इजरायल ने कब - कब दिया भारत का साथ, कब किया विरोध, भारत से कैसे सुधरे संबंध

5 hours ago

हालिया इजरायल और ईरान के बीच चल रहे सैन्य संघर्ष में भारत ने इजरायल के पक्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ में वोटिंग से खुद को अलग कर लिया. उसका ऐसा ही रुख एससीओ की मीटिंग में रहा. जिससे भारत पर आरोप लगा कि उसका पलड़ा अब इजरायल की ओर ज्यादा झुक गया है. वो अतीत में की ईरान की मदद भी भूल गया और फिलिस्तीन की गाजा पट्टी पर बुरे हाल में संघर्ष कर रहे लोगों को भी.

जानते हैं ऐसा क्या है कि भारत का रुख अब आमतौर पर इजरायल के पक्ष में हो गया है. मुस्लिम वर्ल्ड और ईरान इस बात को बखूबी समझ भी रहा है. भारत और इजरायल के बीच 1992 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुए. हालांकि इजरायल 1952 से ही भारत से संबंध बेहतर करना चाहता था लेकिन तब भारत इससे किनारा करता रहा. अब दोनों देश एक दूसरे के अच्छे दोस्त हैं.

इज़रायल ने कई मौकों पर भारत का समर्थन किया, विशेष रूप से रक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग, और तकनीकी क्षेत्रों में. हालांकि, शुरुआती वर्षों में भारत की नीतियों के कारण कुछ असहमतियां भी रहीं. आइए जानते हैं कि कब कब इजरायल ने भारत का साथ दिया.

1962 भारत-चीन युद्ध में मदद की पेशकश

इज़रायल ने भारत को सैन्य सहायता की पेशकश की थी, हालांकि भारत ने इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया. यह पहली बार था जब इज़रायल ने भारत के प्रति सहानुभूति दिखाई.

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में हथियार दिए

इज़रायल ने भारत को हथियार, गोला-बारूद, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन दिया. यह भारत के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि कई अरब देशों ने पाकिस्तान का साथ दिया था. बल्कि कहना चाहिए कि पाकिस्तान के साथ जब भी भारत का तनाव या युद्ध हुआ तब अरब देश भारत की बजाए पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए.

1999 कारगिल युद्ध में भी मिली मदद

इज़रायल ने भारत को 1999 के कारगिल युद्ध में सैन्य सहायता दी, जिसमें हथियार, गोला-बारूद, और उच्च तकनीक वाले उपकरण जैसे लेजर-निर्देशित बम और ड्रोन शामिल थे. जब अमेरिका ने जीपीएस डेटा देने से इनकार किया, तब इज़रायल ने भारत को सैटेलाइट इमेजरी और खुफिया जानकारी दी.

पाकिस्तान की आतंकवाद संबंधी जानकारी देता है

इज़रायल नियमित रूप से भारत को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियों के बारे में खुफिया जानकारी साझा करता है. यह सहयोग भारत की सुरक्षा के लिए हमेशा बहुत काम का रहा.

पिछले तीन दशकों में इजरायल भारत का सबसे स्वाभाविक साझीदार बनकर उभरा रहा है. आतंकवाद के मामले पर उसने हमेशा पाकिस्तानी हरकतों की आलोचना करते हुए भारत को समर्थन दिया है. (nerws18)

2025 में भारत के हमलों का समर्थन

अप्रैल 2025 में जब भारत ने पाकिस्तान के कुछ इलाकों में हमले किए, इज़रायल ने खुलकर भारत का समर्थन किया. यह भारत-इज़रायल की मजबूत साझीदारी को दिखाता है. इज़रायल ने भारत के जवाबी हमलों का समर्थन करते हुए कहा कि आतंकवादियों को कहीं भी पनाह नहीं मिलनी चाहिए.

रक्षा और तकनीकी सहयोग

इस समय इज़रायल भारत का प्रमुख रक्षा साझीदार है, जो मिसाइल सिस्टम (जैसे राफेल मिसाइल), ड्रोन, और साइबर सुरक्षा तकनीक देता है. 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़रायल यात्रा के दौरान कई रक्षा और तकनीकी समझौते हुए. इज़रायल ने भारत को उन्नत कृषि तकनीक, जल प्रबंधन, और अंतरिक्ष अनुसंधान में भी सहयोग किया.

इज़रायल ने कब भारत का विरोध किया

इज़रायल और भारत के बीच खुले तौर पर विरोध के मामले बहुत कम हैं, लेकिन शुरुआती वर्षों में भारत की नीतियों ने इज़रायल को नाराज़ किया था. ये असहमतियां मुख्य रूप से भारत की फिलिस्तीन समर्थक नीति और गुट-निरपेक्ष आंदोलन से जुड़ी हुईं थीं.

जब 90 के दशक में पीवी नरसिंह राव भारतीय प्रधानमंत्री बने, तब इजरायल के साथ भारत के राजनयिक संबंध स्थापित हुए. दोनों देशों ने एक दूसरे के यहां दूतावास खोले. (news18)

तब भारत ने इजरायल को अलग देश बनाने का विरोध किया

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में 1947 की फिलिस्तीन विभाजन योजना के खिलाफ वोट किया, जिसमें उसको बांट कर इज़रायल को नए देश के रूप में मान्यता देने की बात थी. भारत का मानना था धार्मिक आधार पर देश का निर्माण उचित नहीं है.

1949 में इज़रायल के संयुक्त राष्ट्र प्रवेश पर खिलाफ वोट

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इज़रायल के प्रवेश के खिलाफ वोट किया. यह भारत की अरब देशों के साथ मित्रता और फिलिस्तीन समर्थन की नीति का हिस्सा था.

1950 से 1992 तक सीमित संबंध

भारत ने 1950 में इज़रायल को मान्यता दी, लेकिन पूर्ण राजनयिक संबंध 1992 तक स्थापित नहीं किए. भारत ने इज़रायल को नई दिल्ली में दूतावास खोलने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वह अरब देशों के साथ संबंधों को प्राथमिकता देता था.

इस दौरान भारत ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) को मान्यता दी. 1975 में दिल्ली में फिलिस्तीन का दूतावास खोलने की अनुमति दी, जिसे इज़रायल ने अपने खिलाफ माना.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर इजरायल के साथ

2005 में भारत ने IAEA में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ वोट किया, जो इज़रायल और अमेरिका के रुख के अनुरूप था. हालांकि, 2024 में भारत ने ईरान के खिलाफ IAEA प्रस्ताव पर तटस्थ रुख अपनाया, जिसे इज़रायल ने शायद अपने हितों के खिलाफ देखा. भारत की यह तटस्थता उसकी कूटनीति का हिस्सा थी, लेकिन यह इज़रायल के लिए असंतोष का कारण हो सकती थी.

इज़रायल ने विशेष रूप से 1992 के बाद भारत को रक्षा, आतंकवाद विरोध, और तकनीकी क्षेत्रों में लगातार समर्थन दिया है. इज़रायल भारत को एक रणनीतिक साझेदार मानता है, विशेष रूप से पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर. 1992 के बाद से दोनों देशों के बीच कोई बड़ा विरोध नहीं देखा गया, हालांकि ईरान जैसे मुद्दों पर भारत की तटस्थता इज़रायल को असहज कर सकती है.

कैसे सुधरने लगे संबंध

सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत की गुट-निरपेक्ष नीति कम प्रासंगिक हो गई. भारत ने पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका और इसके सहयोगी इज़रायल के साथ संबंध बढ़ाने शुरू किए. 1990 के दशक में कई अरब देशों जैसे जॉर्डन और मिस्र ने इज़रायल के साथ शांति समझौते किए. इससे भारत को इज़रायल के साथ संबंध बनाने में आसानी हुई, क्योंकि अरब देशों से विरोध का डर कम हुआ.

भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण शुरू किया. इज़रायल की उन्नत तकनीक भारत के लिए आकर्षक थी. भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा था. इज़रायल, जो खुद आतंकवाद से जूझ रहा था, भारत के लिए एक स्वाभाविक साझीदार बना. दोनों देशों ने खुफिया जानकारी साझा करने और आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण में सहयोग शुरू किया. इज़रायल ने भारत को उन्नत हथियार, जैसे मिसाइल सिस्टम, ड्रोन, और रडार, दिए.

नरसिंह राव सरकार में बने राजनयिक संबंध

नरसिम्हा राव सरकार ने जनवरी 1992 में इज़रायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए. यह भारत की विदेश नीति में एक ऐतिहासिक बदलाव था. दोनों देशों ने दिल्ली और तेल अवीव में दूतावास खोले.1998 में अटल बिहारी वाजपेयी और 2014 के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार ने इज़रायल के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी.

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