Kuber Temple Gujarat: धनतेरस को धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर देव का दिन माना जाता है. कुबेर को नौ निधियों का अधिपति माना जाता है. मान्यता है कि धनतेरस पर देवी लक्ष्मी और कुबेर भगवान की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन पूरी आस्था से पूजा करने पर आर्थिक तंगी से छुटकारा मिल जाता है और धन्य धान्य की प्राप्ति होती है.
वैसे तो हमारे देश के कोने-कोने में मंदिरों और धार्मिक स्थलों की कमी नहीं है. कुछ मंदिर ऐसे हैं जिनकी देश ही नहीं विदेश में भी काफी मान्यता है. लेकिन आपने भगवान कुबेर के मंदिर ज्यादा नहीं देखे होंगे. कुबेर भगवान का एक मंदिर वडोदरा में है जिसकी सबसे ज्यादा मान्यता है. इस मंदिर को कुबेर भंडारी मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कोई भी भक्त धनतेरस या दिवाली के दिन भगवान कुबेर के दर्शन के लिए पहुंचता है तो खाली हाथ नहीं लौटता है. यहां पर दिवाली से पहले और दिवाली के बाद तक भक्तों की भीड़ लगी रहती हैं. धनतेरस और दिवाली के दिन इस मंदिर में भक्तों की सबसे अधिक भीड़ होती है.
ये भी पढ़ें– 160 फूलों से मिलता है केवल 1 ग्राम, क्या है वो सबसे महंगा मसाला जो बिकता है सोने के भाव
किस जगह है यह मंदिर
यह मशहूर कुबेर भंडारी मंदिर गुजरात के वडोदरा जिले के करनाली गांव में स्थित है. इसकी इतनी मान्यता है कि धनतेरस और दीपावली पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. धनवान बनने की आस लिए देश के अलग-अलग राज्यों से भक्त यहां पहुंचते हैं. ज्यादातर भक्त यही आशीर्वाद मांगते हैं कि उनका घर सुख और समृद्धि से हमेशा भरा रहे. यह भी मान्यता है कि जो भी भक्त धनतेरस या दिवाली के दिन इस मंदिर से मिट्टी को लेकर तिजोरी में रखता है उसके घर में लक्ष्मी जी हमेशा निवास करती हैं.
2500 साल पुराना इतिहास
माना जाता है कि कुबेर भंडारी मंदिर का निर्माण करीब 2500 साल पहले किया गया था. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण किसी आम आदमी नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव ने किया था. नर्मदा नदी के तट पर बना होने के कारण इसी लोकेशन बेहद रमणीक लगती है. यहां आकर श्रद्धालुओं को एक विशेष किस्म की शांति की अनुभूति होती है.
ये भी पढ़ें- टाटा ग्रुप का वह कौन सा अध्यक्ष जो फ्रांस की सेना में हुआ था शामिल, बना सिपाही
जानिए मंदिर के बनने की कहानी
इस मंदिर के बनने को लेकर एक कहानी कही जाती है जो काफी प्रचलित है. कहा जाता है कि भगवान शिव और पार्वती एक बार पैदल यात्रा पर निकले थे. रास्ते में मां पार्वती को भूख लगी और उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि उन्हें भोजन और पानी चाहिए. इधर-उधर घूमने के बाद भगवान शिव को भोजन नहीं मिला तो वो नर्मदा नदी के किनारे पर ठहर गए. इसके बाद इस जगह मंदिर का निर्माण हुआ और इस मंदिर को कुबेर यानी भोजन या धन देने वाला मंदिर के रूप में जाना जाने लगा.
कौन हैं कुबेर भगवान
पौराणिक कथाओं के अनुसार कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई थे. उनके पिता महर्षि विश्रवा थे. माना जाता है कि कुबेर को देवताओं के धन का खंजाची बनाया गया था. इसके साथ ही वह उत्तर दिशा के दिक्पाल और दुनिया के रक्षक अथवा लोकपाल कहे जाते हैं. इसीलिए वास्तु के मुताबिक, उत्तर दिशा को भगवान कुबेर और मां लक्ष्मी की दिशा माना जाता है. कुबेर देव की मूर्ति उत्तर-पूर्व दिशा में लगाना शुभ कहा जाता है. कुबेर देव की प्रतिमा का मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए.
ये भी पढ़ें- कौन हैं शतरंज के ‘अर्जुन’, जिन्होंने मनोरंजन के लिए सीखा था चेस, अब रचा इतिहास
क्यों की जाती है पूजा
धनतेरस पर कुबेर देव को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा की जाती है. धनतेरस पर मां लक्ष्मी के साथ ही कुबेर देव का पूजन करना शुभ माना जाता है. माना जाता है कि वट वृक्ष में कुबेर का निवास होता है. इसीलिए धनतेरस पर वट वृक्ष पर जल चढ़ाना और वट वृक्ष की पूजा करना भी बेहद शुभ होता है. कुबेर देव के भोग में पीली चीजें उनके समक्ष अर्पित करना बेहद शुभ कहा जाता है.
Tags: Gujrat news, Laxmi puja, Vadodara News
FIRST PUBLISHED :
October 29, 2024, 13:09 IST