Last Updated:March 13, 2025, 21:10 IST
Maharashtra: बीड जिले के विदा गांव में होली पर अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जहां दामाद को गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है. 90 साल पुरानी यह परंपरा अब महाराष्ट्र में मशहूर हो चुकी है और पर्यटकों को आकर...और पढ़ें

होली पर होती है अनोखी परंपरा.
बीड जिले के केज तालुका के विदा गांव में हर साल धूलि वंदना के दिन एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है, जो आपको चौंका सकती है. आमतौर पर दामाद का स्वागत बड़े प्यार और आदर के साथ किया जाता है, लेकिन इस गांव में तस्वीर कुछ अलग ही है. यहां दामाद को सम्मान देने का तरीका इतना अनोखा है कि देखने वाले भी हैरान रह जाते हैं. यहां नए दामाद को गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है और यह परंपरा पिछले 90 साल से चली आ रही है.
कैसे शुरू हुई यह मजेदार परंपरा?
इस अनोखी परंपरा की शुरुआत निजामशाही के दौर में हुई थी. उस समय विदा गांव पर जहांगीरदार आनंदराव देशमुख का शासन था. कहानी के मुताबिक, एक बार उन्होंने अपने दामाद के साथ मजाक करने के लिए उसे गधे पर बैठाया और पूरे गांव में घुमा दिया. इस घटना ने गांव वालों को इतना हंसा दिया कि उन्होंने इसे हर साल दोहराने का फैसला कर लिया. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है और अब यह पूरे महाराष्ट्र में मशहूर हो चुकी है.
दामाद के लिए मजाक या सम्मान?
पहली नजर में यह परंपरा एक मजाक लग सकती है, लेकिन गांववालों का मानना है कि यह सम्मान देने का एक अनोखा तरीका है. जुलूस में पूरा गांव शामिल होता है, लोग हंसी-मजाक करते हैं, ढोल-नगाड़े बजते हैं और एक तरह से पूरे गांव में उत्सव का माहौल बन जाता है. लेकिन एक दिलचस्प नियम यह भी है कि किसी भी दामाद को यह अनुभव दोबारा नहीं मिलता. यानी, जिसने एक बार गधे पर सवारी कर ली, उसे फिर से यह परंपरा झेलनी नहीं पड़ती.
भागने की कोशिश करते हैं दामाद!
यह परंपरा इतनी मशहूर हो गई है कि अब नए दामाद इससे बचने की कोशिश करने लगे हैं. धूलि वंदना से दो दिन पहले ही गांव के युवा दामादों को पकड़ने का अभियान शुरू कर देते हैं. कुछ दामाद गांव छोड़कर भाग जाते हैं तो कुछ अपने ही घरों में छिपने की कोशिश करते हैं. लेकिन गांववाले भी कम नहीं हैं! वे दामादों को ढूंढ ही लेते हैं और जैसे ही कोई पकड़ में आता है, उसे गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमा दिया जाता है. इस दौरान गांववाले डीजे की धुन पर नाचते हैं, हंसी-ठिठोली करते हैं और पूरा माहौल एक बड़े मेले जैसा हो जाता है.
कैसे होता है इस परंपरा का समापन?
जुलूस का अंत गांव के हनुमान मंदिर के पास होता है. यहां पर गधे की सवारी कर चुके दामाद को नए कपड़े और मिठाई देकर सम्मानित किया जाता है. भले ही यह रस्म थोड़ी हास्यास्पद लगे, लेकिन गांव के लोग इसे प्रेम और अपनापन जताने का तरीका मानते हैं. इस परंपरा को देखने के लिए हर साल न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दूसरे गांवों और शहरों से भी सैकड़ों पर्यटक आते हैं.
सोशल मीडिया पर भी मचती है धूम
विदा गांव की यह अनोखी परंपरा अब सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल होती है. हर साल इस जुलूस की तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर छा जाते हैं. कई बार टीवी चैनल भी इस अनोखे जुलूस की कवरेज करने पहुंचते हैं. इस परंपरा की सबसे खास बात यह है कि इसमें हंसी-मजाक के साथ-साथ ग्रामीणों के बीच आपसी प्रेम और एकता भी नजर आती है.
First Published :
March 13, 2025, 21:09 IST