शांति की शुरुआत कहां से!

2 days ago

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस पर यह सोचना आवश्यक है – हमारी दुनिया में शांति का असली आधार क्या है?

आठ अरब लोगों में से गिनती के कुछ ही लोग हैं जो आतंक और हिंसा फैलाते हैं, और उसका प्रभाव हम सब पर पड़ता है. क्या आपको नहीं लगता कि इसका विपरीत सिद्धांत भी काम कर सकता है? अगर कुछ हजार लोग सच में शांतिप्रिय, प्रेमपूर्ण और पूरी पृथ्वी के लिए संवेदनशील हो जाएँ, तो क्या हम परिवर्तन नहीं ला सकते? मेरा यह स्वप्न है – एक ऐसी दुनिया जहाँ हिंसा न हो. यह भले ही आदर्शवादी लगे, लेकिन हमें सपने देखने चाहिए, और हम अवश्य वहाँ तक पहुँचेंगे. आज की दुनिया को ऐसे और अधिक लोगों की आवश्यकता है जो शांति के लिए खड़े हों, मतभेदों को हटाएँ और उन पूर्वाग्रहों को मिटाएँ जो दुनिया को बाँटकर रखते हैं.

समृद्धि के लिए शांति आवश्यक है. यदि शांति नहीं है तो समृद्धि नहीं हो सकती. वास्तव में यह ‘कैच-22’ वाली स्थिति है – शांति समृद्धि लाती है और समृद्धि शांति को बनाए रखती है. दोनों को साथ-साथ संबोधित करना होगा. बाहरी शांति तभी आएगी जब भीतर शांति होगी. विश्व शांति की शुरुआत हमसे ही होती है. शांत व्यक्ति ही शांतिपूर्ण दुनिया बनाते हैं.

आपने देखा होगा कि जब आप शांत वातावरण में होते हैं तो मन छोटी-सी बात पर भी टकराव ढूँढ़ लेता है. और जब वातावरण ही टकरावपूर्ण हो, तो आप स्वाभाविक रूप से शांति की तलाश करते हैं. स्वयं से पूछिए – क्या आप हर परिस्थिति में सामंजस्य खोजते हैं, या मतभेद बढ़ाकर अपनी सही होने की भावना साबित करना चाहते हैं? आपके भीतर की नकारात्मकता और संघर्ष की प्रवृत्ति केवल आध्यात्मिक साधना से ही मिट सकती है.

स्थायी शांति के लिए सुधारक और शासक दोनों को साथ आना होगा. धार्मिक और आध्यात्मिक नेता, सामाजिक संगठन सुधार में विशेष भूमिका निभा सकते हैं. हमें संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में जाकर लोगों से मिलना चाहिए, उनसे बात करनी चाहिए. वे हमसे अलग कोई प्रजाति नहीं, बल्कि गलतफहमियों, भय और पूर्वाग्रहों के शिकार हैं. हर अपराधी के भीतर एक पीड़ित छुपा है, जो मदद के लिए पुकार रहा है. अगर हम पीड़ित को ठीक कर दें, तो अपराधी समाप्त हो जाता है.

यहाँ मानवीय दृष्टिकोण और राजनीतिक संवाद दोनों की आवश्यकता है. मानवीय दृष्टिकोण तनाव और डर को दूर करता है, जीवन को व्यापक दृष्टि से देखने में सहायता करता है और यह एहसास दिलाता है कि हम जिस शांति की खोज बाहर कर रहे हैं, वह पहले से ही भीतर विद्यमान है.

संघर्ष संवाद टूटने से पैदा होते हैं. इन्हें पाटने के लिए ऐसे मजबूत लोगों की आवश्यकता होती है जो तटस्थ, केंद्रित और धैर्यपूर्वक सुनने को तैयार हों. मध्यस्थता तभी संभव है जब दोनों पक्षों को आप पर विश्वास हो. असली मध्यस्थ ‘योगी’ होते हैं, जिनमें आध्यात्मिक गहराई और धैर्य हो.

हम अक्सर सोचते हैं कि शांति केवल संघर्षों को शांत करना मात्र है. लेकिन शांति सिर्फ टकराव का अभाव नहीं, बल्कि हमारे भीतर की एक सकारात्मक स्थिति है. जब मन शांत होता है, बुद्धि तेज होती है, भावनाएँ हल्की और सकारात्मक होती हैं, और व्यवहार अधिक मधुर हो जाता है.


भीतर की शांति कैसे पाएँ?

ध्यान हमें कठिन परिस्थितियों से निपटने की ऊर्जा देता है, और साथ ही ये लोगों के दिलों और दिमाग को जोड़ता भी है. ध्यान भीतर की यात्रा है शांति के उस पड़ाव तक पहुंचने की जो हमारा अपना स्वभाव है. जब आप भीतर शांति पाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से उसे आसपास बाँटना चाहते हैं. शांति से भरा हृदय सेवा करने से रुक ही नहीं सकता.

यही कारण है कि ध्यान मध्यस्थता की नींव है. जब संवाद टूट जाता है, तब मध्यस्थ की भूमिका आती है. मध्यस्थता का अर्थ है—तटस्थ रहना और दोनों पक्षों को एक जगह लाना ताकि वे खोया हुआ विश्वास फिर से बना सकें. इसके लिए सबसे पहले मध्यस्थ को स्वयं शांत और स्थिर होना चाहिए. यदि आप चाहते हैं कि दूसरे लोग आपको सुनें, तो पहले उन्हें पूरी तरह सुनना होगा. जब वे सुने जाते हैं, तब वे भी सुनने को तैयार होते हैं. इसके लिए मध्यस्थ को शांत और बहुत धैर्यवान होना चाहिए.


न्याय और मध्यस्थता में अंतर है –

मान लीजिए दो लोग एक सेब के लिए झगड़ रहे हैं. न्याय यह होगा कि मैं सेब को दो टुकड़ों में बाँट दूँ और आधा-आधा दे दूँ. पर मध्यस्थता अलग है, यह निर्णय थोपना नहीं है, बल्कि दोनों को मिलाना है. यदि मैं चाकू एक व्यक्ति को दूँ कि वह सेब काटे, और दूसरे को दूँ कि वह टुकड़ा चुने, तो दोनों को लगेगा कि न्याय हुआ.

यही मध्यस्थता का सार है – आप समाधान नहीं थोपते, बल्कि ऐसा माहौल बनाते हैं कि दोनों पक्ष न्यायसंगत महसूस करें. अदालत का फैसला हमेशा किसी एक के जीतने और दूसरे के हारने में होता है. मध्यस्थता में दोनों को लगता है कि उनकी बात सुनी गई और उन्हें कुछ मिला.


शांति के तीन मह्त्त्वपूर्ण अंग हैं – विस्तृत दृष्टि,प्रतिबद्धता और करुणा

जीवन में उथल-पुथल तो होती ही है, पर शांति हमारी आत्मा का स्वभाव है. अगर हम दृढ़ संकल्प और कुशलता के साथ शांति में टिके रहें, तो वह शांति चारों ओर फैलती है.

इस अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस पर हम सब संकल्प लें और भीतर शांति स्थापित करें और बाहर दुनिया में फैलाएँ. अब समय है शांति के लिए खड़े होने का.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।

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