सिंदूर, चूड़ियां, पायल... शादी के बाद भी यहां क्यों नहीं पहनती महिलाएं?

16 hours ago

Last Updated:May 02, 2025, 20:09 IST

Anokha Gaon: ओडिशा के चांदी बांसमुला गांव में राउल समुदाय की विवाहित महिलाएं सिंदूर, चूड़ियां और पायल नहीं पहनतीं. वे मां मटिया मंगला देवी की श्रद्धा में पलंग पर भी नहीं सोतीं.

सिंदूर, चूड़ियां, पायल... शादी के बाद भी यहां क्यों नहीं पहनती महिलाएं?

शादी के बाद भी यहां महिलाएं सिंदूर, चूड़ियां, पायल नहीं पहनती हैं. (सांकेतिक फोटो Shutterstock)

हाइलाइट्स

राउल समुदाय की विवाहित महिलाएं सिंदूर, चूड़ियां और पायल नहीं पहनतीं.महिलाएं मां मटिया मंगला देवी की श्रद्धा में पलंग पर नहीं सोतीं.देवी के श्रृंगार करने के बाद उन्हें पहनना अपमान माना जाता है.

Anokha Gaon: ओडिशा के एक गांव में शादीशुदा महिलाओं की पहचान कुछ अलग है. आप सोच रहे होंगे कि सिंदूर, शंख की चूड़ियां और पायल तो हर विवाहित महिला का श्रृंगार होता है, लेकिन केंद्रापड़ा के चांदी बांसमुला गांव में राउल समुदाय की महिलाओं के लिए यह नियम बिल्कुल उलट है. यहां की विवाहित महिलाएं न तो माथे पर सिंदूर सजाती हैं, न हाथों में शंख की चूड़ियां पहनती हैं और न ही पैरों में पायल की झंकार सुनाई देती है. इतना ही नहीं ये महिलाएं पलंग पर सोना भी त्याग देती हैं. इसकी वजह कोई विरोध या मजबूरी नहीं बल्कि मां मटिया मंगला देवी के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा है एक ऐसी आस्था जो सदियों से चली आ रही है.

समुदाय की सुमित्रा राउल कहती हैं कि देवी स्वयं ये श्रृंगार करती हैं, इसलिए उन्हें पहनना उनका अपमान माना जाता है. उनकी मान्यता है कि देवी उनकी बेटी के समान हैं. यह परंपरा सदियों पहले शुरू हुई जब देवी एक शंख विक्रेता के सामने बालिका रूप में प्रकट हुईं और एक चूड़ी मांगी, जिसका भुगतान उनके ‘पिता’ श्रीवत्स राउल करेंगे. विक्रेता को श्रीवत्स की कोई बेटी न होने पर भी रहस्यमय तरीके से चूड़ी की कीमत मिल गई. इसके बाद देवी की मूर्ति मिली और उनकी पूजा शुरू हुई.

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देवी पर चढ़ाया जाता है अलग तरह का प्रसाद
मटिया गांव जहां देवी पहली बार प्रकट हुई थीं अब नदी में समा चुका है. यहां देवी को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद भी अलग होते हैं. इनमें स्थानीय चीजें और रोजमर्रा की वस्तुएं शामिल हैं. हर सुबह हाथ से धान कूटा जाता है और दोपहर के भोजन में मछली का स्टू चढ़ाया जाता है, जो देवी का प्रिय भोजन माना जाता है. मांस और अंडे समुदाय के लिए वर्जित हैं.

देवी के सेविका के रूप में नामित 31 राउल परिवारों की महिलाएं विवाहित जीवन के प्रतीकों से दूर रहती हैं. वे प्लास्टिक या धातु की साधारण चूड़ियां पहनती हैं और फर्श पर सोती हैं. उनका मानना है कि देवी के श्रृंगार करने के बाद उन्हें पहनना प्रतिस्पर्धा करने जैसा है.

कई अनोखी परंपरा
एक और अनोखी परंपरा यह है कि शाम की आरती के बाद देवी को भोजन नहीं चढ़ाया जाता. समुदाय में शादियां भी सूर्यास्त से पहले संपन्न हो जाती हैं. ये महिलाएं देवी लक्ष्मी की पूजा भी अलग तरीके से करती हैं, क्योंकि वे मां मटिया मंगला की पूजा को ही सर्वोच्च मानती हैं.

यहां देवी को बेटी के रूप में पूजा जाता है और हर भोजन से पहले उन्हें पहला हिस्सा अर्पित किया जाता है. अप्रैल में पाना संक्रांति को उनका जन्मदिन मनाया जाता है. सेवक समुदाय के अध्यक्ष अभिराम राउल बताते हैं कि देवी उनके परिवार का हिस्सा हैं और उनके चमत्कार उनके जीवन में रचे बसे हैं. समुदाय की महिलाएं मानती हैं कि उनकी पहचान विवाहित होने से नहीं, बल्कि मां मटिया मंगला की भक्त होने से है.

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