नई दिल्ली. भारतीय संस्कृति में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा प्राप्त है. सामाजिक तौर पर भी उन्हें आधी आबादी कह कर पुकारा जाता है. राजनीतिक तौर पर तो उन्हें संसद और विधानमंडलों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय राजनीतिक दलों ने ले लिया है. पर, पुरुष मानसिकता ऐसी कि राजजनीतिक दलों के नेता उनके बारे में अभद्र टिप्पणियां करने से अब भी बाज नहीं आ रहे. हाल के दिनों में झारखंड, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में तीन ऐसे बयान राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने दिए, जो अब भी चर्टा के केंद्र बने हुए हैं. कुछ मामलों में तो राष्ट्रीय महिला आयोग ने सांन भी लिया है.
झारखंड में ‘रिजेक्टेड माल’ कहा
झारखंड विधानसभा चुनाव में जामताड़ा से इंडिया ब्लाक समर्थित कांग्रेस के प्रत्याशी इरफान अंसारी ने एनडीए समर्थित भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन को रिजेक्टेड माल कह दिया. सीता सोरेन जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की भाभी हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान वे जेएमएम से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल लहो गई थीं. भाजपा ने उन्हें दुमका से अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाईं. इस बार वे इरफान अंसारी के खिलाफ जामताड़ा से विधानसभा की उम्मीदवार हैं. लोकसभा चुनाव में उनकी असफलता को आधार बना कर इरफान ने रिजेक्टेड माल कह दिया. भाजपा ने इस पर कड़ा एतराज किया. मामला चुनाव आयोग से लेकर एससी/ एसटी आयोग तक पहुंच गया है.
महाराष्ट्र में महिला ‘इंपोर्टेड माल’
झारखंड में महिला प्रत्याशी के बारे में विवादास्पद टिप्पणी पर विवाद अभी थमा नहीं था कि महाराष्ट्र में ऐसा ही मामला सामने आ गया. भाजपा छोड़ एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की उम्मीदवार बनीं मशहूर फैशन डिजाइनर शाइना एनसी मुंबादेवी सीट से चुनाव लड़ रही हैं. उनका मुकाबला कांग्रेस के सिटिंग विधायक अमीन पटेल से है. उनके दल बदल कर चुनाव लड़ने पर शिवसेना उद्धव गुट के सांसद अरविंद सावंत ने विवादित टिप्पणी कर दी. उन्हें ‘इंपोर्टेड माल’ कह दिया. सावंत ने कहा- उनकी हालत देखिए. वो पूरी जिंदगी भाजपा के साथ रहीं. भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की उम्मीदवार बन गईं. वे नहीं जानतीं कि यहां इंपोर्टेड माल नहीं चलने वाला है.
बंगाल में महिला ‘हारी हुई माल’
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी मंत्रिमंडल के एक सदस्य हैं फिरहाद हकीम. समय-समय पर वे अपने विवादास्पद बयानों के लिए चर्चा में रहते हैं. इस बार उन्होंने भाजपा नेत्री रेखा पात्रा को हारी हुई माल कहा है. रेखा पात्रा लोकसभा चुनाव में बशीरहाट क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवार थीं. वे चुनाव हार गई थीं. इसे ही लेकर फिरहाद हकीम ने उन्हें हारी हुई माल कहा. रेखा पात्रा तब चर्चा में आई थीं, जब महिलाओं के साथ दुष्कर्म और जमीन हड़पने का बहुचर्चित संदेशखाली कांड सामने आया था. रेखा पात्रा ने ही मामले को उजागर किया था. इससे ममता बनर्जी सरकार की राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई थी. हालांकि लोकसभा चुनाव परिणाम पर इस प्रकरण का कोई असर नहीं हुआ. रेखा पात्रा को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वे चुनाव हार गईं.
महिलाओं पर जोर, तब यह हाल
महिलाओं के बारे में ऐसी टिप्पणियां तब सामने आ रही हैं, जब सबका जोर महिलाओं को अपने पाले में करने का है. महिलाओं को अपने पाले में करने के लिए राजनीतिक दल तरह-तरह के प्रलोभन देते रहे हैं. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहना योजना ने भाजपा की दोबारा सत्ता में आने की राह आसान की तो छत्तीसगढ़ में इस तरह के वादे का सुफल भी भाजपा को मिला. बिहार के सीएम नीतीश कुमार तो महिला उत्थान के जनक ही रहे हैं. सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत और पंचायतों-निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का लाभ सबसे पहले नीतीश कुमार ने ही शुरू किया था. दिल्ली में महिलाओं के लिए अरविंद केजरीवाल ने भी कई स्कीम शुरू की. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार लक्ष्मी भंडार योजना (लक्खी भंडाल योजना) चला रही है. झारखंड विधानसभा चुनाव में भी मिहलाओं को आकर्षित करने के लिए सत्तारूढ़ इंडिया ब्लाक की सरकार ने 18 से 50 साल आयु वर्ग की महिलाओं को 1000 रुपए की पेंशन शुरू की है और नई सरकार बनने पर इसे 2500 रुपए करने का वादा किया ह. भाजपा ने 2100 रुपए पेंशन और 500 रुपए में गैस सिलिंडर के साथ रक्षाबंधन और दिवाली पर मुफ्त सिलिंडर देने का वादा किया है.
चुनाव आते बिगड़ जाते हैं बोल
वैसे तो एक दूसरे की मुखालपत के लिए नेताओं के बोल बिगड़ते रहे हं, लेकिन चुनाव के दौरान इसमें तेजी आ जाती है. झारखंड विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होते ही चूहा, गिद्ध जैसे जानवरों का जिक्र जेएमएम ने किया. महिला प्रत्याशी को माल बताया गया. बंगाल में पीएम नरेंद्र मोदी को दाढ़ी वाला कहा गया. राहुल गांधी समेत कई नेता अपने इस तरह के बोल-बयान के लिए मानहानि के दर्जनों मुकदमें भी झेल रहे हैं. इसके बवजूद ऐसे बयानों पर न रोक लग पा रही ह और न चुनाव आयोग ही इस बार काबू पाने में सक्षम दिख रहा है.
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FIRST PUBLISHED :
November 14, 2024, 16:59 IST