Viral Video: -62 डिग्री तापमान पर बर्फ बन गई धरती! इतनी ठंड कि सांस भी जम जाए; वायरल हुआ वीडियो

2 hours ago

Temperature Reaches -62 Degrees Celsius in Antarctica: सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि अंटार्कटिका (Antarctica) में तापमान -67 डिग्री सेल्सियस तक नीचे गिर गया है. वीडियो के अंत में अंग्रेजी में लिखा है: “This is what Antarctica looks like in -62 degrees Celsius.” इस वायरल क्लिप को देखकर आम दर्शकों में आशंका और जिज्ञासा का माहौल बनने लगा है कि क्या ऐसा वास्तव में संभव है. अगर है, तो वहां लोग कैसे रह रहे हैं और उनकी जिंदगी कैसे चल रही होगी. 

चारों ओर बर्फ की घनी चादर

वायरल वीडियो में दिख रहा है कि एक व्यक्ति अपने घर का दरवाजा खोलकर बाहर देखता है तो हर तरफ बर्फ ही बर्फ जमी होती है. उसके घर की सीढ़ियों पर जमकर बर्फ पड़ी होती है और सीढ़ियों की रेलिंग भी बर्फ से जम चुकी होती है. उसके घर के सामने वाला तमाम हिस्सा भी गहरे बर्फ की चादर में समाया होता है. 

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This is what Antartica looks like in -62 degrees celsius.
byu/MaxSupreme369 ininterestingasfuck

इससे अंदाजा लगता है कि वहां किस तरह की बर्फ बिखरी हुई है और वहां पर कितनी भयंकर ठंड इस वक्त लोग झेल रहे हैं. हालांकि वीडियो से इस बात की पुष्टि नहीं होती कि क्या वहां पर वाकई -62 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंच गया है. 

कितना भरोसेमंद है यह दावा?

अगर उपलब्ध वैज्ञानिक डेटा की बात करें तो अंटार्कटिका में -62 डिग्री तापमान पहुंच जाना असामान्य नहीं है. वहां पर अब तक दर्ज किया गया सबसे निम्न तापमान लगभग ‐89.2 डिग्री सेल्सियस है, जो कि वोस्तोक स्टेशन (Vostok Station) पर 21 जुलाई 1983 को मापा गया था. 

दुनिया का सबसे ठंडा इलाका

रिपोर्ट के मुताबिक, अंटार्कटिका में प्लेटो नाम के इलाके भी हैं. जहां पर सैटेलाइट इमेज में –93 से –98 डिग्री सेल्सियस तापमान होने की संभावना जताई जा चुकी है. हालांकि उस जगह का तापमान आज तक रिकॉर्ड नहीं हुआ है. ऐसे में लगभग ‐89.2 डिग्री सेल्सियस तापमान को ही अंटार्कटिका का अब तक का सबसे निम्न तामपान माना जाता है. 

तापमान में लगातार हो रहा बदलाव

अंटार्कटिका महाद्वीप के अंदरूनी हिस्सों में वार्षिक औसत तापमान लगभग -43.5 डिग्री सेल्सियस है, जबकि तटवर्ती इलाकों में यह कुछ हल्का होता है. इस महाद्वीप में तापमान में लगातार बदलाव हो रहा है. जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और मौसम संबंधी अनियमितताएं बढ़ रही हैं. 

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