Last Updated:August 03, 2025, 20:59 IST
Pappu Yadav News: बिहार चुनाव 2025 की तैयारी में पप्पू यादव की सियासी बेचैनी बढ़ी. कांग्रेस में विलय के बाद भी पूर्णिया से निर्दलीय जीते. आरजेडी से तनातनी और कांग्रेस में अनिश्चित भूमिका चुनौती बनी.

हाइलाइट्स
पप्पू यादव की कांग्रेस में अनिश्चित भूमिका बनी हुई है.आरजेडी और पप्पू यादव के बीच तनातनी जारी है.पप्पू यादव ने पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव जीता.पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की सियासी बेचैनी चर्चा का केंद्र बनी हुई है. बिहार चुनाव के सरगर्मियों के बीच पप्पू यादव 1 अगस्त को कांग्रेस के दिल्ली दफ्तर में देखे गए. पप्पू यादव बीते एक साल से कांग्रेस में औपचारिक एंट्री की राह देख रहे हैं. दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 के ठीक पहले पप्पू यादव ने अपनी जनाधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में करा दिया था. लेकिन पूर्णिया लोकसभा सीट से महागठबंधन का उम्मीदवार नहीं बनाए जाने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा औऱ जीत हासिल की. इसके बाद से ही आरजेडी और पप्पू यादव में तनातनी चल रही है. बीते दिनों राहुल गांधी के पटना दौरे पर कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को मंच पर जगह नहीं मिलना इसका संकेत है. ऐसे में बिहार चुनाव से ठीक पहले पप्पू यादव कांग्रेस के बड़े नेताओं से अपना दुखड़ा सुनाने रविवार को कांग्रेस दफ्तर पहुंचे थे.
कभी लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे पप्पू यादव अब कांग्रेस के साथ नई पारी खेल रहे हैं, लेकिन बार-बार दिल्ली में कांग्रेस दफ्तर की दौड़ और महागठबंधन में उनकी अनिश्चित भूमिका सवाल खड़े कर रही है. पप्पू यादव की सियासी सांसें अटकी हुई हैं. पप्पू यादव ने मार्च 2024 में अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) को कांग्रेस में विलय कर दिया था. पूर्णिया से छह बार के सांसद और कोसी-सीमांचल के प्रभावशाली नेता पप्पू ने कांग्रेस के साथ जुड़कर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की ‘लोकतंत्र बचाओ’ मुहिम को समर्थन दिया. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला और उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पूर्णिया से जीत हासिल की. इस जीत ने उनकी सियासी ताकत तो दिखाई, लेकिन कांग्रेस में उनकी स्थिति को अस्पष्ट कर दिया.
सियासी समीकरण और भविष्य
हाल के महीनों में पप्पू यादव ने दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय की कई चक्कर लगाए. बीते 14 जुलाई 2025 को बी वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के साथ बिहार चुनाव पर चर्चा के लिए बैठक में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि वे पार्टी की ओर से दी गई किसी भी भूमिका को निभाएंगे. लेकिन 9 जुलाई 2025 को पटना में विपक्षी रैली के दौरान उन्हें और कन्हैया कुमार को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ वैन पर चढ़ने से रोक दिया गया, जिसे उन्होंने ‘अपमान’ बताया, हालांकि बाद में उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया.
तेजस्वी से तनातनी और सियासी महत्वाकांक्षा
पप्पू यादव की सबसे बड़ी चुनौती महागठबंधन में आरजेडी के साथ समन्वय है. 24 जुलाई 2025 को एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने तो या तो मुझे मरवा देंगे या मैं बिहार छोड़ दूंगा.’ यह बयान उनकी और तेजस्वी की पुरानी अदावत को उजागर करता है. पप्पू ने यह भी दावा किया कि बिहार में कांग्रेस को ‘बड़े भाई’ की भूमिका निभानी चाहिए, जिससे आरजेडी के साथ सीट बंटवारे पर तनाव उभरकर सामने आया.
पप्पू यादव क्या खेल करेंगे?
18 अप्रैल 2025 को पप्पू ने कोसी और सीमांचल में कांग्रेस के लिए अधिक सीटों की मांग की, क्योंकि यह क्षेत्र उनकी ताकत है. लेकिन आरजेडी ने 2020 में इन क्षेत्रों में कांग्रेस को सीमित सीटें दी थीं और अब भी उनकी मांग को नजरअंदाज करने की संभावना है. पप्पू यादव ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया तीखा हमला बोला. उन्होंने 65.64 लाख मतदाताओं की कटौती को बिहार और बिहारी की पहचान पर हमला करार दिया. 9 जुलाई 2025 की रैली में उनकी सक्रियता ने दिखाया कि वे कांग्रेस के लिए भीड़ जुटाने में सक्षम हैं, लेकिन वैन विवाद ने उनकी स्थिति को कमजोर किया.
पप्पू यादव की सियासी ताकत कोसी और सीमांचल में है, जहां यादव, मुस्लिम, और दलित मतदाता उनकी ताकत हैं. लेकिन महागठबंधन में तेजस्वी यादव के नेतृत्व और आरजेडी की दबंगई उनके लिए चुनौती है. कांग्रेस की कमजोर संगठनात्मक स्थिति और सीट बंटवारे में कम हिस्सेदारी उनके लिए रास्ता मुश्किल बनाती है. यदि कांग्रेस 2025 में 70 सीटों की मांग करती है तो पप्पू की भूमिका अहम हो सकती है, लेकिन तेजस्वी के साथ तनाव इसे जटिल बनाता है.
First Published :
August 03, 2025, 20:56 IST