AK-47 से चल रही थीं गोलियां, गाय बीच में नहीं आई होती तो इस सांसद की मौत थी तय

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Last Updated:July 01, 2025, 16:34 IST

Surajbhan Singh Story: भूमिहार जाति के बाहुबली नेता सूरजभान सिंह की सियासी महत्वाकांक्षा ने उन्हें कब खादी की ओर खींचा? सूरजभान सिंह की मौत के बीच में गाय कैसे संकटमोचक बनी? सूरजभान ने अपने गुरु और अनंत सिंह के...और पढ़ें

AK-47 से चल रही थीं गोलियां, गाय बीच में नहीं आई होती तो इस सांसद की मौत थी तय

क्यों चर्चा में हैं बाहुबली पूर्व सांसद सूरजभान सिंह?

हाइलाइट्स

बिहार के बाहुबली नेता सूरजभान सिंह की जान गाय ने कैसे बचाई?कौन थे अशोक सम्राट, जिसने सूरजभान सिंह पर चलाई गोली?नीतीश कुमार से लेकर रामविलास पासवान तक सबके बने चहेते

पटना. बिहार में चुनावी बयार एक बार फिर बहने लगी है. हर बार की तरह इस बार भी राजनीति में बाहुबलियों की भूमिका चर्चा में है. लेकिन जब भी बिहार में बात बाहुबली राजनीति की होती है तो मोकामा के पूर्व सांसद सूरजभान सिंह का नाम खुद-ब-खुद सामने आ जाता है. एक ऐसा नाम, जिसने AK-47 की गूंज के बीच खादी की राह पकड़ी और विधानसभा से लेकर संसद तक का सफर तय किया. लेकिन यह महज एक चुनावी कहानी नहीं, बल्कि उस बिहार की झलक है जहां कभी एक गोली चलती थी तो सरकारें हिल जाती थीं. आज बिहार के चुनावी किस्से में जानेंगे कैसे एक गाय AK-47 की गोलियां झेलकर सूरजभान सिंह की जान बचा ले गई थी!

 गाय से सूरजभान सिंह का नाता

1993 की बात है. मोकामा में रेलवे और ठेकेदारी के साम्राज्य पर वर्चस्व को लेकर सूरजभान सिंह और बेगूसराय के कुख्यात बाहुबली अशोक सम्राट आमने-सामने थे. कहा जाता है कि सुबह-सुबह तीसरी मंजिल से छलांग लागकार अशोक सम्राट ने AK-47 से सूरजभान सिंह पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. इस फायरिंग में सूरजभान सिंह के पैर में गोली लगी, जबकि उनके दो करीबी मारे गए. लेकिन किसी फिल्मी सीन में होता है, तभी एक गाय अचानक बीच में आ गई. वही गाय सूरजभान और मौत के बीच एक ‘ढाल’ बन गई. गोली का निशाना चूक गया और आज सूरजभान सिंह जिंदा हैं. हालांकि, उनके पैर में लगी गोली आज भी उनको दर्द दे रहा है. बीते 30 साल से वह पैर से खून निकलता है. डॉक्टरों ने पैर कटवाने की सलाह दी, लेकिन वह पैर नहीं कटवा रहे हैं.

सूरजभान सिंह और नीतीश कुमार (जब पहली बार सीएम बने थे नीतीश कुमार) 

नीतीश कुमार को सीएम बनाने में भूमिका

बिहार की राजनीति में अब भी सूरजभान सिंह एक अहम चेहरा हैं, भले चुनाव लड़ने की इजाजत न हो. बता दें कि 1980 के दशक में छोटे-मोटे अपराधों से शुरुआत करने वाले सूरजभान 1990 तक रंगदारी, अपहरण और हत्या जैसे मामलों के मुख्य किरदार बन गए. राबड़ी सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या, मधुरापुर कांड और यूपी के बाहुबली श्रीप्रकाश शुक्ला को AK-47 थमाना सूरजभान की कहानी किसी गैंगस्टर ड्रामा से कम नहीं. लेकिन असली ट्विस्ट आया 2000 में, जब उन्होंने दिलीप सिंह को हराकर मोकामा से निर्दलीय विधायक का चुनाव जीता और नीतीश कुमार को समर्थन देकर उन्हें पहली बार मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया.

रामविलास पासवान का विश्वासपात्र कैसे बने?

ये वही वक्त था जब सूरजभान सिंह को ‘संकटमोचक’ कहा जाने लगा. लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के खास बने. 2004 में बेगूसराय के बलिया से लोकसभा पहुंचे और पासवान ने उन्हें LJP का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. इतना ही नहीं, उनकी पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन सिंह को भी राजनीति में उतारा और जीत दिलवाई. बिहार से यूपी तक उनका नेटवर्क फैला और उनका प्रभाव हर पार्टी ने महसूस किया.

बिहार चुनाव में फिर से उतरने वाले हैं सूरजभान सिंह?

अशोक सम्राट और गोलीकांड: गाय ने बचाई जान

2025 के विधानसभा चुनाव में सूरजभान खुद मैदान में नहीं हैं, लेकिन वीणा देवी और चंदन सिंह के ज़रिए उनका कुनबा अब भी NDA में सक्रिय है. हाल ही में उन्होंने मोकामा में अनंत सिंह पर हमला बोला और ‘इतिहास, भूगोल और गणित बदलने’ की धमकी देकर सियासी गलियारों में हलचल मचा दी. जहां एक ओर RJD ने शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा और पत्नी हिना शहाब को पार्टी में उतारा है. वहीं अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी और बेटे चेतन आनंद भी मोर्चे पर हैं. चिराग पासवान की पार्टी में हुलास पांडेय और रईस खान जैसे चेहरे भी कम चर्चा में नहीं.

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कुलमिलाकर बिहार की सियासत में बाहुबली नेताओं का असर भले थोड़ा कमजोर पड़ा हो, लेकिन खत्म नहीं हुआ है. लोकतंत्र और AK-47 के बीच चल रही यह लड़ाई अब भी जारी है. शब्दों में, पोस्टरों में और रणनीतियों में और जब भी चुनावी अखाड़े में कोई AK-47 की कहानी लेकर आता है, तो सूरजभान सिंह का नाम, वो गाय और वो किस्सा फिर से ज़िंदा हो उठता है. क्या 2025 का बिहार फिर से बाहुबलियों की धरती बनेगा? या मतदाता इस बार बंदूक से ज़्यादा बैलट पर भरोसा करेंगे? जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा, लेकिन तब तक सियासी गलियों में AK-47 और गाय वाला किस्सा फिर से हवा में तैरता रहेगा.

रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...

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