SC-ST कोटे पर बैठी थी CJI की बेंच, अचानक जज साहब ने नेहरू के खत का किया जिक्र

1 month ago

नई दिल्ली: एससी-एसटी यानी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कोटे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की बेंच ने एससी-एसटी में कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मतलब है कि अब एससी-एसटी कोटे में सब कैटेगरी किया जा सकता है. जब यह सीजेआई चंद्रचूड़ की यह बेंच फैसला दे रही थी, तभी एक जज ने पंडित नेहरू के खत का जिक्र किया.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पंकज मिथल ने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की वकालत करते हुए गुरुवार को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1961 में लिखे गए एक पत्र का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था.

जज साहब ने क्यों किया नेहरू के खत का जिक्र
जस्टिस पंकज मिथल ने कहा, ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 27 जून, 1961 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित अपने पत्र में किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था और कहा था कि ऐसी प्रथा को छोड़ दिया जाना चाहिए और नागरिकों की मदद जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर करने पर जोर दिया जाना चाहिए. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मदद की हकदार हैं, लेकिन किसी भी तरह के आरक्षण के रूप में नहीं, विशेषकर सेवाओं में.’

पंडित नेहरू के खत में क्या था?
पंडित नेहरू ने अपने पत्र में कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने. जिस क्षण हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हम खो जाते हैं.’ उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा का अवसर देना है. इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। बाकी सबकुछ एक तरह की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में कोई वृद्धि नहीं करता है.’

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
दरअसल, प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से गुरुवार को व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में उपवर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए. सात जजों की संविधान पीठ ने ईवी चिन्नैया के 2004 के फैसले को पलट दिया, जिसमें अनुसूचित जातियों के भीतर कुछ उप-जातियों को विशेष लाभ देने से इनकार किया गया था.

कौन सा फैसला पलटा?
साल 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्य एक समान समूह हैं, जिन्हें आगे किसी उप-समूह या वर्गीकरण में बांटा नहीं जा सकता. ईवी चिन्नैया के फैसले में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी राष्ट्रपति अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों को फिर से वर्गीकृत करना विपरीत भेदभाव के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा. साल 2020 में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि ईवी चिन्नैया फैसले पर एक बड़ी पीठ द्वारा दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है. आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद और गरीब लोगों तक नहीं पहुंच रहा है.

Tags: DY Chandrachud, Jawahar Lal Nehru, Justice DY Chandrachud, Supreme Court

FIRST PUBLISHED :

August 2, 2024, 11:06 IST

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