पटना: झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के साथ 13 राज्यों की 47 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव होने हैं. इनमें ज्यादातर सीटें विधायकों के सांसद निर्वाचित होने कारण रिक्त हुई हैं. इनमें बिहार की 4, उत्तर प्रदेश की 10 और पश्चिम बंगाल की 6 सीटें भी शामिल हैं. बिहार में अगले साल यानी 2025 में विधानसभा का पूर्णकालिक चुनाव होना है, जबकि पश्चिम बंगाल में 2026 और उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा के चुनाव होंगे. लोकसभा चुनाव में भाजपा की कमजोर स्थिति इन राज्यों में रही है. इसलिए विधानसभा उपचुनाव के नतीजों को सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है. इन उपचुनावों में सीएम योगी, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर की प्रतिष्ठा दांव पर है.
लोकसभा चुनाव के नतीजों को सुधारने की चुनौती
बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की अहमियत इसलिए बढ़ गई है कि लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में भाजपा को अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली. बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले विपक्षी दलों के इंडिया ब्लाक ने. बिहार में भाजपा को पांच सीटों का नुकसान हुआ. एनडीए में शामिल जेडीयू की भी चार सीटें घट गईं. उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत खराब रहने का कारण पार्टी में अंतर्कलह बताया गया. सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसका ठीकरा उम्मीदवारों के चयनकर्ताओं पर फोड़ा. उनका कहना था कि उम्मीदवार चयन में उनकी मर्जी के खिलाफ काम हुआ. बंगाल में भाजपा के पिछड़ने की वजह ममता बनर्जी की आंधी बताई गई. बिहार में भाजपा की विफलता के पीछे नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी कारण माना गया. इसलिए उपचुनाव में एनडीए को अपनी सुधारनी होगी तो इंडिया ब्लाक को लोकसभा चुनाव की तरह ही टेंपो बरकरार रखना जरूरी होगी.
बिहार में तेजस्वी और PK की ताकत पता चलेगी
बिहार में एनडीए और यूपीए के अलावा तीसरे सियासी ध्रुव के रूप में इस बीच प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज का उदय हुआ है. प्रशांत किशोर को बिहार में बदलाव का पक्का भरोसा है. तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी से उतारने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैं. इसकी वजह भी है. पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने अपने बूते विपक्षी गठबंधन के विधायकों की संख्या 110 तक पहुंचा दी थी. बाद में एआईएमआईएम के चार विधायकों को भी तेजस्वी ने आरजेडी का हिस्सा बना लिया. बहुमत के लिए जरूरी 122 के आंकड़े से सिर्फ आठ विधायकों की कमी के कारण तेजस्वी सीएम बनने से चूक गए थे. सीएम नीतीश कुमार को बिहार में किए अपने विकास कार्यों पर भरोसा है. इसलिए तीनों के लिए चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव सेमी फाइनल से कम नहीं हैं
तेजस्वी को इंडिया ब्लाक की सीटें बचानी होंगी
तेजस्वी के लिए उपचुनाव प्रतिष्ठा का सवाल इसलिए बना हुआ है कि चार में तीन सीटें इंडिया ब्लाक के ही कब्जे में थीं. सिर्फ एक सीट एनडीए की रही है. विपक्ष की बड़ी गोलबंदी के बावजूद लोकसभा चुनाव में आरजेडी कोई कमाल नहीं दिखा पाया था. चूंकि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में मुद्दे और चेहरे बदल जाते हैं, इसलिए तेजस्वी को उम्मीद है कि 2020 से बेहतर परिणाम उन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मिलेगा. इसका अंदाजा उपचुनाव से ही लग जाएगा. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को कामयाबी की पृष्ठभूमि भी उससे पहले हुए उपचुनावों में ही तैयार हुई थी. तब ज्यादातर सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा कर लिया था.
उपचुनाव के नतीजे बता देंगे प्रशांत की ताकत
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने दो साल तक बिहार में पदयात्रा कर बदलाव का जो माहौल तैयार किया है, उसकी भी परीक्षा इस उपचुनाव में हो जाएगी. प्रशांत का दावा है कि लोग बदलाव चाहते हैं. घिसी-पिटी राजनीति से लोग ऊब गए हैं. लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे दो चेहरों के इर्दगिर्द घूमती रही बिहार की राजनीति को बदलने के लिए उन्होंने अच्छे और नए चेहरों को मैदान में उतारने का फैसला किया है. इस क्रम में सेना के रिटायर्ड जेनरल एसके सिंह को उन्होंने उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया तो बाकी क्षेत्रों में भी नए चेहरे उतारे हैं. हालांकि एसके सिंह के चुनाव लड़ने पर ही संशय पैदा हो गया है. बताया जा रहा है कि वे बिहार के वोटर ही नहीं हैं. एनडीए और इंडिया ब्लाक पुरानी लीक पर ही चल रहे हैं. अगर प्रशांत किशोर अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि होगी. नाकाम रहे तो जन सुराज के सपने की हवा निकल जाएगी.
यूपी CM योगी को दिखानी होगी अपनी ताकत
यूपी में भाजपा ने दी खुली छूट
उत्तर प्रदेश की बात करें तो इस बार भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उम्मीदवार चयन में उन्हें खुली छूट दी है. अंतर्कलह को भी भाजपा ने खत्म करने की पूरी कोशिश की है. योगी से नाराज रहने वालों को भाजपा ने नियंत्रण में रहने की हिदायत दी है. योगी अगर उपचुनाव में बेहतर परिणाम दे पाए तो मानना पड़ेगा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की खस्ताहाली की वास्तविक वजह वही थी, जो उन्होंने बताया था. वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की दृष्टि से योगी को उपचुनाव में अपना परफार्मेंस सुधारना होगा. इसलिए उपचुनाव उनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लाक में टिकट बंटवारे को लेकर जो खटपट दिख रही है, उससे भी योगी की राह आसान हो सकती है. पर, असली चाबी तो जनता के हथ में है.
बंगाल में TMC को जीत कायम रखने की चुनौती
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने 29 सीटें जीत कर भाजपा की तैयार की हुई जमीन खिसका दी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को 22 सीटों पर जीत मिली थी. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या 29 तक पहुंच गई. भाजपा की सीटें 2019 के 18 से घट कर इस बार 12 रह गईं। इसे ममता बनर्जी की आंधी के रूप में लोगों ने माना. भाजपा को बंगाल में अपनी खोई जमीन हासिल करने की चुनौती है. दूसरी ओर कई तरह के भ्रष्टाचार और महिला अत्याचार के खिलाफ बने माहौल के बीच ममता बनर्जी को यह साबित करना है कि उनके खिलाफ यह भाजपा की साजिश है.
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FIRST PUBLISHED :
October 22, 2024, 08:39 IST