अगर भारत की जनसंख्या कम हुई है तो उसका क्या असर पड़ेगा, अच्छा रहेगा या खराब

1 week ago

Population of India: भारत में मौजूदा समय में दुनिया की सबसे युवा आबादी है. हालांकि, प्रजनन दर में गिरावट की वजह से बुज़ुर्गों की आबादी बढ़ सकती है. इसका असर स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है. प्रजनन दर घटने की वजह से कुछ समय बाद श्रम बल की कमी महसूस होने लगेगी. लेकिन इसके कुछ सकारात्मक असर भी दिखाई देंगे. प्रजनन दर घटने से आबादी पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और सभी को बेहतर संसाधन उपलब्ध होंगे. इसके अलावा महिलाओं की औसत उम्र बढ़ सकती है. एक स्टडी के मुताबिक, कम प्रजनन दर की वजह से महिलाओं की औसत उम्र बढ़ रही है. 

वर्तमान जनसांख्यिकीय स्थिति
कई दशकों से जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने के लिए परिवार नियोजन की नीतिया बनाई गईं. भारत अब इस तथ्य से वाकिफ हो रहा है कि ऐसी नीतियों की सफलता भी तेजी से वृद्ध होती जनसंख्या की ओर ले जा रही है. यह एक समान घटना नहीं है, दक्षिणी राज्यों और छोटे उत्तरी राज्यों में कुल प्रजनन दर में बहुत तेज गिरावट देखी गई है. जिसे महिलाओं के प्रजनन वर्षों के दौरान जन्मे बच्चों की औसत संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने 2019 से 2021 के बीच 1.4 की प्रजनन दर दर्ज की, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की प्रजनन दर 1.5 थी. दूसरी ओर, बिहार की प्रजनन दर 3, उत्तर प्रदेश की 2.7 और मध्य प्रदेश की 2.6 थी. 

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तेजी से बूढ़ी होती आबादी
जिन राज्यों की प्रजनन दर कम है, वे तेजी से विकसित हुए हैं, लेकिन अब वे तेजी से बूढ़ी होती आबादी की समस्या का सामना कर रहे हैं. पिछले साल UNFPA द्वारा प्रकाशित इंडिया एजिंग रिपोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय के डेटा का उपयोग करके दिखाया कि जबकि भारत की वृद्ध जनसंख्या का हिस्सा 2021 में 10 फीसदी से बढ़कर 2036 तक 15 फीसदी होने का अनुमान है, कुछ राज्यों में जनसांख्यिकीय संक्रमण अधिक उन्नत है. केरल में, 2021 में वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या का हिस्सा 16.5 फीसदी था, जो 2036 तक 22.8 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. तमिलनाडु में 2036 तक वृद्ध जनसंख्या 20.8 फीसदी होगी, जबकि आंध्र प्रदेश में यह 19 फीसदी होगी. दूसरी ओर, बिहार में 2021 में केवल 7.7 प्रतिशत वृद्ध थे, और 2036 तक यह केवल 11 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है.

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किस तरह के आर्थिक प्रभाव
बूढ़ी होती आबादी का क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे समझने की जरूरत है. इस प्रभाव को समझने के लिए, सबसे महत्वपूर्ण संकेतक वृद्ध जनसंख्या का अनुपात नहीं है, बल्कि वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात है. यानी 18 से 59 वर्ष की कामकाजी उम्र के हर 100 लोगों पर कितने वृद्ध लोग निर्भर हैं. द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के एक एसोसिएट प्रोफेसर कहते हैं. “जब यह अनुपात 15 प्रतिशत से ऊपर जाता है, तो वृद्धावस्था संकट की शुरुआत होती है.” 

वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात केरल में सबसे ज्यादा
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अनुमानों के अनुसार, कई राज्यों ने पहले ही इस मानक को पार कर लिया है. केरल में 2021 में वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात 26.1 प्रतिशत था. इसके बाद तमिलनाडु (20.5), हिमाचल प्रदेश (19.6), और आंध्र प्रदेश (18.5) थे. इसका मतलब है कि इन राज्यों के पास आर्थिक विकास के जनसांख्यिकीय लाभ को प्राप्त करने का अवसर, जिसमें बड़ी संख्या में युवा श्रमिकों की आर्थिक और स्वास्थ्य मांगों से मुक्त होते हैं, पहले ही बंद हो चुका है.

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बढ़ेगा मेडिकल खर्च
वृद्ध जनसंख्या वाले राज्यों में स्वास्थ्य खर्चों में काफी वृद्धि होने की संभावना है. एक स्टडी में एनएसएसओ डेटा का विश्लेषण किया गया, जो द इंडिया फोरम में प्रकाशित हुआ. इस स्टडी में दिखाया गया कि दक्षिणी राज्यों, जिनकी जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का केवल पांचवां हिस्सा है, ने 2017-18 में देश के कुल हृदय रोगों पर होने वाले खर्च का 32 फीसदी खर्च किया, जबकि आठ हिंदी पट्टी राज्यों, जिनकी जनसंख्या देश की आधी है, ने केवल 24 फीसदी खर्च किया.

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समाधान क्या हैं?
हाल ही में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में कम प्रजनन दर को लेकर चिंता व्यक्त की थी. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि वे परिवारों में अधिक बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए कानून लाने की योजना बना रहे हैं. लेकिन उनकी यह बात सामाजिक से ज्यादा राजनीतिक है. भले ही दक्षिण के मुख्यमंत्रियों ने महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने वाली नीतियों की वकालत की है.  लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सफल दृष्टिकोण नहीं रहा है. पढ़ी-लिखी महिलाएं जानती हैं कि वे बच्चा पैदा करने की मशीनें नहीं हैं. जबरदस्ती प्रजनन काम नहीं करेगा, न ही ऐसे प्रोत्साहन जो परिवारों की वास्तविक जरूरतों को नहीं पहचानते. जानकार कार्य-परिवार नीतियों में बदलाव की सिफारिश करते हैं, जिसमें सवेतन मातृत्व और पितृत्व अवकाश, सुलभ बाल देखभाल, और रोजगार नीतियां शामिल हैं, जिससे प्रजनन दर को बढ़ावा मिल सकता है. एक और तरीका यह है कि कामकाजी उम्र को बढ़ाया जाए और इस तरह वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात को कम किया जाए. 

Tags: Female Male Population Percentage, India news, Population control, Population Control Bill, World population

FIRST PUBLISHED :

November 13, 2024, 18:53 IST

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