कैसे काम करता है भारत का एयर डिफेंस सिस्टम, जिसने नापाक मंसूबों को किया नाकाम

7 hours ago

Last Updated:May 09, 2025, 17:44 IST

India-pakistan War: भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तानी हमलों को विफल कर दिया. यह सिस्टम रडार, कंट्रोल रूम, लड़ाकू विमान और मिसाइलों की मदद से काम करता है. साथ ही भारत ने लाहौर में पाकिस्तान की एक वायु रक्ष...और पढ़ें

कैसे काम करता है भारत का एयर डिफेंस सिस्टम, जिसने नापाक मंसूबों को किया नाकाम

यह सिस्टम रडार, कंट्रोल रूम, लड़ाकू विमान और मिसाइलों की मदद से काम करता है.

हाइलाइट्स

भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने पाक हमलों को विफल कियालाहौर में पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली निष्क्रिय की गईरडार, कंट्रोल रूम, मिसाइलें और विमान मिलकर काम करते हैं

India-pakistan War: भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने गुरुवार को पाकिस्तानी हमलों को विफल कर दिया. एयर डिफेंस सिस्टम ने ढाल बनकर ना केवल भारतवासियों का सीना चौड़ा कर दिया. बल्कि पाकिस्तान के लिए वो काल बनकर सामने आया है. उसकी वजह से भारत पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने में कामयाब रहा.  इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के कई स्थानों पर उसकी वायु रक्षा प्रणालियों को निशाना बनाया.

सेना ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “विश्वसनीय रूप से यह पता चला है कि लाहौर में एक वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर दिया गया है.” आधुनिक युद्ध में आसमान पर नियंत्रण रखना सबसे महत्वपूर्ण है. इसलिए, वायु रक्षा प्रणालियां किसी भी देश के रक्षात्मक ढांचे में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं. एक सक्षम और मजबृूत वायु रक्षा प्रणाली दुश्मन के हवाई हमलों से सुरक्षा प्रदान करती है. जैसा कि इस तथ्य से स्पष्ट है कि पाकिस्तान बुधवार-गुरुवार की रात को भारत को नुकसान पहुंचाने में विफल रहा. 

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कैसे करता है काम
एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु रक्षा प्रणाली का पहला उद्देश्य आसमान से खतरों को खत्म करना है. चाहे वे दुश्मन के लड़ाकू विमान हों, मानवरहित ड्रोन हों या मिसाइलें हों. यह काम रडार, कंट्रोल रूम, रक्षात्मक लड़ाकू विमानों और जमीन आधारित वायु रक्षा मिसाइल, तोपखाने और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक जटिल प्रणाली की सहायता से किया जाता है. वायु रक्षा प्रणाली के काम करने के तरीके को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है.

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खतरे का पता लगाना
किसी भी वायु रक्षा प्रणाली की सफलता की कुंजी सबसे पहले खतरों का पता लगाने की इसकी क्षमता है. यह आमतौर पर रडार द्वारा किया जाता है. हालांकि कुछ परिस्थितियों में सेटेलाइट्स का उपयोग किया जा सकता है. जैसे कि दुश्मन द्वारा इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) लॉन्च करना. रडार एक ट्रांसमीटर के माध्यम से विद्युत चुंबकीय रेडियो तरंगों की किरणें भेजते हैं. ये तरंगें उन वस्तुओं से परावर्तित होती हैं, जिनसे वे टकराती हैं, जैसे कि दुश्मन का विमान. फिर एक रिसीवर वापस आने वाली रेडियो तरंगों को इकट्ठा करता है. जिसके आधार पर वह खतरे की दूरी, उसकी गति और उसकी विशिष्ट प्रकृति (किस तरह का विमान/मिसाइल) जैसे अनुमान लगाता है.

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ट्रैकिंग की क्षमता
वायु रक्षा प्रणाली की दक्षता हवाई खतरे को लगातार और सटीक रूप से ट्रैक करने की इसकी क्षमता से भी निर्धारित होती है. यह काम आमतौर पर रडार और इन्फ्रारेड कैमरे या लेजर रेंजफाइंडर जैसे अन्य सेंसर के संयोजन का उपयोग करके किया जाता है. अधिकतर मामलों में वायु रक्षा प्रणाली को केवल एक ही खतरे से निपटना नहीं पड़ता है. उसे जटिल वातावरण में तेजी से बढ़ते अनेक खतरों की पहचान करनी होती है और उन पर नजर रखनी होती है. इनमें मित्र विमान भी शामिल हो सकते हैं. झूठे खतरों को टारगेट किए बिना दुश्मन को प्रभावी ढंग से बेअसर करने के लिए ट्रैकिंग की सटीकता महत्वपूर्ण है.

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खतरे को नाकाम करना
एक बार खतरे का पता लग जाने और उसे ट्रैक कर लेने के बाद उसे बेअसर करना जरूरी है. यहां खतरा किस प्रकार का है, ये भी देखना होता है. मसलन वो मिसाइल है या विमान. फिर उसकी गति कितनी है. ये सब चीजें वायु रक्षा के काम करने के तरीके निर्धारित करते हैं. 

वायु रक्षा प्रणाली के इन तीनों पहलुओं को एक साथ मिलकर काम करना होता है. इसके लिए सैन्य भाषा में ‘सी3’ या ‘कमांड, कंट्रोल और कम्युनिकेशन’ प्रणाली की आवश्यकता होती है. हवाई खतरों का पता लगाने, उन पर नजर रखने और उन्हें रोकने की तकनीकी क्षमताओं के अलावा प्रभावी हवाई रक्षा के लिए बेहतर कम्युनिकेशन और फैसला लेने की क्षमताएं भी महत्वपूर्ण हैं.

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New Delhi,Delhi

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