करीब तीन हफ्ते इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में रहने के बाद लखनऊ के शुभांशु शुक्ला वापस पृथ्वी पर लौट रहे हैं. उनका शटल यान अटलांटिक समुद्र में उतरेगा. वहां से उन्हें और अन्य तीन एस्ट्रोनॉट को निकाल कर नासा के हास्पिटल ले जाया जाएगा, जहां नासा के डॉक्टर उनका चेकअप करेंगे. फिर वो यहीं करीब एक हफ्ते तक आइसोलेशन में रखे जाएंगे.
अंतरिक्ष में माहौल अलग होता है और पृथ्वी पर बिल्कुल अलग. लिहाजा पृथ्वी के बदले माहौल से तालमेल बिठाने के लिए आइसोलेशन जरूरी हो जाता है. वहां वह अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. तैरने जैसी स्थिति में होते हैं. सोना, जागना और अपने सारे काम करने का तरीका वहां पृथ्वी से एकदम अलग इसलिए भी होता है, क्योंकि वहां ग्रेविटी नहीं होती.
सवाल – अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी लौटने के बाद क्यों अलग रखे जाते हैं?
– अंतरिक्ष यात्रा से और अंतरिक्ष के माहौल में कई दिनों तक रहने के बाद वापस आने पर शरीर में कई जटिलताएं हो जाती है. वहां माहौल और वातावरण भी एकदम अलग होता है, प्रतिरक्षा प्रणाली भी अलग मोड में चली जाती है, लिहाजा वापस आने पर यहां पृथ्वी के माहौल लायक होने के लिए आइसोलेशन में रखकर उस लायक बनाया जाता है.
इसी वजह से अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी लौटने के बाद आमतौर पर कुछ दिन तक सामाजिक संपर्क से अलग रखा जाता है. इसके पीछे कई वैज्ञानिक, चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं, जो दशकों से स्पेस मिशनों का अहम हिस्सा हैं.
सवाल – क्वारंटीन की शुरुआत कैसे हुई?
-सन् 1969 में जब Apollo-11 मिशन के नील आर्मस्ट्रॉन्ग, बज़ एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस पहली बार चांद से लौटे तो नासा को इस बात की आशंका थी कि शायद वे चांद से कोई अनजाना वायरस या बैक्टीरिया लेकर आ सकते हैं. हालांकि चांद पर जीवन का कोई प्रमाण नहीं था, फिर भी एहतियात के तौर पर उन्हें 21 दिन तक क्वारंटीन में रखा गया. उन्हें खासतौर पर बनाई गई एक लैब में रखा गया, जो ह्यूस्टन अमेरिका में बनाई गई. यहीं से क्वारंटीन की परंपरा स्पेस मिशन से लौटने के बाद शुरू हुई, जो आज भी बदली नहीं है. ये एक एयरटाइट कंटेनरनुमा घर था, जो विमान से लेकर हॉस्पिटल तक उनके साथ गया.
सवाल – अब अंतरिक्ष से पृथ्वी लौटने के बाद एस्ट्रोनॉट्स् को आइसोलेशन में क्यों रखते हैं, उसकी क्या वजहें होती हैं?
– अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण शरीर का इम्यून सिस्टम कुछ कमजोर हो जाता है. लौटने के बाद भीड़ में जाने से कोई सामान्य संक्रमण (सर्दी, फ्लू, वायरस आदि) भी उनके लिए गंभीर हो सकता है. इसलिए उन्हें पहले कुछ दिन अलग रखा जाता है.
अंतरिक्ष में लगातार रहने से मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं. हड्डियों का घनत्व 1-2% प्रति माह घट जाता है. ब्लड प्रेशर और दिल की धड़कन पर असर पड़ता है. संतुलन और चलने-फिरने की क्षमता भी प्रभावित होती है. लौटने के बाद खास मेडिकल परीक्षण, फिजिकल थैरेपी और रिहैबिलिटेशन की ज़रूरत होती है. इसी लिए उन्हें आइसोलेशन में रखकर इन सब चीजों को सामान्य स्थिति में लाया जाता है.
अंतरिक्ष में लंबे समय तक अलग-थलग रहना, छोटे स्पेस में काम करना और पृथ्वी से दूर होने का तनाव मानसिक रूप से थका देने वाला होता है. लौटने के बाद उनकी मानसिक स्थिति का भी आंकलन किया जाता है ताकि कोई डिप्रेशन, चिंता जैसी समस्या न हो.
सवाल – क्या क्वारेंटीन इस वजह से भी होता है कि अंतरिक्षयात्री अपने साथ कोई से बैक्टीरिया तो लेकर नहीं आ गया?
– अब तक कोई स्पेस-जर्म या खतरनाक सूक्ष्मजीव नहीं मिला, फिर भी एहतियात के तौर पर यह देखा जाता है कि कहीं वे अंतरिक्ष से कोई अनजाना सूक्ष्मजीव तो साथ लेकर नहीं आए. स्पेस स्टेशनों में रहने के दौरान वहां के माइक्रोब और पृथ्वी के बैक्टीरिया में फर्क आता है, जो लौटकर इंसानों के लिए समस्या बन सकते हैं.
सवाल – क्या आइसोलेशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर की स्टडी भी की जाती है?
– हां, हर मिशन के बाद डॉक्टर अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर अंतरिक्ष का क्या प्रभाव पड़ा, इसकी स्टडी करते हैं. ये डेटा भविष्य के स्पेस मिशन और मार्स/मून कॉलोनी प्रोजेक्ट्स के लिए बेहद जरूरी हैं.
सवाल – नासा आमतौर पर मिशन से लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को कहां रखा जाता है?
– नासा ने इसके लिए ह्यूस्टन में जॉनसन स्पेस सेंटर बना रखा है. फ्लोरिडा में भी कैनेडी स्पेस सेंटर में भी अंतरिक्ष यात्रियों के लिए आइसोलेशन सेंटर बनाए जाते हैं. रूस ने अपना ऐसा सेंटर मास्को के स्टार सिटी में बना रखा है. यूरोप में जर्मनी में सेंटर है. भारत में अब तक तो ये स्थिति नहीं आई है लेकिन जब भारत भविष्य में अपने अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस में भेजेगा तो उसके लिए बेंगुलुरु में बायो आइसोलेशन सेंटर प्रस्तावित है.
सवाल – अब स्पेस मिशन से लौटने के बाद अंतरिक्षयात्रियों के साथ क्या होता है?
– ISS से लौटने वाले यात्रियों को लैंडिंग के बाद मेडिकल स्टाफ तुरंत संभाल लेता है. बॉडी वाइटल्स, ब्लड सैंपल, हार्ट, ब्रेन MRI आदि किए जाते हैं. 5-7 दिन निगरानी में रखा जाता है. एक्सरसाइज और मनोवैज्ञानिक सलाह दी जाती है. फिर मीडिया, परिजन और सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने की अनुमति मिलती है.
सवाल – क्या कभी ऐसा हुआ है कि अंतरिक्ष मिशन से लौटने के बाद अंतरिक्षयात्री की तबीयत बहुत खराब हो गई हो?
– हां, कई बार ऐसा हो चुका है. कई बार इतनी गंभीर हो गईं कि तत्काल मेडिकल इमरजेंसी मानी गईं.
सोयुज 11 (सोवियत संघ 1971) – सबसे दुखद हादसा सोयूज़ 11 मिशन में हुआ. तीनों कॉस्मोनॉट जब पृथ्वी लौट रहे थे, तो उनके कैप्सूल का वेंटिलेशन वाल्व डिप्रेसुराइज हो गया, जिससे अंतरिक्षयान के अंदर ऑक्सीजन खत्म हो गई. तीनों की मौत ऑर्बिट में ही हो गई. जब कैप्सूल लैंड हुआ और मेडिकल टीम ने दरवाजा खोला तो तीनों अपने-अपने सीट बेल्ट से बंधे, मृत अवस्था में मिले.
1968 में अपोलो 7 मिशन में कमांडर वॉल्टर शिर्रा को मिशन के दौरान ही सर्दी-जुकाम और बुखार हो गया. अंतरिक्ष में कंजेशन के कारण सिरदर्द और सांस लेना बहुत मुश्किल हो गया. शरीर की इम्यूनिटी पहले ही कमजोर थी और छोटे कैप्सूल में हालत और खराब हो गई. लैंडिंग के बाद उन्हें तुरंत मेडिकल इमरजेंसी में रखा गया.
1970 में अपोलो 13 मिशन में धरती पर वापस लौटते समय अंतरिक्ष यान में ऑक्सीजन टैंक फट गया था. अंतरिक्ष यात्री जेम्स लवेल, जॉन स्विगर्ट, फ्रेड हेज़ कई दिन बेहद कम तापमान और सीमित ऑक्सीजन में रहे. फ्रेड हेज़ को लौटने से पहले यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन और तेज बुखार हो गया. लैंडिंग के बाद उन्हें इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट किया गया.