Last Updated:October 19, 2025, 08:57 IST

Akhilesh Yadav: रामनगरी अयोध्या समेत देश के विभिन्न हिस्सों में दीपावली के मौके पर भव्य कार्यक्रम आयोजित करने की प्लानिंग है. हजारों की संख्या में दीया जलाकर पवित्र नगरी को जगमग करने के लिए खास योजना तैयार की गई है. दूसरी तरफ, देश के साथ विदेशों में भी दिवाली की धूम है. ऐसे मौके पर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दीया और मोमबत्ती जलाने पर विचित्र टिप्पणी कर दी है. दिवाली से ठीक पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का एक बयान फिर चर्चा में है. उन्होंने कहा कि हमें दीयों और मोमबत्तियों पर इतना खर्च क्यों करना पड़ता है, जबकि दुनिया के कई देशों में क्रिसमस के दौरान शहर महीनों तक जगमगाते रहते हैं. अखिलेश ने दिवाली की क्रिसमस से तुलना करते हुए कहा कि हमें उनसे सीखना चाहिए. उन्होंने यूपी सरकार पर भी निशाना साधा कि लखनऊ को स्मार्ट सिटी कहा जाता है, लेकिन सड़कों पर जाम और कचरा अब भी आम है.
पहली नजर में अखिलेश का बयान शायद एक प्रशासनिक टिप्पणी लगे. खासकर शहरों की सफाई, ट्रैफिक और दीयों पर खर्च को लेकर, लेकिन जब एक राजनीतिक नेता क्रिसमस से सीखने और दीयों पर खर्च जैसी बात को दीपावली के समय कहे तो यह केवल प्रबंधन का मुद्दा नहीं रहता, बल्कि सांस्कृतिक संवेदनशीलता का सवाल बन जाता है. यह पहला मौका नहीं है जब अखिलेश यादव ने ऐसा कुछ कहा हो, जिससे सनातन परंपराओं या प्रतीकों पर सवाल उठे हों. राम मंदिर आंदोलन के समय सपा का रुख किसी से छिपा नहीं है. मुलायम सिंह यादव के समय कारसेवकों पर गोली चलवाने की कड़वी यादें आज भी लोगों के जेहन में हैं. अब जब वही अयोध्या नए युग में दीपोत्सव के जरिए अपनी पहचान हासिल कर रही है, तो सपा प्रमुख उसी पर सवाल उठाते दिखाई देते हैं.
दिवाली महापर्व क समय अखिलेश यादव की ओर से दीयों पर दिया गया बयान चर्चा में है.
सेलेक्टिव सवाल
किसी भी लोकतंत्र में सवाल उठाना गलत नहीं, लेकिन सवाल यह है कि क्या अखिलेश ऐसे सवाल ईद या क्रिसमस जैसे त्योहारों पर भी उठाते हैं? क्या उन्होंने कभी कहा कि ईद के दौरान सजावट पर इतना खर्च क्यों? या क्रिसमस की रोशनी पर बिजली बचाओ? नहीं! यह सवाल उठाने के सेलेक्टिव तरीके को दर्शाता है. जब बात हिंदू परंपराओं की आती है, तो ज्ञान बाहर आ जाता है, लेकिन जब अन्य समुदायों के पर्वों पर सरकारी या निजी भव्यता दिखती है, तो वही ज्ञान अचानक मौन हो जाता है.
मुलायम सिंह यादव के समय कारसेवकों पर गोली चलवाने की कड़वी यादें आज भी लोगों के जेहन में हैं. अब जब वही अयोध्या नए युग में दीपोत्सव के जरिए अपनी पहचान हासिल कर रही है, तो सपा प्रमुख उसी पर सवाल उठाते दिखाई देते हैं.
दीया सिर्फ रोशनी नहीं, भावनाओं का प्रतीक
दीपावली में दीया केवल एक लौ नहीं है, वह घर-घर में उम्मीद, पवित्रता और विजय का प्रतीक है. अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का भाव इस त्योहार की आत्मा है. जब अखिलेश यह कहते हैं कि दीयों पर इतना खर्च क्यों, तो वे शायद भूल जाते हैं कि यह कोई दिखावा नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक आस्था का उत्सव है. क्रिसमस की सजावट, ईद की रौनक और गुरुपर्व की लंगर सेवा सभी अपने-अपने तरीके से समाज में प्रेम और सौहार्द्र का भाव जगाते हैं. लेकिन क्या किसी ने कभी कहा कि क्रिसमस ट्री पर इतना खर्च क्यों किया जाता है? नहीं क्योंकि किसी भी आस्था का सम्मान करना लोकतंत्र की मूल शालीनता है.
अखिलेश यादव जैसे नेता अगर वाकई आधुनिकता और वैश्विक दृष्टिकोण की बात करना चाहते हैं, तो उन्हें समान दृष्टि रखनी चाहिए. ‘क्रिसमस से सीखो’ कहना गलत नहीं, लेकिन उसी सांस में ‘दीयों पर खर्च’ पर तंज कसना दोहरा मापदंड दर्शाता है.
टाइमिंग भी संदेश
दिवाली से ठीक पहले इस तरह का बयान देना महज संयोग नहीं माना जा सकता. यह वही समय है, जब अयोध्या में लाखों दीये जलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया जाता है और उत्तर प्रदेश सरकार दीपोत्सव को एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में प्रचारित करती है. ऐसे में अखिलेश का बयान एक काउंटर नैरेटिव बनाने की कोशिश लगता है, जिसमें वे राम और दीये की बात तो करते हैं, लेकिन स्वर में व्यंग्य का पुट ज़्यादा है. अगर सपा प्रमुख वाकई में शहरों की स्वच्छता और बिजली बचत को लेकर चिंतित हैं, तो वे किसी भी अन्य दिन यह मुद्दा उठा सकते थे. लेकिन दीपावली सप्ताह में यह टिप्पणी करना बताता है कि बात सिर्फ मैनेजमेंट की नहीं, बल्कि राजनीतिक पोज़िशनिंग की है.
हिंदू आस्था पर टार्गेटेड सेकुलरिज़्म?
भारत में राजनीति लंबे समय से इस विरोधाभास से जूझ रही है. एक वर्ग सेकुलरिज़्म के नाम पर हिंदू परंपराओं पर सवाल उठाता है, लेकिन जब अन्य धर्मों की बात आती है, तो वही वर्ग खामोश हो जाता है. यह असंतुलन सिर्फ वोट बैंक की मजबूरी नहीं, बल्कि विचारधारा का संकट है. अखिलेश यादव जैसे नेता अगर वाकई आधुनिकता और वैश्विक दृष्टिकोण की बात करना चाहते हैं, तो उन्हें समान दृष्टि रखनी चाहिए. ‘क्रिसमस से सीखो’ कहना गलत नहीं, लेकिन उसी सांस में ‘दीयों पर खर्च’ पर तंज कसना दोहरा मापदंड दर्शाता है.
सनातन सिर्फ धर्म नहीं, जीवन दृष्टि है
सनातन संस्कृति की ताकत उसकी सहनशीलता में है. वह आलोचना को भी समेट लेती है, और विरोध को भी अवसर मानती है. लेकिन बार-बार उसी संस्कृति को निशाना बनाना कहीं न कहीं यह संकेत देता है कि राजनीतिक वर्ग अभी भी ‘राम बनाम गैर-राम’ की रेखा खींचकर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहता है. अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि भारत का आज का मतदाता दीये की लौ और बिजली के बिल में फर्क समझता है. वह यह भी जानता है कि दीपोत्सव का उजाला किसी एक पार्टी का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...
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Location :
Lucknow,Uttar Pradesh
First Published :
October 19, 2025, 08:57 IST