Explainer: बहराइच का भेड़िया, बेतिया में बाघ... इंसान को क्यों बना रहा निवाला?

3 weeks ago

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में भेड़ियों का आतंक अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि बिहार के बेतिया में बाघ की दहशत शुरू हो गई है. बहराइच में भेड़ियों के हमले से अब तक चार बच्चों सहित 6 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं, 19 लोगों के जख्मी होने की खबर है. इस बीच बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित बेतिया में वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व के एक बाघ ने एक बुजुर्ग किसान पर हमला कर दियाा, जिसमें उसकी मौत हो गई.

वैसे वन्यजीवों के हमले की ये घटनाएं नई नहीं हैं. पिछले साल भी बहराइच में ही भेड़ियों ने 10 से अधिक बच्चों को निशाना बनाया था. वहीं वेस्ट चंपारण में 2022 में एक बाघ ने नौ लोगों की जान ले ली थी. लेकिन सवाल यह है कि आखिर जंगली जानवर अब इंसानों को अपना निवाला क्यों बना रहे हैं? क्या है इसका कारण? चलिये विस्तार से समझते हैं…

क्यों बढ़ रहा जंगली जानवरों का हमला?

भारत जैसे देश में दुनिया की 18% आबादी महज 2.4% भूमि पर रहती है. यह पिछले कुछ वर्षों में इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष का हॉटस्पॉट बन चुका है. यहां हर साल ऐसे हमलों की औसतन 80,000 घटनाएं दर्ज होती हैं, जिनमें फसलें बर्बाद होना, पशुधन का नुकसान और मानव मौतें शामिल हैं.

बहराइच में भेड़िए रात के अंधेरे में नहीं, अब दिन में भी हमला कर रहे हैं. इस साल 9 सितंबर से शुरू हुए इन हमलों में भेड़िया एक चार साल की बच्ची ज्योति को उठा ले गया. वहीं तीन माह की एक बच्ची को उनकी मां की गोद से छीन लिया.

इसी तरह बेतिया के मंगुराहा वन क्षेत्र में स्थित खेखरिया टोला गांव में किशुन महतो नामक किसान अपने मवेशियों को खेत में चरा रहे थे, तभी बाघ ने उन पर हमला कर दिया और घसीटकर जंगल में ले गया. इस घटना से ग्रामीणों में हड़कंप मच गया. उन्होंने तुरंत वन विभाग को सूचना दी. काफी तलाश के बाद वन विभाग के कर्मियों को जंगल से उनकी लाश मिली.

जंगलों में घुस आए लोग

ये जानवर भूखे या डरे हुए नहीं, बल्कि बेघर हो चुके हैं. पर्यावरणविदों के अनुसार, यह संघर्ष केवल स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि वैश्विक जलवायु संकट का प्रतिबिंब है. इसका सबसे बड़ा कारण है जंगलों की कटाई और वहां इंसानी बसाहट…

न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल 1 लाख हेक्टेयर से अधिक वन भूमि खेती करने, घर और सड़कें बनाने के लिए काटी जा रही हैं. बहराइच में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है, जहां गन्ने की खेती ने जंगलों को निगल लिया है. भेड़िए ऊंचे गन्ने के खेतों में छिपते हैं और मानव बस्तियों तक पहुंच जाते हैं.

इसी तरह, बेतिया में वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व के आसपास अवैध लकड़ी कटाई और खनन ने बाघों के शिकार (जैसे हिरण) को कम कर दिया, जिससे वे पशुधन और इंसानों की ओर रुख कर रहे हैं.

पेड़ों की इस बेतरतीब कटाई से न केवल वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट होता है, बल्कि जंगल भी टुकड़ों में बंट जाते हैं. जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह जाना मुश्किल हो जाता है, जिससे वे सड़कों पर आ जाते हैं और दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं. पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, 2020-21 से 2025 तक हाथियों ने 69,071 एकड़ फसलें बर्बाद कीं, लेकिन यह संख्या भेड़ियों और बाघों के लिए भी लागू होती है. इस कटाई से जैव विविधता भी प्रभावित होती है. जंगलों में शिकार की कमी से भेड़िए और बाघ ‘आदमखोर’ बन जाते हैं.

जंगल की जमीनों पर इंसानी दखल

जंगलों का अतिक्रमण इस कटाई का ही विस्तार है. बढ़ती आबादी के चलते लोग खेती, बस्तियां बसाने या चारागाह के लिए जंगलों पर कब्जा कर लेते हैं. भारत में 5% से कम भूमि संरक्षित है, और उसके चारों ओर घनी आबादी बसी है. बहराइच के 50 से अधिक गांव घाघरा नदी के बाढ़ वाले मैदानों पर बसे हैं, जहां भेड़िए पहले स्वाभाविक रूप से रहते थे.

WWF के अनुसार, इस अतिक्रमण से इंसानों और वन्यजीव के बीच संघर्ष बढ़ता है, क्योंकि जानवर ‘गलती से’ इंसानों को शिकार समझ लेते हैं. परिणामस्वरूप, इंसान और जानवर दोनों खतरे में पड़ जाते हैं.

जलवायु परिवर्तन का भी बड़ा रोल

जलवायु परिवर्तन इस संघर्ष को और जटिल बना रहा है. IPCC की रिपोर्ट के मुताबिक, बदलते मौसम से भोजन और पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है, जिससे जानवर मानव क्षेत्रों में चले आते हैं.

भारत में सूखा और बाढ़ की बढ़ती तीव्रता ने वन्यजीवों को बेघर कर दिया. बहराइच में घाघरा नदी की बाढ़ भेड़ियों को खेतों की ओर धकेल रही है. वहीं जलवायु परिवर्तन की वजह से वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व में बारिश का पैटर्न बिगड़ गया है, जिससे बाघों का प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहा है. गर्मी से जानवर रेबीज जैसी बीमारियों की चपेट में आते हैं, जो हमलों को और आक्रामक बनाती है.

इस संकट का फिर क्या है समाधान?

इस संकट से निपटने के लिए कई स्तरों पर प्रयास करने की जरूरत है. केंद्र सरकार की ‘नेशनल ह्यूमन-वाइल्डलाइफ कन्फ्लिक्ट मिटिगेशन स्ट्रैटेजी’ (2021) प्रजाति-विशेष दिशानिर्देश देती है… इसके तहत जंगल में पेड़ों अवैध कटाई पर सख्ती से रोक और दोबारा से पेड़ लगाने पर जोर के साथ वहां वन संरक्षित क्षेत्र में बसी इंसानी बस्तियों को हटाने जैसे कदम शामिल हैं.

बहराइच में भेड़िये और बेतिया में हुआ बाघ का हमला चेतावनी हैं. हमारी लालच और लापरवाही प्रकृति को विद्रोही बना रही है. जलवायु परिवर्तन, कटाई और अतिक्रमण जैसे कारक न केवल जानलेवा हैं, बल्कि पारिस्थितिकी को भी असंतुलित कर रहे हैं. ऐसे में अगर हम ‘आत्मनिर्भर भारत’ के साथ ‘आत्मनिर्भर प्रकृति’ को अपनाएं, तो ये जानवर दुश्मन नहीं, बल्कि हमारी विरासत बन सकते हैं. समय है कि हम कार्रवाई करें, वरना वन्यजीवों का संघर्ष और भयानक रूप ले सकता है.

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