United States presidential transition: अमेरिका को डोनाल्ड ट्रंप के रूप में नया राष्ट्रपति मिल गया है. लेकिन निर्वाचित राष्ट्रपति तकनीकि रूप से 20 जनवरी तक पदभार नहीं संभाल सकेंगे. दरअसल ये 11 हफ्ते यानी 77 दिन का वो ट्रांजेक्शन पीरियड होत है. जिसमें नई सरकार में किसकी क्या भूमिका होगी यह तय होता है. ये संक्रमण काल क्यों जरूरी होता है, आइए बताते हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव नवंबर महीने के पहले मंगलवार को होता है. अमेरिकी संविधान के मुताबिक 20 जनवरी को नया राष्ट्रपति पद की शपथ लेते हैं. इसी दिन मौजूदा राष्ट्रपति नए राष्ट्रपति को सत्ता सौंपते हैं. इसे इनॉगरेशन डे कहा जाता है. पहली बार साल 1937 में 20 जनवरी को शपथ ली गई थी, तब से ये प्रथा चली आ रही है.
प्रेसिडेंशियल ट्रांजिशन (United States Presidential Transition) अमेरिकी राष्ट्रपति की सत्ता हस्तांतरण की वह प्रक्रिया है जिसके तहत पिछला राष्ट्रपति, नव निर्वाचित राष्ट्रपति यानी प्रेसिडेंट इलेक्ट को सारी अहम जानकारी और हैंड ओवर सौंपता है. जिससे प्रेसिडेंट इलेक्ट और उनकी नई टीम को व्हाइट हाउस पहुंचने पर अपना काम बिना किसी परेशानी के शुरू कर सके. इस पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी जनरल सर्विस एडमिनिस्ट्रेशन (GSA) की होती है.
इसी दौरान निर्वाचित राष्ट्रपति के व्यस्त कार्यक्रम के संचालन के साथ उनकी ब्रीफिंग और स्टाफ की नियुक्ति भी होती है. एक बार सत्ता हस्तांतरण आधिकारिक तौर शुरू हो जाता है तो उसने निर्वाचित राष्ट्रपति की ट्रांजीशन टीम काम करने लगती है जो प्रचार के दौरान तैयार हुई थी. इसमें सबसे अहम है दैनिक सुरक्षा ब्रीफिंग जिसमें निर्वाचित राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी जानकारी दी जाती है.
नतीजे आने के बाद अब सभी राज्यों के इलेक्टर्स मिलकर इलेक्टोरल कॉलेज बनाएंगे जो सदन के नेता (राष्ट्रपति) का चुनाव करेंगे. 11 नवंबर के दिन राज्यों में इलेक्टर को सर्टिफाई (सत्यापित) करने की प्रक्रिया यानी 'सर्टिफिकेट ऑफ असर्टेनमेंट' शुरू होगी. अगर किसी राज्य में मतगणना में धांधली की शिकायत आती है तो दोबारा काउंटिंग होने की स्थिति बनने पर इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है. ये प्रक्रिया पूरी करने की आखिरी तारीख 11 दिसंबर है.
नए राष्ट्रपति की सुरक्षा व्यवस्था का काम एफबीआई और अन्य एजेंसियां संभालती है, हालांकि नतीजे आते ही सुरक्षा घेरा बढ़ जाता है, लेकिन पूरे सुरक्षा इंतजाम होने में फिर भी कुछ वक्त लग जाता है.
भारत की तरह अमेरिका में राजनीतिक नियुक्तियां होती हैं. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान निर्वाचित राष्ट्रपति को करीब चार हजार राजनैतिक पद भरने होते हैं. इन पदों पर नई सरकार अपने लोग तैनात करती है, ऐसे में पुरानी सरकार में नियुक्त लोग अधिकांश मामलों में खुद से इस्तीफा दे देते हैं. संसद की तमाम समितियों के बहुत सारे काम इसी ट्रांजेक्शन पीरियड में तय होते हैं.
दुनियाभर में फैले अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्यिक दूतावासों में नई तैनाती भी नव निर्वाचित राष्ट्रपति के निर्देशों के हिसाब से होती है. राष्ट्रपति के अधिकारिक आवास व्हाइट हाउस की नियुक्तिओं का काम भी इसी दौरान होता है. खुफिया एजेंसियों के चीफ से जुड़ी चीजें भी इसी पीरियड में तय हो जाती हैं.
अमेरिका में सबसे पहले उपराष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाती है. फिर उनके डिप्टी यानी उपराष्ट्रपति के शपथ लेने की बारी आती है. प्रेसिडेंट को शपथ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दिलाते हैं. शपथ के बाद नए राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संबोधन होता है. इसके बाद प्रेसिडेंट रूम में साइनिंग सेरेमनी होगी.
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को व्हाइट हाउस का भ्रमण भी कराया जाता है जिससे वे व्हाइट हाउस की साज सज्जा को लेकर निर्देश दे सकें.
हस्तांतरण प्रक्रिया के दौरान होने वाले खर्च का भुगतान सरकारी और निजी फंड दोनों से होता है. फेडरल फंडिंग से 70 लाख डॉलर जारी किए जाते हैं.