पार्वती और शक्ति का स्वरूप माना जाता है. इन दोनों के अभिनय में धार्मिक भावनाओं के साथ-साथ मनोरंजन का भी भरपूर मिश्रण देखने को मिलता है.

गवरी के कलाकार इस अवधि में कठोर अनुशासन और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. 40 दिनों तक वे न तो स्नान करते हैं, न जूते पहनते हैं, और जमीन पर ही सोते हैं. साथ ही, वे मांसाहार, शराब और हरी सब्जियों का सेवन पूरी तरह त्याग देते हैं. यह संयम और तपस्या उनके प्रदर्शन को और पवित्र बनाता है.

लोकनाट्य का स्वरूप और पारंपरिक पात्र
गवरी में 40 से 50 तरह के पारंपरिक स्वांग रचे जाते हैं. इनमें शंकर्या, मीणा, बंजारा, नट, कालबेलिया, फत्ता-फत्ती, खेतू, देवर-भौजाई, बनिया, पुलिस जैसे पात्र शामिल होते हैं. ये पात्र सामाजिक व्यंग्य, हास्य और लोककथाओं का सुंदर मेल प्रस्तुत करते हैं. प्रत्येक प्रस्तुति की शुरुआत और समापन ‘घाई’ नामक समूह नृत्य से होती है, जो पृथ्वी की परिक्रमा का प्रतीक है और पूरे आयोजन को धार्मिक ऊर्जा से भर देता है.

जनसमूह और भावनात्मक जुड़ाव
गवरी के दिनों में ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों के लोग भी बड़ी संख्या में इसे देखने के लिए जुटते हैं. यह मेवाड़ के लिए सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, एकता और अनुशासन का जीवंत उदाहरण है. भील समुदाय की यह परंपरा आज भी अपनी मौलिकता और गरिमा के साथ लोगों को जोड़ती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जीवित है.

Location :

Udaipur,Rajasthan

First Published :

August 11, 2025, 16:07 IST

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