हम सभी विक्रम संवत और हिंदू कैलेंडर से वाकिफ हैं. जिसे प्राचीन भारत के सबसे प्रभावशाली काल गणनाओं में एक माना जाता है. यह संवत भारत, नेपाल और अन्य हिंदू बहुल क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. क्या आपको मालूम है कि इसको बनाने का काम किसने किया था. ये शख्स अपने जमाने का ऐसा योगी था, जिसने बीवी की बेवफाई के कारण राजपाट छोड़ दिया. जंगल चला गया. ध्यान और तप में लग गया. फिर महान योगी के तौर पर प्रसिद्ध हुआ.
विक्रम संवत कैलेंडर को बनाने और उसे बेहतर करने का काम योगी भृतहरि ने किया था. वह भारतीय संत, योगी और दार्शनिक थे, जिन्हें संस्कृत साहित्य में भी एक महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है.
वह राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे
वह राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे. अपनी गहन योग और ध्यान साधना के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने नीति शास्त्र, योग, और ध्यान पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे. माना जाता है कि उन्होंने विक्रम संवत की गणना और इसके वैज्ञानिक आधार को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रानी की बेवफाई से लगा तगड़ा झटका
भृतहरि की भी अपनी एक कहानी है. पहले वह राजा थे. उज्जैन में राज करते थे. उन्हें विलासिता और भोग में बहुत रुचि थी. कहा जाता है कि उनकी कई पत्नियां थीं, लेकिन उनकी प्रमुख रानी ने उन्हें गहरे आघात में डाल दिया. एक कथा के अनुसार भृतहरि अपनी रानी से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन जब उन्हें ये पता लगा कि उनकी प्रिय रानी वास्तव में किसी अन्य पुरुष से प्रेम करती है, तो उन्हें इतना तगड़ा झटका लगा कि वो उन्हें जीवन के उस तरीके से मोहभंग हो गया, जिसे वह जी रहे थे. इस विश्वासघात ने उन्हें गहन आत्ममंथन की ओर प्रेरित किया.
तब भृतहरि उज्जैन के राजा थे. भोग विलास में डूबे रहते थे. लेकिन जब उन्हें अपनी बड़ी रानी के विश्वासघात का प्रमाण मिले तो वह स्तब्ध रह गए. ये ऐसा झटका था, जिससे उनका मन वैराग्य की ओर मुड गया. उन्होंने संन्यास ले लिया. (Photo By News18 AI)
क्या है इस बेवफाई की पूरी कहानी
भृतहरि की पत्नी का नाम पिंगला (या अनंगसेना) बताया जाता है. वह रानी के प्रति गहरे प्रेम में थे. कैसे उन्हें पत्नी की बेवफाई का पता चला, इसका भी दिलचस्प किस्सा है.
कहानी के अनुसार, भृतहरि को एक संत ने एक अमर फल (अमरत्व प्रदान करने वाला फल) भेंट किया.भृतहरि ने ये फल अपनी प्रिय पत्नी पिंगला को दे दिया, क्योंकि वह चाहते थे कि वह हमेशा उनके साथ रहे. लेकिन पिंगला ने वह फल अपने प्रेमी को दे दिया, जो एक घुड़सवार था. उस घुड़सवार ने फल को एक अन्य स्त्री को दे दिया, जो आखिरकार उसे वापस भृतहरि के पास ले आई, क्योंकि वह राजा से प्रभावित थी. जब भृतहरि को इस फल के चक्कर का पता चला, तो उन्हें अपनी पत्नी की बेवफाई और सांसारिक प्रेम की नश्वरता का गहरा आघात लगा. इस घटना ने उनके मन में वैराग्य की भावना जगा दी.
राजपाट छोड़ दिया और महान रचनाएं कीं
इस आघात के बाद, उन्होंने राजपाट त्याग दिया. अपने भाई विक्रमादित्य को राजा बना दिया. खुद संन्यास ले लिया. वह योग और साधना की ओर मुड़ गए. फिर महान योगी और दार्शनिक बन गए. उनके द्वारा रचित ‘वैराग्य शतक’ में उनके वैराग्य और जीवन में हुए इस गहरे परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. उन्हें संस्कृत साहित्य में उनके तीन शतकों – शृंगारशतक, नीतिशतक, और वैराग्यशतक – के लिए जाना जाता है.
भृतहरि अपने जमाने के महान गणितज्ञ और ग्रह- नक्षत्र की गणनाएं करने में सिद्धहस्त थे. इसी विशेषज्ञता का परिचय देते हुए उन्होंने हिंदू पंचाग बनाया,जो आज भी पूरे देश में धार्मिक हिंदू क्रियाकलापों और शुभ कामों में इस्तेमाल किया जाता है. (Photo by News18 AI)
कैसे कैलेंडर बनाया
भृतहरि और कैलेंडर (संवत) के बनाने की कहानी उनके भाई विक्रमादित्य से जुड़ी है. ऐसा माना जाता है कि विक्रमादित्य ने अपने शासनकाल में एक नए संवत की शुरुआत की, जिसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है . लोककथाओं में कहा जाता है कि जब भृतहरि ने राजपाट छोड़कर वैराग्य लिया, तो विक्रमादित्य ने अपने भाई के सम्मान में या उनकी स्मृति में इस संवत की स्थापना की. कुछ कथाओं में यह भी कहा गया कि विक्रमादित्य ने भृतहरि से ही इस संवत को शुरू करने की प्रेरणा ली.
यूं ही नहीं बन गया हिंदू कैलेंडर
विक्रम संवत यानि हिंदू पंचांग या हिंदू कैलेंडर को तैयार करने में भृतहरि ने ये काम किया
खगोलीय गणनाओं का अध्ययन – भृतहरि ने खगोलीय गणनाओं और ब्रह्मांडीय चक्रों का अध्ययन कर यह समझा कि वर्ष की गणना कैसे की जानी चाहिए. उन्होंने देखा कि पृथ्वी और चंद्रमा की गति को ध्यान में रखते हुए पंचांग तैयार किया जा सकता है.
नक्षत्रों और ग्रहों का विश्लेषण – उन्होंने विभिन्न ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभावों का अध्ययन किया. इसका उपयोग कर उन्होंने महीने और वर्ष की गणना की.
मौसम परिवर्तन का अवलोकन – ऋतुओं के परिवर्तन का विश्लेषण कर उन्होंने तिथियों और महीनों को व्यवस्थित किया, जिससे कृषि और सामाजिक जीवन प्रभावित होता था.
चंद्र-सौर गणना का समायोजन – भृतहरि ने चंद्र वर्ष और सौर वर्ष के बीच समायोजन की तकनीक विकसित की, जिससे विक्रम संवत अधिक सटीक बना.
विक्रम संवत धीरे-धीरे लोकप्रिय हुआ. इसे भारत के कई हिस्सों में अपनाया गया. यह हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों और धार्मिक अनुष्ठानों की गणना के लिए एक मानक प्रणाली बन गया.