भारत में पिछले कुछ सालों में लगातार नए पुलों के गिरने की खबरें आती रही हैं. इस सबके बीच एक पूल ऐसा है जो 350 सालों से भी अपनी जगह पर मजबूती से टिका हुआ है. जबकि ये पुरानी तकनीक और पुराने समय में इस्तेमाल होने वाले मटीरियल से बनाया गया है. आखिर इसमें ऐसी क्या बात है, जो ये नए पुलों को अब भी मजबूती में पीछे छोड़ देता है.
जौनपुर के शाही पुल को अटाला पुल या मुल्ला मुहम्मद पुल भी कहते हैं, ये भारत के सबसे पुराने पुलों में गिना है. ये ऐसा अकेला इतना पुराना पुल है, जो यातायात के भारी दबाव को झेलते हुए सैकड़ों सालों से मजबूती से टिका हुआ है. गोमती नदी में ना जाने कितनी ही बाढ़ें आईं. कभी ये बाढ़ में डूबा भी लेकिन अब भी बदस्तूर जारी है.
इसका निर्माण 1568-1569 ई. में मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में हुआ. इसे तत्कालीन शाही हकीम और इंजीनियर मुल्ला मुहम्मद हुसैन शिराज़ी ने बनवाया था.ये गोमती नदी पर बना है और अपनी खूबसूरती से लेकर मजबूती तक के लिए अलग ही पहचान रखता है.
वैसे भारत में इससे पुराने पुल भी रहे हैं लेकिन वो अब प्रयोग में नहीं हैं. चोल और विजयनगर काल में बने कई पत्थर के पुल अब भी कावेरी और गोदावरी जैसी नदियों पर हैं लेकिन वो भी ना तो इतने लंबे हैं और ना ही प्रयोग में हैं.
आज भी जिस पुल पर ट्रैफिक चलता है, उन में जौनपुर का शाही पुल वाकई सबसे पुराने और मजबूत पुलों में है. ये सवाल तो है ही जबकि ये पुल 450 सालों से ज्यादा समय से टिका हुआ है तो नए पुल क्यों टूट रहे हैं?
1934 के नेपाल-बिहार भूकंप में यह पुल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. इसके सात मेहराबों का पुनर्निर्माण करना पड़ा. अपने ऐतिहासिक महत्व के अलावा, यह पुल आज भी उपयोग में है. इस पुल में 28 रंग-बिरंगी छतरियां हैं , जो मौजूदा समय में अस्थायी दुकानों के रूप में काम करती हैं. यह पुल 1978 से पुरातत्व निदेशालय, (यूपी) की संरक्षण सूची में है.
विलियम होजेस ने अपनी पुस्तक ‘सेलेक्ट व्यूज़ इन इंडिया’ में पुल के बारे में उल्लेख किया है, रुडयार्ड किपलिंग की कविता अकबर ब्रिज में इस पुल का उल्लेख है. (wiki commons)
शाही पुल की मजबूती के कारण
– पत्थर और चूना-गारा का शानदार मिश्रण. इसमें सीमेंट कहीं भी नहीं है, क्योंकि जब ये बना तब सीमेंट की तकनीक ही नहीं थी. लेकिन मुगल काल में जितनी भी इमारतें बनीं वो सभी पत्थर और चूना गारा से बनीं. इसमें उस ज़माने के विशेष सुरखी चूना, गुड़, बेल का गूदा और लाख का मिश्रण इस्तेमाल हुआ. ये मिश्रण आज के सीमेंट से कहीं अधिक लचीला और टिकाऊ होता था.
इसमें कुल 28 मेहराब हैं, जो पानी के दबाव को समान रूप से बांटते हैं. आर्च स्ट्रक्चर अपने आप में अत्यंत मजबूत और भूकंपरोधी होता है. अगर आप इसको देखेंगे तो पाएंगे कि इसके सारे आर्च स्ट्रक्चर बिल्कुल एकसमान और परफेक्ट ज्यामिती के साथ बनाए गए हैं.
‘ विलियम होजेस ‘ की पुस्तक ‘सेलेक्ट व्यूज़ इन इंडिया’ में जौनपुर के शाही पुल की पेंटिंग (wiki commons)
पुल का फ्लड मैनेजमेंट सिस्टम
इसके नीचे से गुजरने वाले पानी के बहाव और बाढ़ के लिए भी पर्याप्त निकास बनाए गए. मेहराबों के बीच बड़े छेद से पानी का दबाव कम होता है और ये पुल के पिलर्स को मजबूत रखने के साथ पुल को भी दमदार रखता है
कम मेंटेनेंस, कम छेड़छाड़
इस पुल को आमतौर पर मेंटनेंस की जरूरत ज्यादा पड़ती नहीं, जैसा नए पुलों के लिए बार-बार होती है. इस पुल पर बार-बार मरम्मत या आधुनिक तकनीक से छेड़छाड़ नहीं की गई, जिससे इसकी मूल संरचना सुरक्षित रही.
नए पुल क्यों टूटते हैं?
भारत में पिछले पांच साल में 50 से ऊपर पुल टूट चुके हैं. जबकि अब ज्यादा बेहतर तकनीक और सामग्री का इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन इन नए पुलों के कमजोर होने या टूट जाने की बड़ी वजह लो क्वालिटी मैटेरियल, निर्माण में घटिया सीमेंट, सरिया और निर्माण प्रक्रिया में लापरवाही शामिल है. कई बार पर्यावरण और बाढ़ के पुराने रिकॉर्ड को अनदेखा कर के पुल बनाए जाते हैं. उनका डिजाइन ठीक नहीं होता. साथ ही अब के नए पुलों पर पुराने पुलों की तुलना में ज्यादा अनियंत्रित ट्रैफिक और ओवरलोडिंग रहती है.
वडोदरा में 9 जुलाई को एक 40 साल पुराना पुल गिर गया. इसमें अब तक 13 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है.
लो मेंटेनेंस
एक बार बनने के बाद कई पुलों की मरम्मत ठीक से नहीं होती, जिससे उनमें दरारें आती हैं. आमतौर पर पुलों के रखरखाव की नियमावली का भी पालन नहीं हो पाता.
पिछले सालों में कितने पुल गिरे
2020–2023 तक राष्ट्रीय राजमार्गों पर 32 पुल गिरे. इसमें राज्य के पुलों का आंकड़ा नहीं है. अन्यथा ये संख्या और ज्यादा होती.
बिहार में 2020 से 2023 तक करीब दस पुल गिरे इसमें अकेले 5 तो 2023 में ही गिरे
बिहार में हालिया घटनाएं (2023 में) – पिछले तीन वर्षों में करीब 10 पुल ढहे, जिनमें से 5 अकेले 2023 में गिरे.
बिहार में 2021–23 में 18 पुल ढहे (एक महीने में 14 भी)
झारखंड में 2016–21 के बीच कुल 34 घटनाएं (2019 में सबसे अधिक)
क्या पुलों का नियमित इंस्पेक्शन होता है
भारतीय सड़क कांग्रेस (Indian Roads Congress – IRC) और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की नियमावली या मैन्युअल के अनुसार हर पुल का नियमित निरीक्षण हर 6 महीने में या मानसून से पहले और बाद में किया जाना चाहिए. इसका उद्देश्य छोटी-मोटी समस्याओं का पता लगाना है. हर 3-5 साल में पुलों की गहन जांच करनी चाहिए या विशेष परिस्थितियों मसलन भूकंप, बाढ़ जैसी आपदाओं के बाद भी जांच होनी चाहिए. केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया था कि उनकी मिनिस्ट्री ने 1.6 लाख पुलों के ऑडिट के नियम तय किए हैं, लेकिन यह हर साल अनिवार्य नहीं है.
क्या पुलों को भी जांच के बाद फिटनेस सर्टीफिकेट मिलता है
भारत में पुलों के लिए “फिटनेस सर्टिफिकेट” का कोई औपचारिक प्रावधान नहीं है और ना ये हर साल अनिवार्य रूप से लागू होता है. हां, पुराने या जर्जर पुलों के लिए, विशेषज्ञ समितियां (जैसे IIT या अन्य तकनीकी संस्थान) उसके स्ट्रक्चर की स्थिरता का आकलन करती हैं. एक रिपोर्ट जारी करती हैं. यह फिटनेस सर्टिफिकेट के समान हो सकता है.
बार बार शिकायत आ रही हो तो क्या किया जाता है
भारत में अगर किसी पुल को लेकर बार-बार शिकायतें आ रही हैं, तो शिकायतें संबंधित प्राधिकरण (जैसे PWD, NHAI, रेलवे, या नगर निगम) के पास दर्ज की जाती हैं. कई बार ये शिकायतें ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भी मिलती हैं. ऐसे में प्राधिकरण द्वारा एक शुरुआती निरीक्षण किया जाता है. यदि शिकायत गंभीर है (जैसे ढहने का खतरा), तो तुरंत यातायात प्रतिबंध, डायवर्जन, या पुल को बंद करने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं.
स्टेट हाइवे और उनके पुलों का प्रबंधन, रखरखाव और निरीक्षण राज्य सरकारों के अधीन होता है. यह कार्य आमतौर पर राज्य PWD, राज्य सड़क विकास प्राधिकरण, या समकक्ष विभाग द्वारा किया जाता है. यदि स्टेट हाइवे के किसी पुल को लेकर बार-बार शिकायतें आ रही हैं, तो उसकी जांच संबंधित विभागों द्वारा की जाती है. यदि पुल असुरक्षित पाया जाता है, तो राज्य सरकार यातायात प्रतिबंध, मरम्मत, या पुनर्निर्माण के आदेश देती है.