इस बार धर्मशाला में जब दलाई लामा अपना 91वां जन्मदिन मनाएंगे तो ये मौका खास होने वाला है. क्योंकि कहा जा रहा है कि वह इस अवसर पर अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर सकते हैं. तिब्बती बौद्ध धर्म में नए दलाई लामा का चयन विशेष पारंपरिक प्रक्रिया के जरिए किया जाता है. ये पुनर्जन्म से भी जुड़ा होता है. इस प्रक्रिया में चीन भी अड़ंगी लगाना चाहता है.
चीन का कहना है कि उसके नेताओं को दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मंजूरी देने का अधिकार है; लेकिन तिब्बतियों को संदेह है कि चयन में चीन की कोई भी भूमिका समुदाय पर प्रभाव डालने की एक चाल है. इस बार उनके उत्तराधिकारी का चयन केवल उनके धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं बल्कि चीन, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए भी रणनीतिक कारणों से दिलचस्पी का विषय है.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा को दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में एक माना जाता है. उनके अनुयायी बौद्ध धर्म से कहीं आगे तक फैले हुए हैं. तिब्बत से आने के बाद दलाई लामा ने धर्मशाला को अपने निर्वासित सरकार की राजधानी बनाया. तब से वह यहीं से दुनियाभर में फैले तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक प्रमुख हैं. अपने अनुयायियों के साथ भारत आए हुए भी उन्हें 66 साल हो चले हैं.
सवाल – इस बार क्यों माना जा रहा है कि दलाई लामा अपने उत्तराधिकारी के बारे में बताएंगे?
– दलाई लामा 1959 से ही हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं, जब वे माओत्से तुंग के कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ़ एक असफल विद्रोह के दौरान भागकर आए थे. उन्होंने हाल में एक किताब लिखी है, जो मार्च 2025 में प्रकाशित हुई है. इस किताब का टाइटल है ” वॉयस फॉर द वॉइसलेस ” . इसमें उन्होंने लिखा कि वे अपने उत्तराधिकार के बारे में वह अपने 90वें जन्मदिन के आसपास जानकारी देंगे. इसके बारे में सबकुछ बताएंगे.
सवाल – मौजूदा दलाई लामा का चयन कब और कैसे हुआ?
– तिब्बती परम्परा में यह मान्यता है कि वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु की आत्मा उसकी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेती है. 14वें दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई, 1935 को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के एक किसान परिवार में ल्हामो धोंडुप के रूप में हुआ था. वह दो वर्ष के थे, तब उन्हें पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया.
दलाई लामा की वेबसाइट के अनुसार, तिब्बती सरकार द्वारा भेजे गए एक खोज दल ने कई संकेतों के आधार पर यह निर्णय लिया. खोजकर्ताओं को तब यकीन हुआ जब उस बच्चे ने 13वें दलाई लामा के सामान को “यह मेरा है, यह मेरा है” कहते हुए पहचाना.
1940 की सर्दियों में ल्हामो थोंडुप को आज के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की राजधानी ल्हासा के पोताला पैलेस में ले जाया गया. आधिकारिक तौर पर तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता के रूप में स्थापित किया गया.
सवाल – मौजूदा दलाई लामा का उत्तराधिकारी कैसे चुना जाएगा?
– मार्च 2025 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ” वॉयस फॉर द वॉइसलेस “ में दलाई लामा ने कहा कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा. वह बताएंगे कि चीन के बाहर उनका उत्तराधिकारी कहां होगा. गादेन फोडरंग फाउंडेशन के अधिकारियों को उनके उत्तराधिकारी को खोजने और मान्यता देने का काम सौंपा जाएगा. वर्तमान दलाई लामा ने अपने धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों के संबंध में “दलाई लामा की परंपरा और संस्था को बनाए रखने और समर्थन करने” के लिए 2015 में इस फाउंडेशन की स्थापना की थी. इसमें उनके कई सहयोगी शामिल हैं.
सवाल – इस उत्तराधिकारी तलाश परंपरा में क्या होता है?
– दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन एक पारंपरिक तिब्बती बौद्ध प्रक्रिया के तहत किया जाता है, जिसे “पुनर्जन्म” की मान्यता पर आधारित माना जाता है. जब वर्तमान दलाई लामा का निधन हो जाता है, तो माना जाता है कि उनकी आत्मा किसी नवजात शिशु में पुनर्जन्म लेती है. उस शिशु की खोज और पहचान के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:
संकेत और सपनों की व्याख्या – वरिष्ठ भिक्षु और आध्यात्मिक गुरु सपनों, धार्मिक संकेतों और दलाई लामा की मृत्यु के समय आईं विशेष घटनाओं का अध्ययन करते हैं.
खोजी दल का गठन- एक खोजी दल संभावित स्थानों पर जाता है, जहां पुनर्जन्म की संभावना मानी जाती है.
परीक्षण – संभावित बच्चों को 13वें या 14वें दलाई लामा की वस्तुएं दिखाई जाती हैं. यदि बच्चा उन वस्तुओं को पहचान लेता है या “यह मेरा है” जैसा दावा करता है, तो उसे पुनर्जन्म मान लिया जाता है.
आध्यात्मिक और धार्मिक परीक्षण – बच्चे की आध्यात्मिक क्षमता, व्यवहार और अन्य संकेतों का परीक्षण भी किया जाता है.
घोषणा – जब खोजी दल और वरिष्ठ भिक्षु संतुष्ट हो जाते हैं, तब उस बच्चे को औपचारिक रूप से दलाई लामा घोषित किया जाता है.
सवाल – ये प्रक्रिया तब इस्तेमाल होती थी जब तिब्बत स्वायत्त था, चीन का उस पर कब्जा नहीं हुआ था, अब क्या होगा?
– दलाई लामा ने अपनी हालिया किताब और बयानों में संकेत दिया है कि वे अपने उत्तराधिकारी के चयन की प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश छोड़ेंगे.
उन्होंने यह भी कहा है कि अगला दलाई लामा चीन के बाहर जन्म लेगा, ताकि चीन सरकार की दखलंदाजी नहीं हो सके.
दलाई लामा ने यह भी कहा है कि भविष्य में उत्तराधिकारी एक लड़की, वयस्क या किसी अन्य रूप में भी हो सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय तिब्बती बौद्ध परंपरा और तिब्बती जनता की सहमति से ही होगा.
सवाल – दलाई लामा के नहीं होने की स्थिति और नए उत्तराधिकारी के तैयार होने के बीच दुनियाभर में तिब्बती बौद्ध धर्म के लोगों का प्रमुख कौन होगा. उनका कामकाज कौन चलाएगा?
– दलाई लामा की तरह ही हिमालय के धर्मशाला शहर में स्थित निर्वासित तिब्बती संसद का कहना है कि निर्वासित सरकार के लिए अपना काम जारी रखने के लिए एक प्रणाली स्थापित की गई है. उसके जरिए तिब्बती सरकार चलती रहेगी और दलाई लामा का कामकाज भी देखा जाता रहेगा.
सवाल – इस बारे में चीन क्या कहता है?
– चीन का कहना है कि उसके नेताओं को शाही समय से विरासत के रूप में दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मंजूरी देने का अधिकार है. चयन अनुष्ठान, जिसमें संभावित पुनर्जन्म के नाम एक सुनहरे कलश से निकाले जाते हैं, 1793 में किंग राजवंश के दौरान शुरू हुआ था.
चीनी अधिकारियों ने बार-बार कहा है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म का निर्णय राष्ट्रीय कानूनों के आधार पर किया जाना चाहिए, जो स्वर्ण कलश के उपयोग तथा पुनर्जन्म के जन्म को चीन की सीमाओं के भीतर निर्धारित करते हैं. चीन भी दलाई लामा के चयन में दखल देना चाहता है, लेकिन तिब्बती समाज और निर्वासित सरकार केवल दलाई लामा द्वारा बताए गए उत्तराधिकारी को ही मान्यता देंगे
सवाल – तिब्बती क्यों चीन के इस कदम को लेकर सशंकित हैं?
– कई तिब्बतियों को संदेह है कि इस चयन में चीन की भूमिका समुदाय पर प्रभाव डालने की एक चाल है. एक बौद्ध नेता ने कहा है कि धर्म को अस्वीकार करने वाले चीनी कम्युनिस्टों के लिए “लामाओं के पुनर्जन्म की प्रणाली में हस्तक्षेप करना अनुचित है, दलाई लामा की तो बात ही छोड़िए.”
बीजिंग हमेशा से दलाई लामा को “अलगाववादी” करार देता है. उनकी तस्वीर दिखाने या उनके प्रति किसी भी प्रकार की सार्वजनिक भक्ति प्रदर्शित करने पर प्रतिबंध लगाता है.
मार्च 2025 में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि दलाई लामा एक राजनीतिक निर्वासित हैं, जिन्हें “तिब्बती लोगों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं है”. चीन तिब्बती लोगों के अधिकारों के दमन से इनकार करता है और कहता है कि उसके शासन ने पिछड़े क्षेत्र में दासता को समाप्त किया तथा समृद्धि की शुरुआत की.
सवाल – भारत और अमेरिका इसमें क्या भूमिका निभा सकते हैं?
– भारत में 1,00,000 से अधिक तिब्बती बौद्ध रहते हैं, जो वहां अध्ययन और काम करने के लिए स्वतंत्र हैं.हालांकि दलाई लामा की भारत में मौजूदगी चीन की आंखों में हमेशा से गड़ती रही है. उस वजह से वह भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी भी मानता रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका बार बार कहता रहा है कि वह तिब्बतियों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. अमेरिकी सांसदों ने पहले कहा था कि वे चीन को दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को प्रभावित करने की अनुमति नहीं देंगे.
2024 में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक कानून पर हस्ताक्षर किए थे, जो तिब्बत की अधिक स्वायत्तता की मांग पर विवाद को हल करने के लिए बीजिंग पर दबाव डालता है.