नई दिल्ली: क्या आप यकीन करेंगे कि 73 साल पुरानी विंटेज कार के लिए शाही परिवार की एक शादी टूट गई. इतना ही नहीं, मामला तो अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. जी हां, एक कार की वजह से ग्वालियर के एक शाही परिवार की बेटी की शादीशुदा जिंदगी में बवाल मच गया है. कार है 1951 की बनी रोल्स-रॉयस कार. इसे एच जे मुलिनर एंड कंपनी ने बड़ौदा की महारानी के लिए बनाया था. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महारानी की ओर से ऑर्डर किया था. अब इसी रोल्स-रॉयस कार ने शाही परिवार की बेटी की शादीशुदा ज़िंदगी में तूफान ला दिया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, लड़की और उसके परिवार वालों का दावा है कि उनके पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज के एडमिरल और कोंकण के शासक थे. लड़के के पिता आर्मी में कर्नल थे. लड़का इंदौर में फैमिलि बिजनेस के रूप में शिक्षण संस्थान चलाता था. लड़का और लड़की पक्ष दोनों ने कन्फर्म किया कि दोनों की मार्च 2018 में ग्वालियर में सगाई और एक महीने बाद ऋषिकेश में शादी हुई. हालांकि, विवादों की वजह से दुल्हन कभी ससुराल नहीं जा पाई. इसके बाद पति और पत्नी ने ऋषिकेश और ग्वालियर में तलाक के लिए मुकदमा दायर कर दिया, जिससे रिश्ते और भी खराब हो गए.
लड़के ने लड़की और उसके माता-पिता पर शादी के दौरान उसके परिवार से बड़ी रकम की ठगी करने का आरोप लगाया है. इसे लेकर उसने लड़की पक्ष के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई. इसके जवाब में लड़की ने लड़के और उसके परिवार वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया. मगर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लड़के के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया. इसके बाद लड़की ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
रिपोर्ट की मानें तो लड़की ने कहा कि लड़का उसके घर पर खड़ी रोल्स रॉयस कार को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने और उसके माता-पिता ने मुंबई में एक फ्लैट के साथ दहेज में कार की भी मांग कर दी. महिला ने आगे बताया कि उसके घरवालों ने यह मांग ठुकरा दी क्योंकि उनके समाज में दहेज प्रथा नहीं है. बुधवार को लड़की की पैरवी करते हुए सीनियर वकील विभा दत्ता माखीजा ने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की सुप्रीम कोर्ट की बेंच को बताया कि महिला एक दुविधापूर्ण स्थिति में है क्योंकि उनके रूढ़िवादी शाही समुदाय में दोबारा शादी करने की परंपरा नहीं है.
इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘अब ऐसी कोई परंपरा नहीं है. समाज ने सामाजिक और वैवाहिक रिश्ते बनाते समय जातिगत बाधाओं को तोड़ दिया है. अभी भी कुछ लोगों में यह भेदभाव हो सकता है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वह दोबारा शादी नहीं कर सकती. जस्टिस कांत ने कहा कि दोनों पक्ष मुकदमेबाजी में उलझे हुए हैं और एक-दूसरे पर एफआईआर दर्ज करा चुके हैं. जस्टिस कांत ने कहा, ‘हमें पता है कि पहले भी मध्यस्थता विफल रही है. लेकिन एक बार फिर से कोशिश क्यों नहीं की जा सकती.’ इसके बाद पीठ ने दोनों में सुलह की कार्यवाही के लिए मध्यस्थ नियुक्त कर दिया.
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FIRST PUBLISHED :
November 14, 2024, 11:39 IST