Last Updated:May 02, 2025, 12:32 IST
Inspiring animal lover story: सूरत की त्रिशा पटेल ने एमबीबीएस की पढ़ाई छोड़कर 150 से ज्यादा लावारिस और बीमार जानवरों की सेवा का बीड़ा उठाया. निजी खर्च और लोन से आश्रय गृह चलाकर वह मूक जीवों की मसीहा बन गई हैं. ...और पढ़ें

एमबीबीएस छोड़कर त्रिशा ने शुरू की पशु सेवा
सूरत की 27 साल की त्रिशा पटेल आज हजारों लोगों के लिए मिसाल बन चुकी हैं. बचपन से ही उन्हें जानवरों से बेहद लगाव था, लेकिन यह लगाव इतना गहरा होगा कि वह अपना करियर ही छोड़ देंगी, इसका किसी को अंदाज़ा नहीं था. त्रिशा एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थीं, लेकिन एक दिन सड़क पर घायल और लाचार जानवरों को देख उन्होंने अपनी जिंदगी की दिशा ही बदल दी.
पढ़ाई छोड़ बनीं जानवरों की डॉक्टर
त्रिशा ने तय किया कि अब वह इंसानों की नहीं, बल्कि उन बेजुबानों की सेवा करेंगी जो बोल नहीं सकते. उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और पशु चिकित्सक बनने के लिए नए सिरे से पढ़ाई शुरू की. इसके साथ ही उन्होंने एक ऐसा काम शुरू किया जिसे लोग देखने और सुनने के बाद हैरान रह जाते हैं.
नॉर्दन चौकड़ी में बनाया जानवरों का घर
त्रिशा ने सूरत के नॉर्दन चौकड़ी इलाके में किराए पर एक जगह लेकर वहां एक पशु आश्रय गृह शुरू किया. इस जगह की खास बात ये है कि यहां खास तौर पर लकवाग्रस्त कुत्तों की सेवा की जाती है. इस समय त्रिशा 150 से ज़्यादा जानवरों की देखभाल कर रही हैं, जिनमें 35 लकवाग्रस्त कुत्ते और 40 बिल्लियाँ शामिल हैं. इनमें से ज्यादातर जानवर अपनी सामान्य गतिविधियां भी नहीं कर सकते.
खुद के खर्च पर चल रहा है सेवा का ये काम
इस नेक काम के लिए त्रिशा ने न सिर्फ अपनी पढ़ाई छोड़ी, बल्कि अपनी सारी जमा पूंजी भी खर्च कर दी. जरूरत पड़ी तो उन्होंने पर्सनल लोन भी लिया ताकि किसी भी जानवर को इलाज और देखभाल में कोई कमी न हो. बीते 5 सालों में त्रिशा 350 से ज्यादा जानवरों को नया जीवन दे चुकी हैं.
दोस्त और परिवार नहीं करते समर्थन, लेकिन हौसला कायम
त्रिशा का ये सफर आसान नहीं रहा. उनके परिवार और दोस्त उनकी इस राह से खुश नहीं हैं, लेकिन त्रिशा ने इसे ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है. वो दिन-रात जानवरों की देखभाल में जुटी रहती हैं – किसी को शौच के लिए ले जाना हो या किसी को दवाई देना, सब काम वो खुद करती हैं.
हर दिन सैकड़ों जानवरों को खिलाती हैं खाना
त्रिशा का सेवा भाव यहीं खत्म नहीं होता. हर दिन वह करीब 450 सड़कों पर रहने वाले जानवरों को अपने हाथों से खाना खिलाती हैं. उनके आश्रय में सिर्फ गलियों के कुत्ते ही नहीं, बल्कि डोबर्मन, लैब्राडोर, ल्हासा और गोल्डन रिट्रीवर जैसे पालतू नस्लों के कुत्ते भी हैं, जिन्हें किसी ने लावारिस छोड़ दिया था.