Last Updated:June 04, 2025, 13:51 IST
Bengal mountaineer dead on Everest: बंगाल के सुब्रत घोष की पिछले महीने माउंट एवरेस्ट से लौटते समय मौत हो गई. उनका शव हिलेरी स्टेप के करीब बर्फ में पड़ा हुआ है. उसे नीचे लाना एक खर्चीला और चुनौतीपूर्ण काम है. उन...और पढ़ें

माउंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है और इस पर चढ़ना सबसे कठिनतम काम.
हाइलाइट्स
सुब्रत घोष का शव एवरेस्ट से लाना महंगा और चुनौतीपूर्ण हैघोष का शव लाने में 1.5 करोड़ रुपये का खर्चा हो सकता हैचढ़ाई का सीजन खत्म होने से शव लाना फिलहाल संभव नहींBengal mountaineer dead on Everest: माउंट एवरेस्ट फतह करना एक बहुत ही कठिन और चुनौतीपूर्ण काम है. लेकिन दुनिया के हर पर्वतारोही का सपना होता है कि वो अपने जीवन में एक बार माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने में सफल हो. यह दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है और इसकी चढ़ाई में कई तरह की कठिनाइयां आती हैं. जैसे कि अत्यधिक ऊंचाई, कम ऑक्सीजन, खराब मौसम और बर्फ की दरारें. पिछले महीने एक भारतीय पर्वतारोही की माउंट एवरेस्ट पर शिखर से उतरते समय मृत्यु हो गई. 45 वर्षीय सुब्रत घोष पश्चिम बंगाल के रानाघाट के रहने वाले थे. पर्वतारोही सुब्रत घोष की मौत हिलेरी स्टेप के ठीक नीचे हुई. यह 8,848.86 मीटर (29,032 फीट) की चोटी के पास एक खतरनाक खंड है. हिलेरी स्टेप को वैसे भी ‘डेथ जोन’ कहा जाता है. ये 8,000 मीटर से ऊपर का इलाका है, जहां ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है. ये जगह शिखर तक पहुंचने और वापस आने वाले पर्वतारोहियों के लिए खतरनाक साबित होती है.
हिमालयन टाइम्स के अनुसार सुब्रत घोष कृष्णनगर पर्वतारोहण संघ-स्नोई एवरेस्ट अभियान 2025 का हिस्सा थे और 10 मई की दोपहर को शिखर पर पहुंचे थे. अभियान का आयोजन करने वाली कंपनी स्नोई होराइजन ट्रैक्स के प्रबंध निदेशक बोधराज भंडारी ने कहा, “सुब्रत घोष दोपहर दो बजे के आसपास शिखर पर पहुंचे, लेकिन उतरते समय उनमें थकावट और ऊंचाई से जुड़ी बीमारी के लक्षण दिखने लगे. आखिरकार उन्होंने नीचे की ओर बढ़ना जारी रखने से इनकार कर दिया.” उनके शेरपा गाइड चंपल तमांग ने उन्हें नीचे उतरने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहे. तमांग 15 मई की देर रात अकेले ही कैंप IV में वापस लौटे और 16 मई की सुबह-सुबह उन्होंने घटना की सूचना दी.
शव बरामद करने के प्रयास जारी
पर्वतारोही सुब्रत घोष के शव को बरामद करने और उसे बेस कैंप वापस लाने के प्रयास जारी हैं. मौत का सही कारण पोस्टमार्टम के बाद पता चलेगा. इस पर्वतारोहण सत्र में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर यह दूसरी मृत्यु है. एक अन्य पर्वतारोही फिलीपींस के 45 वर्षीय फिलिप सैंटियागो शिखर के ठीक नीचे एक ज्यादा ऊंचाई वाले शिविर (साउथ कोल) में मर गए. माना जा रहा है कि सैंटियागो 14 मई को कैंप IV तक पहुंचने में थक गये थे. अपने टेंट में आराम करते समय उनकी मृत्यु हो गई. सुब्रत घोष और फिलिप सैंटियागो दोनों स्नोई होराइजन ट्रैक्स द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय अभियान का हिस्सा थे. सुब्रत घोष का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है. लेकिन उनका शव दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर जमी हुई अवस्था में पड़ा हुआ है. एवरेस्ट और कंचनजंगा जैसी ऊंची चोटियों से किसी पर्वतारोही का शव नीचे लाना बहुत चुनौतीपूर्ण काम है. इसीलिए इन जगहों को ‘विश्व का सबसे ऊंचा कब्रिस्तान’ भी कहा जाता है.
शव नीचे लाना कठिन क्यों?
सुब्रत घोष के शव को नीचे लाने में पहली बाधा इसमें होने वाला बड़ा खर्च है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के युवा मामले और खेल मंत्रालय के तहत पश्चिम बंगाल पर्वतारोहण और साहसिक खेल फाउंडेशन के सलाहकार देबदास नंदी ने कहा, “ऊंचाई से शवों को वापस लाना एक बहुत बड़ा काम है. यह बहुत महंगा है.” उन्होंने कहा कि इस पर होने वाले खर्च में शेरपाओं की मजदूरी, बीमा, चिकित्सा, रसद सहायता और हेलीकॉप्टर का किराया शामिल है. देबदास नंदी ने कहा कि बहुत कम कंपनियां ऐसे मिशनों को अंजाम देने में सक्षम हैं, जिससे खर्च और बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि 100 से ज्यादा अभियान आयोजकों में से सिर्फ दो या तीन ही शवों को निकालने में माहिर हैं. सुब्रत घोष के मामले में होने वाला खर्च एक करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है.
खर्चीला और मुश्किल काम
सुब्रत घोष के एक साथी पर्वतारोही देबाशीष बिस्वास ने बताया कि आयोजकों में से एक ने शव को निकालने के लिए 1.5 करोड़ रुपये के बजट का अनुमान लगाया है. देबाशीष बिस्वास ने बताया कि इसके लिए आठ या दस अच्छे शेरपाओं की जरूरत होगी. उन्हें हायर करने का खर्च ही 50 लाख रुपये से ज्यादा हो सकता है. एवरेस्ट पर मरने वाले ज्यादातर लोग 8,000 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित ‘डेथ जोन’ में गिरते हैं. यह जगह बर्फ और बर्फ से ढकी दरारों से भरी हुई है. एक बार अगर शेरपाओं की टीम शव तक पहुंच भी जाती है, तो उसे ले जाना बेहद मुश्किल हो सकता है. खासकर अगर वह ऐसी जगह पर हो जहां पहुंचना मुश्किल हो या ऐसी ऊंचाई पर हो जहां हेलीकॉप्टर काम न कर सके. या जहां हिमस्खलन या बर्फ की चट्टानों के गिरने का खतरा हो.
चढ़ाई का सीजन हुआ खत्म
देबदास नंदी ने कहा, “कुछ ऐसी जगहें हैं जहां से शव को ले जाना बेहद चुनौतीपूर्ण है. इन जगहों पर चट्टानें लगभग सीधी खड़ी हैं. शव को रस्सी का उपयोग करके धीरे-धीरे नीचे उतारना होता है. जमे हुए शरीर का वजन उपकरणों के साथ 90 किलोग्राम से अधिक हो सकता है. अगर यह पहाड़ में धंसा हुआ है तो इसे उठाकर नीचे लाना एक अतिरिक्त चुनौती पेश करता है. शरीर को नीचे उतारने या कम ऊंचाई पर ले जाने का काम हेलीकॉप्टर द्वारा सुरक्षित रूप किया जाया जा सकता है. लेकिन यह काम कई दिनों तक चल सकता है.” देबदास नंदी ने कहा, “हेलीकॉप्टर एवरेस्ट पर कैंप 2 तक जा सकता है, जो 6,750 मीटर (22,145 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है. इससे ज्यादा ऊंचाई पर सिर्फ शेरपा ही जा सकते हैं.” सुब्रत घोष का मामला वैसे भी चुनौतीपूर्ण है. क्योंकि चढ़ाई का सीजन (मार्च-मई, जब मौसम स्थिर होता है) अब समाप्त हो चुका है. क्योंकि सीजन 29 मई को खत्म हो गया इसलिए कोई सहायता उपलब्ध नहीं है.
100 से ज्यादा लोग शिखर पर पहुंचे
देबदास नंदी ने कहा, “सुब्रत घोष का शव एवरेस्ट शिखर से 500-600 मीटर नीचे बहुत खतरनाक जगह पर पड़ा है. यह जगह इतनी संकरी है कि दो लोग एक साथ नहीं जा सकते. अगर परिवार सरकार से संपर्क भी करता है, तो यह काम बाद में ही किया जा सकता है इस सीजन में संभव नहीं है.” इस काम में आने वाली भारी लागत और चुनौतियों के बावजूद पहले भी कई पर्वतारोहियों के शव नीचे लाए गए हैं. इस सीजन में नेपाल के पर्यटन विभाग ने एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए 459 परमिट जारी किए थे. जिनमें से 100 से ज्यादा पर्वतारोही और गाइड शिखर पर पहुंचने में सफल रहे.
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New Delhi,Delhi