Last Updated:April 10, 2025, 10:03 IST
Bihar Chunav: बिहार चुनाव में नीतीश कुमार को बड़ा नेता बनाने में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व डिप्टी लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका अहम रही. 2000 में नीतीश पहली बार सीएम बने, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए....और पढ़ें

2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में अटल-आडवाणी ने नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी पर बैठाया था.
हाइलाइट्स
बिहार में विधानसभा चुनाव जल्द होंगे.नीतीश कुमार को बड़ा नेता बनाने में अटल-आडवाणी की भूमिका अहम थी.2025 के चुनाव में भाजपा की रणनीति पर नजरें.Bihar Chunav: बिहार में चंद महीनों के भीतर विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है. बीते करीब पांच चुनावों की तरह इस बार भी मुख्य मुकाबला एनडीए और राजद के बीच है. लेकिन, आज की कहानी राजद और एनडीए के बीच मुकाबले पर नहीं है. बल्कि एनडीए के भीतर नीतीश कुमार को एक बड़ा नेता बनाने में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और डिप्टी पीएम रहे लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका के बारे में है. नीतीश कुमार ने उस एक मौके का भरपूर फायदा उठाया और बिहार के सबसे बड़े नेता बन गए. एक वक्त में वह इतने बड़े नेता बन गए थे कि मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी तक को भाव नहीं देते थे.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं वर्ष 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव के बारे में. चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू यादव को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. उनकी जगह राज्य के सीएम की कुर्सी पर उनकी पत्नी राबड़ी देवी बैठीं थी. उस वक्त केंद्र में एनडीए की सरकार थी. अटल बिहारी वाजपेयी पीएम थे. 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से मुख्य चेहरा सुशील कुमार मोदी थे. वह लंबे समय तक राज्य में भाजपा के चेहरा रहे. वर्ष 2000 तक बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था. राज्य में विधानसभा की 324 सीटें थीं.
नीतीश कुमार का उभार
उस वक्त नीतीश कुमार समता पार्टी में हुआ करते थे. वह चाहते थे कि बिहार में चुनाव से पहले उनको सीएम चेहरा के तौर पर पेश किया जाए लेकिन, सहयोगी दलों जनता दल और लोक शक्ति के नेता रामविलास पासवान खुद सीएम बनना चाहते थे. इन तीनों दलों का भाजपा के साथ गठबंधन था. 1999 के लोकसभा चुनाव में इन दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा था. उस वक्त राज्य में लोकसभा की 54 सीटें थीं. इसमें से भाजपा को 23 और उसकी सहयोगी दलों को 18 सीटों पर बंपर जीत मिली थी. इस जीत के बाद उम्मीद की जा रही थी कि 2000 के विधानसभा में एनडीए को बंपर जीत मिलेगी.
लेकिन, 2000 के विधानसभा चुनाव का गणित बिगड़ गया. पहले तो सीटों के बंटवारे और सीएम चेहरा के मसले पर नीतीश कुमार की समता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ गठबंधन से बाहर हो गई और वह अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी. फिर विधानसभा चुनाव के नतीजे बिगड़ गए. इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल को अपने दम पर 124 सीटें मिलीं. भाजपा दूसरे नंबर पर रही. उसे 67 सीटों पर जीत मिली. नीतीश की समता पार्टी ने 34 सीटों पर जीत दर्ज किया. कांग्रेस को 23, जनता दल 21, जेएमएम को 12 सीटें मिलीं.
बीते करीब 20 से बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार छाए हुए हैं.
नीतीश को मिली सीएम कुर्सी
चुनाव बाद फिर से दोनों गठबंधन साथ आ गए. एनडीए के पास 151 विधायक थे जबकि लालू यादव के पास 159 विधायकों का समर्थन हासिल था. किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था. यहीं पर अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से चूक हुई. उन्होंने अपनी पार्टी के नेतृत्व को दरकिनार कर नीतीश कुमार को बिहार का सीएम बनाने पर हामी भर दी. नीतीश कुमार पहली बार राज्य के सीएम बने लेकिन बहुमत साबित करने से पहले केवल सात दिनों में ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. नीतीश को सीएम चुनने में अटल-आडवाणी ने 67 सीटों वाली अपनी पार्टी के नेतृत्व की अनदेखी की. उस वक्त नीतीश कुमार केंद्र की वाजपेयी सरकार में एक युवा उभरते नेता की छवि बना चुके थे.
फिर क्या था नीतीश कुमार ने नाम के साथ पूर्व सीएम का ठप्पा लगने के बाद 2005 के चुनाव में बड़ा कमाल हो गया. उस वक्त तक बिहार का बंटवारा हो चुका था. राबड़ी राज में बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर कई सवाल खड़े किए जाने लगे थे. 2005 के चुनाव तक समता पार्टी का विलय जेडीयू में हो चुका था.
जेडीयू बनी सबसे बड़ी पार्टी
बंटवारे के कारण बिहार विधानसभा की सीटें घटकर 243 हो गईं. इस चुनाव में जेडीयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा और 88 पर जीत हासिल की. दूसरी तरह भाजपा सिमट गई. उसे 102 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला और केवल 55 सीटों पर जीत मिली. यहीं से बिहार में नीतीश कुमार के नाम गाड़ी सरपट दौड़ने लगी. भाजपा बिहार जदयू की सहयोगी बन गई. 2010 के चुनाव में जेडीयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़कर 120 पर जीत हासिल की. दूसरी तरफ भाजपा 50 सीटों पर सिमट गई. फिर 2014 में भाजपा और केंद्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी की एंट्री ने बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया. इसकी कहानी कभी और सुनाएंगे.
लेकिन, इतना तय है कि नीतीश कुमार को नीतीशे कुमार बनाने में अटल-आडवाणी की बड़ी भूमिका थी. उस वक्त के भाजपा के इन दोनों शीर्ष नेताओं ने अपनी पार्टी की कीमत पर नीतीश को नीतीशे कुमार बनाया था. लेकिन, अब भाजपा नीतीश कुमार की जगह राज्य में अपना नेतृत्व चाहती है. वह राज्य में जेडीयू का बड़ा भाई बन चुकी है. ऐसे में 2025 के चुनावी नतीजों के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा क्या रणनीति अपनाती है.
First Published :
April 10, 2025, 10:03 IST