France Protest News in Hindi: अब तक नेपाल में जेन-जी विद्रोह की सुर्खियां दुनिया भर में छाई हुई हैं, लेकिन अब दुनिया के 5 शक्तिशाली देशों में से एक फ्रांस में जो हो रहा है, वो नेपाल से भी बड़ा होता दिखाई दे रहा है. अमूमन फ्रांस को यूरोप को शांत देशों में से एक माना जाता है. इसे आर्ट एंड कल्चर का कैपिटल भी कहा जाता है. लेकिन वो कौन सी वजह है, जिसकी वजह से एक बार फिर यूरोप का क्रांति कैपिटल बनने की राह पर चल पड़ा है फ्रांस? जी हां, फ्रांस की धरती से उठी तीन-तीन क्रांतियों ने दुनिया भर में सत्ता और लोकतंत्र का सबक सिखाया है, एक रोड मैप दिया है. तो क्या फ्रांस में वही सबकुछ होने जा रहा है, जो 18वीं और 19वीं शताब्दी में हुआ...? आज की स्पेशल रिपोर्ट में पूरा मसला समझिए- आखिर दुनिया का एक कुलीन देश माने जाने वाले फ्रांस में किसने बोए क्रांति-बीज?
क्या फ्रांस में जन्म ले रही है नई क्रांति?
तो क्या फ्रांस में कोई नई क्रांति नए बीज मंत्र के साथ आकार ले रही है? ये सवाल दुनिया भर की सुर्खियों में है. ऐसा इसलिए, क्योंकि फ्रांस में जनक्रांति की जड़े आधुनिक इतिहास में करीब ढाई सौ साल पुरानी है. आम तौर पर शांत दिखने वाले इस देश में जब भी जनता सड़क पर उतरी है, तस्वीरें ऐसे ही आक्रोश से भरी दिखी हैं.
फ्रांस से आई तस्वीरों में अब तक विद्रोह को देखें, तो कुल जमा हालात ऐसी बयां होती हैं. 1 लाख लोगों ने बुधवार को सड़कें घेर लीं, जिससे हालात ‘आउट ऑफ कंट्रोल’ हो गए. राष्ट्रपति मैक्रों के आदेश पर देशभर में सेना के 80 हजार जवान तैनात किए गए हैं लेकिन वे भी जनाक्रोश को दबा नहीं पा रहे हैं.
ये सिर्फ संयोग ही है, कि फ्रांस में जनता का विद्रोह ऐसे समय में सड़कों पर आया, जब नेपाल में तख्तापलट हो चुका है. मौजूदा प्रधानमंत्री ओली कुर्सी छोड़ अज्ञातवस में जा चुके हैं. पूरे नेपाल में आराजक स्थिति है, तो क्या यही हालात फ्रांस में भी फुल स्केल पर होने वाला है.
मैक्रों के खिलाफ इतना गुस्सा कैसे भड़क गया?
फ्रांस की राजधानी पेरिस से आ रही तस्वीरें आखिर क्या संकेत दे रही है. फ्रांस के जिस युवा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को 8 साल से लोककल्याण कारी सत्ता का आदर्श माना जा रहा था. मैक्रों ने खुद कुछ ऐसे ही प्रोजेक्ट कहा था. 2016 में मैक्रों ने कहा था, 'मैं वामपंथी विचारधारा से प्रभावित राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के अधीन सिर्फ एक मंत्री हूं. मैं वामपंथी भी हूं और उदारवादी भी.'
ओलांद सरकार में मंत्री रहे वही इमैनुएल मैक्रों जब 2017 के चुनाव में फ्रांस के राष्ट्रपति बने, तो उन्हें वर्ल्ड मीडिया ने नियो लिब्रल, यानी नव-उदारवादी राजनेता कहा गया. लेकिन आज...? मैक्रों के खिलाफ ही युवा कुलीनों का गुस्सा इतना कैसे भड़क गया...? इतना, कि मैक्रों की सत्ता का पूरा मूल मंत्र, इन चार प्वाइंट्स के साये में जन आक्रोश की आगोश में जा चुका है.
मैक्रों का ‘मूल-मंत्र’ फेल?
1- जन विरोधी नीतियां
2. बजट में कटौती
3- मध्यवर्ग पर दबाव
4 अमीरों के पक्षधर
प्रधानमंत्री बदलना जनता को नहीं आया रास
पहले इन चार प्वाइंट्स पर नजर जमाएं, क्योंकि सत्ता के खिलाफ ये जनता के आक्रोश की बुनियादी वजह है. ये वजह फ्रांस जैसे विकसित देश में भी है. इन्हें लगता है कि कभी इनके दिल में बसने वाले राष्ट्रपति मैक्रों की नीतियां आम जनता के हित में नहीं रह गई है. मौजूदा बजट में कटौती कर इन्होंने ना सिर्फ मध्य और श्रममिक वर्ग पर दबाव बढ़ाया है, बल्कि ये संकेत दिया है, कि ये सिर्फ अमीरों के हित में काम करते हैं.
तो 8 साल में इमैनुअल मैक्रों ने ऐसा क्या किया, कि एक उदारवादी छवि और जनता के हितैषी समझे जाने वाले राष्ट्रपति अपनी ही आम जनता की नजर में अतिरेकी हो गए...? इस सवाल को समझना इसलिए जरूरी है, क्योंकि जनता का प्रदर्शन ऐसे समय पर उग्र हुआ है, जब फ्रांस में नए प्रधानमंत्री को शपथ दिलाकर एक पॉजिटिव मैसेज देने की कोशिश हो रही थी. ये बात फ्रांस की सत्ता के सामने और भी खतरनाक संकेत पेश कर रही है.
2 साल में चेंज हो गए 5 प्रधानमंत्री
फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों की सत्ता में अनिश्चितता का आलम आप इसी बात से समझ सकते हैं, कि पिछले 2 साल में पांच प्रधानमंत्री बदले गए. विरोध प्रदर्शन से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री फ्रांसवा बायरू को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटाया गया. ये एक साल में तीसरे पीएम थे, जिन्हें हटाया गया. अब जनता पूछ रही है क्यों? राष्ट्रपति मैक्रों ने मंगलवार को ही सेबास्टियन लेकोर्नू को नया प्रधानमंत्री घोषित किया. लेकिन कार्यभार संभालने से पहले ही जनता का आक्रोश सड़को पर फूट पड़ा. आखिर फ्रांस में इतनी अनिश्चितति, इतने आक्रोश की वजह सिर्फ राष्ट्रपति मैक्रों है या कारण कुछ और भी है.
फ्रांस में जनता का ये नया ब्लॉक मूवमेंट है. नाम है ब्लॉक एवरीथिंग. पहले इस जन आंदोलन का शब्दार्थ समझिए. ‘BLOCK EVERYTHING’ MOVEMENT मतलब- सत्ता की पूर्ण नाकेबंदी. शब्दार्थ के बाद अब इस आंदोलन का भावार्थ समझिए. आंदोलन का बीज विचार ये है, कि अगर देश की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था जनता के काम नहीं कर पा रही, तो इसे तोड़ दो.
प्रदर्शनकारियों का संदेश सीधा है, कि सिस्टम नाकाम है, तो पूरी मशीनरी के पूर्जे-पूर्जे को रोक दो. इसी सोच के चलते फ्रांस में हर तरफ कोहराम मचा है.. हाईवे से लेकर शहर शहर हर तरफ प्रदर्शनकारियों ने बवाल काट रखा है. हालात काबू में रखने के लिए सरकार ने 80,000 सुरक्षाबलों को तैनात किया है. जिनमें से 6,000 सिर्फ पेरिस में मौजूद हैं. फ्रांस की मीडिया के मुताबिक इसमें करीब 1 लाख से ज्यादा लोग अकेले पेरिस में हुए प्रदर्शन में शामिल हुए हैं.
यलो वेस्ट विद्रोह की याद दिला रहा आंदोलन
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ आंदोलन दिखने में अलग जरूर है, लेकिन लेकिन इसकी गूंज 2018 के यलो वेस्ट विद्रोह की याद दिला रही है. इस आंदोलन में मार्च 2018 से लेकर अक्टूबर 2018 तक 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था. इसे यलो वेस्ट्स प्रोटेस्ट नाम दिया गया था, जो कि राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा घोषित किए गए कार्बन टैक्स के विरोध में खड़ा हुआ था.
कार्बन टैक्स पर विरोध बड़ी मुश्किल से थमा कि मैक्रों ने पेशन सुधारों की वजह से वादों के घेरे में आ गए. पूरे देश में 8 लाख लोगों ने पेंशन सुधार के प्रावधानों का विरोध किया. हालांकि वो प्रदर्शन इतना हिंसक नहीं था. लेकिन मैक्रो इन तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद नीति निर्माण में जनता के हितों की अनदेखी करते गए.
साल 2020-21 में जब पूरी दुनिया कोविड की दूसरी लहर के चपेट में थी, तब भी राष्ट्रपति मैक्रों अपने कोविड गाइडलाइन्स और श्रमिकों कानूनों में सुधार की वजह से विवादों में घिरे थे. हालांकि 2022 के चुनाव में वो दोबारा राष्ट्रपति चुन लिए गए. लेकिन आज फ्रांस की जनता सवाल पूछ रही है.
क्या 2022 में दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद मैक्रों मनमाने हो गए हैं. ये सवाल इसलिए, कि अपने पहले शासन काल में 3 विरोध प्रदर्शन झेल चुके राष्ट्रपति मैक्रों बार बार जनहित के खिलाफ दिख रहे हैं. इस साल तो हद ही हो गई. इसकी वजह आप जानिए.
फ्रांस- जन आक्रोश की जड़
देश में आर्थिक संकट है. कठोर बजट की तैयारी है. खर्च में €43–44 बिलियन की कटौती है. 2 राष्ट्रीय छुट्टियां हटाई गई हैं. पेंशन योजनाएं स्थगित की गई हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती की गई हैं. देश पर कर्ज बढ़ता जा रहा है. आर्थिक अनिश्चितता का दौर है. बाजार का हाल-बेहाल है. इससे गरीब-मध्यम वर्ग में बेचैनी है.
जब वजहें इतनी सारी हों, और हालात पुलिस के सख्त नियंत्रण से भी बाहर हो, तो क्या समझा जाए, आज का फ्रांस अपने किसी अतीत की क्रांति को दोहराने के दौर से गुजर रहा है...?