Last Updated:August 10, 2025, 13:44 IST
Indian US Trade Deal: भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बातचीत अधर में लटक गई है. डोनाल्ड ट्रंप के सनक भरे फैसलों के बाद भारत ने अपने कदम खींच लिए हैं. हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं जब दोनों देशों के बीच कोई ...और पढ़ें

डोनाल्ड ट्रंप के सनक भरे फैसलों की वजह से भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बातचीत अधर में लटक गई है. ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ ठोंक दिया, जिसके बाद दिल्ली ने वाशिंगटन के साथ व्यापारिक समझौते पर बातचीत रोक दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते बुधवार को ऐलान किया कि कृषि हितों को लेकर भारत किसी समझौते के मूड में नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा कि भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाइयों-बहनों के हितों के साथ कभी समझौता नहीं करेगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं. मेरे देश के किसानों के लिए, मेरे देश के मछुआरों के लिए, मेरे देश के पशुपालकों के लिए भारत तैयार है. किसानों की आय बढ़ाने, खेती पर खर्च कम करना, आय के नए स्त्रोत बनाने के लक्षों पर हम लगातार काम कर रहे हैं.’
याद कीजिए 2019 की RCEP डील…
भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर अटकी बात ने वर्ष 2019 की यादें ताजा कर रही है. नवंबर 2019 में भारत ने अचानक ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) से हटने का फैसला किया था. यह सबसे बड़ी क्षेत्रीय व्यापार समझौता बताया जा रहा था, जिसके लिए कई सालों तक बातचीत होती रही थी. हालांकि फिर अचानक से इसे रद्द करने के फैसले ने सभी लोगों को हैरान कर दिया था.
भारत सरकार के इस फैसले के पीछे एक दिलचस्प कारण था. दरअसल डेयरी प्रोडक्ट को लेकर होने वाली इस डील से देश के पशुपालकों में भारी नाराजगी थी और वे प्रधानमंत्री कार्यालय को भर-भरकर चिट्ठियां लिख रहे थे. ये चिट्ठियां ज्यादातर गुजरात की डेयरी सहकारी समितियों से जुड़ी महिलाओं ने भेजी थीं. इनमें इस डील से कृषि और डेयरी सेक्टर पर पड़ने वाले बुरे असर की चेतावनी दी गई थी.
चिट्ठियों से भर जाता है PMO का पोस्टबॉक्स
हालात यह हो गए थे कि प्रधानमंत्री कार्यालय का पोस्टबॉक्स रोजाना इन चिट्ठियों से फुल हो जाता था. साउथ ब्लॉक में पहुंची चिट्ठियों इन चिट्ठियों ने सरकार को बता दिया कि अमेरिका के यह सौदा करने की राजनीतिक कीमत बहुत भारी हो सकती है. इसके साथ ही, RCEP में चीन की मौजूदगी और सस्ते चीनी सामान के भारतीय बाजार में भर जाने की आशंका ने इस आशंका को और पुख्ता कर दिया. फिर कुछ ही हफ्तों में भारत ने इस समझौते से हटने का ऐलान कर दिया.
2019 के उस रद्द डील की यादें एक बार फिर ताजा हो गई हैं. वैसे ट्रंप का यह टैरिफ हथकंडा नया नहीं है. पहले उन्होंने चीन पर 145% का टैरिफ लगाकर बातचीत शुरू की और समझौते के बाद यह 30% रह गया. वहीं यूरोपियन यूनियन को भी 30% की धमकी दी गई थी, जो अंत में 15% पर खत्म हुई. दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों ने ऐसे हालात में तेजी से डील फाइनल की, लेकिन भारत ने झुकने के बजाय असर झेलने का रास्ता चुना है. चिट्ठियों से भरे पोस्टबॉक्स ने जो सबक 2019 में दिया था, वह आज भी वैसा ही है… घरेलू राजनीतिक कीमत और रणनीतिक हित, किसी भी व्यापारिक सौदे से ज्यादा अहम हैं.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 10, 2025, 13:35 IST