Deterioration of India-Canada relations Justin Trudeau: भारत और कनाडा बीते एक साल से अबतक के सबसे महत्वपूर्ण राजनयिक संकट में उलझे हैं. कनाडाई PM ट्रूडो ने जब खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत के एजेंट्स का हाथ होने का आरोप लगाया, तब से बात ऐसी बिगड़ी गई है कि राजनयिकों को निकालना हो या अन्य कड़े फैसले जिनकी वजह से कनाडाई इकोनॉमी की सांसे फूलने लगी हैं, लेकिन अपनी सरकार बचाने के लिए कुछ लोग भारत विरोधी आतंकवादियों के हाथ का खिलौना बनने से बाज नहीं आ रहे हैं.
रस्सी जल गई, पर कुछ लोगों की जिद नहीं जली. भारत विरोधी खालिस्तानियों का बल भी नहीं गया. दरअसल वोट बैंक के लालच में लिए गए ट्रूडो के फैसलों की आलोचना खुद उनकी पार्टी के नेता कर रहे हैं. उन्हें अल्टीमेटम भी मिल चुका है. चुनाव पूर्व हुए तमाम सर्वेक्षणों में भी ट्रूडो की लुटिया डूबना तय माना जा रहा है. इसके बाद भी जाते-जाते वो भारत विरोधियों को खुश करने का मौका नहीं छोड़ रहे.
भारत-कनाडा के रिश्ते कैसे बिगड़ते चले गए?
भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंध 1947 में स्थापित हुए. जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित थे. 1949 में नेहरू की यात्रा के दौरान कनाडा ने परमाणु प्रौद्योगिकी में मदद का हाथ बढ़ाया तो दोनों देशों के रिश्तों में मिठास आई. हालांकि इस रिश्ते को शुरुआत में चुनौतियों का सामना करना पड़ा. खासकर 1948 में जब कनाडा ने कश्मीर में जनमत संग्रह का समर्थन किया. इसके बाद जो तनाव पैदा हुआ, आज तक खत्म नहीं हुआ.
1974 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो उसे कनाडा ने शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उल्लंघन माना. इस तरह दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती चली गई. रही सही कसर कनाडाई नेताओं ने साल 1980 के दशक में भारत में उग्रवाद पर टिप्पणी करते हुए पूरी कर दी.
विवाद की अन्य वजहें और ट्रूडो सरकार की खामोशी
1998 में भारत का परमाणु परीक्षण रहा हो या 1985 एयर इंडिया की फ्लाइट को उड़ा देना जिसमें सवार 329 लोगों की मौत हो गई थी. इसी तरह दिसंबर 2020 में भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन पर ट्रूडो की टिप्पणियों के बाद स्थिति और खराब हो गई थी. भारतीय मूल के लोग वहां मारे जा रहे हैं ट्रूडो सरकार खामोश है. हाल की घटनाओं ने ऐसी चिंताओं को बढ़ा दिया है.
22 जुलाई, 2024 को खालिस्तानी अलगाववादियों द्वारा एडमॉन्टन में BAPS स्वामीनारायण मंदिर में बर्बरता की. यह कृत्य निज्जर के लिए कनाडाई हाउस ऑफ कॉमन्स में एक मिनट का मौन रखे जाने के तुरंत बाद हुआ. इससे ये पता चलता है कि भारत विरोधियों का कनाडा में जलवा बरकरार है, खालिस्तानीयों आतंकियों और भारत विरोधियों को खुले आम शरण दी जा रही है. कनाडाई राजनीतिक दलों के बीच खालिस्तानी भावनाओं को पक्षपातपूर्ण स्वीकृति देना, कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों में इजाफा होने की मूल वजह है. इन हालातों ने कनाडा-भारत के संबंधों को और जटिल बना दिया है.
शीत युद्ध के दौरान संबंध
शीत युद्ध के दौरान, कनाडा ने यूरोप के साथ जुड़कर, भारतीय परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई. कुछ प्रोजेक्ट्स में फंडिग की. वो विभिन्न पहलों के जरिए भारत से जुड़ा. साल 1954 में ट्रॉम्बे परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान में CIRUS परमाणु रिएक्टर की स्थापना उसका उल्लेखनीय सहयोग था. हालांकि, 1974 में भारत के शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट के बाद भारत-कनाडा के संबंध खराब हो गए.
1970 और 1980 के दशक में, जस्टिन ट्रूडो के पिता और तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के फैसलों ने भी कनाडाई विदेश नीति पर असर डाला. उनके फैसलों में कनाडाई हितों को अमेरिका के साथ जोड़ा गया. कनाडा का पूरा फोकस अमेरिका से मजबूत रिश्तों पर हो गया. हालांकि रूस के साथ भारत की दोस्ती से कनाडा इतना चिढ़ गया कि उस दौर में भी भारत के खिलाफ बयानबाजी हुई. 1971 की भारत-सोवियत मैत्री संधि और उसके बाद अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण के बाद दुनिया के हालात तेजी से बदले. भारत और कनाडा के रिश्ते भी इससे अछूते नहीं रहे.
खालिस्तानी उग्रवाद का उदय
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक 1980 के दशक में खालिस्तानी उग्रवाद का कनाडा में उदय हुआ. उस दौरान भी कनाडाई सरकार ने बड़े पैमाने पर बढ़ती अलगाववादी गतिविधियों को नजरअंदाज किया. 1982 में कनाडा ने कॉमनवेल्थ प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया. उसका ये रुख 1985 के एयर इंडिया फ्लाइट 182 में बम धमाके के आरोपियों पर मुकदमा चलाने में विफलता के कारण और भी जटिल हो गया था.