Last Updated:July 02, 2025, 21:19 IST
मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि फोन टैपिंग जब तक कि यह कानूनी रूप से स्थापित प्रक्रिया का पालन न करे यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. न्यायालय ने जोर देकर कहा कि ऐसी शक्तियो...और पढ़ें

कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार किया. (Representational Picture)
हाइलाइट्स
सीबीआई साल 2011 में एक शख्स की फोन टैपिंग कर रही थीइस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने साफ-साफ शब्दों में इसे गलत ठहरायाजब तक कानून उचित नहीं ठहराया जाता यह निजता का उल्लंघन.चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने आज साफ-साफ शब्दों में कहा कि ‘फोन टैपिंग’ को जब तक कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत उचित नहीं ठहराया जाता तब तक यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की बेंच ने यह भी कहा कि निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीशुदा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है. उन्होंने कहा कि टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति में या सार्वजनिक सुरक्षा के मद्देनजर टेलीफोन को ‘इंटरसेप्ट’ करने का अधिकार देती है.
उन्होंने कहा कि ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पैरा 28 में निर्धारित किया गया है कि उपरोक्त दो स्थितियां पैदा होने पर ही प्राधिकरण संदेशों को इंटरसेप्ट करने का आदेश पारित कर सकता है और इसके लिए संतोषजनक सबूत प्रदान करने होंगे कि ऐसा करना उसके लिए क्यों आवश्यक था? प्राधिकरण को यह बताना होगा कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, देश/राज्य की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था या किसी अपराध के उकसावे को रोकने के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन था.
केंद्र का आदेश रद्द
न्यायाधीश ने ‘एवरॉन एजुकेशन लिमिटेड’ के प्रबंध निदेशक पी किशोर की याचिका स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आयकर के सहायक आयुक्त से जुड़े रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से संबंधित मामले में याचिकाकर्ता के मोबाइल फोन की टैपिंग को अधिकृत किया गया था. यह मामला रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के सिलसिले में सीबीआई जांच से संबद्ध है.
फोन इंटरसेप्ट कर नियम तोड़ा
न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में 12 अगस्त, 2011 का विवादित आदेश न तो ‘सार्वजनिक आपातकाल’ के दायरे में आता है और न ही ‘सार्वजनिक सुरक्षा के हित में’, जैसा कि शीर्ष अदालत ने पीयूसीएल के मामले में स्पष्ट किया है. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अधिकारियों ने इंटरसेप्ट की गई सामग्री को निर्धारित समय के भीतर समीक्षा समिति के समक्ष प्रस्तुत न करके टेलीग्राफ नियमावली के नियम 419-ए (17) का भी उल्लंघन किया है.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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