ईरान की सुप्रीम कुर्सी के लिए मोजतबा खामनेई ने रची थी साजिश? क्‍यों उठा रईसी की मौत का मुद्दा

4 days ago

Iran New Supreme Leader Mojtaba Khamenei: ईरान की एक्सपर्ट असेंबली ने 26 सितंबर को देश के नए सुप्रीम लीडर का चुनाव कर लिया था. ये फैसला बेहद गोपनीय तरीके से हुआ था और असेंबली में सभी ने सर्वसम्मति से अली खामेनेई के बेटे मोजतबा खामेनेई के नाम पर अपनी मुहर लगा दी थी. अब दुनिया के सामने ईरान के नए सुप्रीम लीडर का नाम सामने आया है. लेकिन मोजतबा का नाम केवल सुप्रीम लीडर के तौर पर सामने नहीं आया है, बल्कि एक विवादित मामले के साथ आया है.

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रईसी की मौत में था हाथ?

राष्ट्रपित इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई थी. उनकी मौत की कॉन्सिपिरेसी थ्योरी में मोजतबा का नाम सामने आया था. वैसे तो ईरान में इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने के बाद मोजतबा का कद काफी बढ़ गया था और उनकी मौत के बाद तो मोजतबा के सिर पर ताज ही सज गया. ईरान की खुफिया और दूसरी सरकारी एजेंसियों में मोजतबा के लोग पहले से ही शामिल हैं.

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...वरना रईसी बनते अली खामेनेई के उत्तराधिकारी

मई 2024 में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई थी, जब वह अजरबैजान प्रांत में एक डैम का उद्घाटन करने गए थे. वापसी के दौरान उनका हेलिकॉप्‍टर पहाड़ियों में क्रैश हो गया था. वैसे तो माना जा रहा है कि खराब मौसम के कारण हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ होगा. लेकिन जिन हालातों में ये दुर्घटना हुई, उस पर सवाल भी उठ रहे हैं. कभी इस दुर्घटना में इजराइल का हाथ माना गया तो कभी सत्ता की लड़ाई को इसकी वजह माना गया. यहां तक कि इस दुर्घटना के पीछे मोजतबा खामेनेई का हाथ भी बताया गया था. क्‍योंकि रईसी की मौत के बाद ही खामेनेई के बेटे मोजतबा का सुप्रीम लीडर बनने का रास्ता साफ हो पाया. वरना खामनेई के उत्तराधिकारी इब्राहिम रईसी ही बनते. क्‍योंकि रईसी को ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) भी पसंद करती थी.

ईरान-इराक युद्ध में लिया था हिस्‍सा

1969 में मशहद में जन्‍मे अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई ने 1987 से 1988 तक ईरान-इराक युद्ध में भी हिस्‍सा लिया था. इसके बाद मौलवी बनने के लिए भी पढ़ाई की. अपने पिता की तरह मोजतबा को इस्लामिक मामलों की खासी जानकारी है. उनके परिवार में पत्‍नी जहरा और 2 बेटे व 1 बेटी है. कहा जा रहा है कि अली खामेनेई (85) गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और वे चाहते थे कि उनके जीवनकाल में ही उनका उत्‍तराधिकारी चुन लिया जाए ताकि उनकी मौत के बाद इस मुद्दे को लेकर विरोध पैदा होने की आशंका ना रहे या कम से कम रहे.  

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