अहमद पटेल: पैसा, भीड़, प्राइवेट जेट… घंटे भर में हर चीज की कर देते थे व्यवस्था!

2 hours ago

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे अहमद पटेल की आज पुण्यतिथि है. 2020 में कोरोना काल में 24-25 नवंबर की रात उनका निधन हो गया था. उनको हमेशा कांग्रेस को संकट से उबारने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है.

Source: News18Hindi Last updated on:November 25, 2024 9:18 AM IST

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 पैसा, भीड़, प्राइवेट जेट… घंटे भर में हर चीज की कर देते थे व्यवस्था!

अहमद पटेल की 2020 में 24-25 नवंबर की रात निधन हो गया था.

मिलनसार, सजग और साफ़-सुथरी छवि वाले अहमदभाई मोहम्मदभाई पटेल बाहरी दुनिया के लिए हमेशा एक गूढ़ पहेली बने रहे, लेकिन जो लोग कांग्रेसी संस्कृति से परिचित हैं, उनके लिए वे एक अनमोल संपत्ति थे. पार्टी कोषाध्यक्ष के नाते पटेल का काम सिर्फ़ फंड की व्यवस्था करना भर नहीं था, बल्कि भीड़ जुटाना और हर स्तर पर समर्थन हासिल करना भी उनके ज़िम्मे था. देश में ऐसा कोई राज्य नहीं था, जहां निर्वाचित प्रतिनिधि से लेकर जिला स्तर के पार्टी कार्यकर्ता तक निजी स्तर पर पटेल को न जानते हो. एक घंटे से भी कम समय में पैसा, भीड़, प्राइवेट जेट्स और अन्य चीज़ों का इंतज़ाम करने की उनकी क़ाबिलियत से हर कोई वाक़िफ़ था. और यही वजह है कि पार्टी को ज़रूरत पड़ने पर सबसे पहले उन्हें ही याद किया जाता था.


हर किसी पर था इनका ‘अहसान’!

कांग्रेस हलकों में ब्यूरोक्रेसी, मीडिया और बिज़नेस घरानों तक पटेल की पहुंच के तमाम क़िस्से प्रचलित थे. कहा जाता है कि एकदम साधारण जीवनशैली पसंद कांग्रेस के इस दिग्गज के पास ऐसे लोगों का विशाल भंडार था, जो यह कहते नहीं थकते थे कि ‘आपके मुझ पर बहुत अहसान हैं.’ लेकिन ख़ास बात यह भी है कि उन्होंने इस अहसान के बदले शायद ही कभी किसी से कुछ मांगा हो.


जब दिखा दी थी अपनी ताक़त…

मार्च 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तो पटेल को एआईसीसी कोषाध्यक्ष बनाया गया. लेकिन सालभर के भीतर ही उनका सोनिया के निजी सचिव विन्सेंट जॉर्ज के साथ गंभीर विवाद हो गया. आवेश में आकर पटेल ने इस्तीफ़ा दे दिया और फिर कुछ समय कोई ज़िम्मेदारी नहीं संभाली. यहां तक कि वे अपने गृह राज्य गुजरात लौट गए और भरूच में विशाल रैली कर ये संकेत दिए कि कांग्रेस से अलग होकर भी नई शुरुआत कर सकते हैं. जब इसकी भनक माधवराव सिंधिया को लगी तो उन्होंने एक अन्य दिग्गज मोतीलाल वोरा के साथ मिलकर पटेल और 10 जनपथ के बीच रिश्ते ठीक कराए.


क्रिकेट के मैदान में भी इतने ‘प्रैक्टिकल’ थे पटेल

अहमद पटेल कितने प्रैक्टिकल थे, यह एक घटना से भी स्पष्ट हो जाएगा. 1980-81 में सर्दियों की एक दोपहर में सांसदों के बीच एक मैत्री क्रिकेट मैच खेला गया था. पटेल क्रिकेट में अच्छी बल्लेबाज़ी कर लिया करते थे. वे उस समय युवा सांसद थे और गुजरात के भरुच से दूसरी बार चुनकर आए थे. वे उस मैच में धुआंधार बल्लेबाज़ी कर रहे थे. उसी समय दूसरे छोर पर माधवराव उनके साथ बल्लेबाज़ी करने आए. पटेल शतक बनाने के क़रीब ही थे. इस वजह से सिंधिया को ज़्यादातर समय दूसरे छोर पर ही खड़े रहना पड़ रहा था. इससे चिढ़कर सिंधिया उनके पास आए और बोले – आप अपना खेल दिखा चुके हैं. अब ज़रा दूसरों को भी मौक़ा दीजिए. इस पर पटेल शतक से ठीक पहले ख़ुद से ही आउट हो गए. जब बाद में उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपना शतक पूरा क्यों नहीं किया और ख़ुद आउट होकर मैदान से बाहर क्यों चले आए तो उनका जवाब था, “अरे, मैं ऐसा कैसे कर सकता था? वे माधवराव सिंधिया थे.’


ख़ुद सत्ता में नहीं रहे, मगर उनका घर था सत्ता का केंद्र

अन्य कांग्रेसी नेताओं की तरह पटेल ने कभी भी केंद्रीय मंत्री बनने की कोशिश नहीं की. लेकिन अनेक कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों, प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारियों, चुनाव प्रत्याशियों, संसद से लेकर निकाय संस्थाओं तक से जुड़े तमाम नेताओं का भाग्य उनके 23 मदर टेरेसा मार्ग स्थित घर में ही तय होता था. हालांकि हर किसी को पटेल के घर आने की इजाज़त नहीं थी. प्रवेश और निकास के लिए कई द्वार, चैंबर्स और बैठक व्यवस्था उनके घर आने वाले मेहमानों की हैसियत और उनके स्वागत के क्रम का खुलासा करती थी. पटेल से मिलने का समय लेना आसान नहीं था, जब तक कि एक लैंडलाइन नंबर से फोन कॉल न आए. लोगों को मिलने के लिए कई बार देर रात का समय मिलता था. चुनाव लड़ने के इच्छुक टिकटार्थी कई जगहों पर ढूंढ़ते हुए उनके पास पहुंच जाते थे. यहां तक कि उस मस्जिद तक भी चले जाते थे, जहां वे शुक्रवार की नमाज़ पढ़ने जाते थे. कहा जाता है कि ऐेसे लोगों से बचने के लिए उन्हें हर शुक्रवार नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद तक बदलनी पड़ती थी.


‘राज़ मेरे साथ मेरी क़ब्र तक जाएंगे’

उनके साथ मेरी आख़िरी मुलाक़ात फरवरी 2020 में हुई थी. बातचीत के दौरान एक सवाल उठा कि आख़िर वे अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखते, क्योंकि उन्होंने बहुत सारी चीज़ों को बेहद क़रीब से देखा है. उन्हें तमाम राज्यों के गोपनीय मामलों की भी जानकारी थी. शिक्षाविद्, पत्रकारों और आगे चलकर शोधकर्ताओं को भी इस जानकारी से काफ़ी ज़्यादा फ़ायदा होगा. लेकिन पटेल ने यह प्रस्ताव ख़ारिज करने में ज़रा भी देर नहीं लगाई. उन्होंने कहा, ‘ये (राज़) मेरे साथ मेरी क़ब्र तक जाएंगे.’ और आख़िरकार 2020 की 24-25 नवंबर की मध्य रात्रि को वे कई राज़ अपने सीने में दबाए इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

रशीद किदवई

रशीद किदवई

रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिसोड्स दैट हैव शेप्ड इंडियाज डेमोक्रेसी', 'नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स', 'द हाउस ऑफ़ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रीग' और 'भारत के प्रधानमंत्री' उनकी चर्चित किताबें हैं. रशीद किदवई से - rasheedkidwai@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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First published: November 25, 2024 9:18 AM IST

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