कौन था वो क्रूर अंग्रेज अफसर जिसकी प्रतिमा से पीएम मोदी ने हटवाया अहम टैग

10 hours ago

Who Is John Nicholson: केंद्र सरकार ने मंगलवार (3 दिसंबर) को ईस्ट इंडिया कंपनी के एक ब्रिटिश अधिकारी जॉन निकोलस की प्रतिमा से ‘राष्ट्रीय महत्व का स्मारक’ का दर्जा खत्म कर दिया. इसे केंद्र सरकार का एक बड़ा कदम माना जा रहा है. क्योंकि इस क्रूर ब्रिटिश ब्रिगेडियर-जनरल ने 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जॉन निकोलस को भारत के प्रति कठोर और उसे नापसंद करने वाले सैन्य अधिकारी के रूप में देखा जाता था. उसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिल्ली की घेराबंदी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 

जॉन निकोलस की यह प्रतिमा दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास स्थित थी. वह इसी स्थान पर एक संघर्ष के दौरान मारा गया था. वास्तव में, जॉन निकोलस की यह प्रतिमा अब उस जगह पर नहीं है. उसकी प्रतिमा को 1958 में उत्तरी आयरलैंड भेज दिया गया था. उस जगह पर अब केवल एक पट्टिका और एक आधारशिला बची है. लेकिन फिर भी उनकी प्रतिमा को ‘राष्ट्रीय महत्व का स्मारक’ का दर्जा हासिल था. 

ये भी पढ़ें- क्यों हिंदू धर्म में मसूर की दाल को मानते हैं ‘नॉन-वेज’, ब्राह्मण अपने भोजन में नहीं करते शामिल

1913 में कश्मीरी गेट के पास लगी प्रतिमा
केंद्र सरकार ने यह कदम जॉन निकोलस की प्रतिमा, उसकी आधारशिला, आसपास के बगीचों, रास्तों और घेराबंदी करने के लिए बनाई गई दीवार को ‘राष्ट्रीय महत्व का स्मारक’ घोषित करने किए जाने के 111 साल बाद उठाया है. उस समय भारत की ब्रिटिश सरकार ने जॉन निकोलस की तलवार लिए हुए प्रतिमा बनवाई थी और 11 दिसंबर, 1913 को एक अधिसूचना के जरिये उसे राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया था. 

क्या होते हैं राष्ट्रीय महत्व के स्मारक
राष्ट्रीय महत्व का स्मारक (MNI) भारतीय कानून, विशेष रूप से 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम के तहत संरक्षित स्थल हैं. इसके लिए सरकार एक प्रक्रिया का पालन करती है जिसमें एक स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने के लिए नोटिस जारी करना, सार्वजनिक प्रतिक्रिया पर विचार करना और आधिकारिक रूप से निर्णय की सूचना देना शामिल है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इन स्मारकों का संरक्षण और देखरेख करता है. वो यह सुनिश्चित करता है कि इस तरह के स्मारक किसी तरह के नुकसान से सुरक्षित रहें. उसका काम रास्ते, संकेत और आने वालों के लिए सुविधाएं प्रदान करना भी है.

ये भी पढ़ें- भोपाल हादसा: अर्जुन सिंह ने क्यों छोड़ दिया था यूनियन कार्बाइड प्रमुख वॉरेन एंडरसन को, आज भी उठते हैं सवाल

भारत में की सैन्य करियर की शुरुआत
जॉन निकोलसन का जन्म 11 दिसंबर, 1822 को आयरलैंड के डबलिन में हुआ था. आयरलैंड उस समय पूरी तरह से ब्रिटिश शासन के अधीन था. उसके पिता डबलिन के एक अस्पताल में डॉक्टर थे. उसके पिता की मृत्यु तब हो गई जब जॉन की उम्र केवल नौ साल थी. इसके बाद उसका परिवार उसके माता-पिता के गृहनगर लिसबर्न वापस चला गया. निकोलसन के चाचा, सर जेम्स वियर हॉग, ईस्ट इंडिया कंपनी में वकील थे. उन्होंने भारत में काम किया था, जहां कंपनी ने देश के बड़े हिस्सों को अपनी निजी जागीर की तरह चलाया. सर जेम्स ने युवा जॉन की पढ़ाई का जिम्मा उठाया और फिर उसे कंपनी की बंगाल इन्फैंट्री में एक कैडेट के रूप में नौकरी दिलाई. 1839 में 18 साल की उम्र में निकोलसन ने भारत में सैन्य करियर की शुरुआत की. 

बनारस में हुई थी पहली पोस्टिंग
जॉन निकोलसन ने बनारस से एक सैन्य कैडेट के रूप में करियर की शुरुआत की. चार महीने बाद उसे फिरोजपुर भेज दिया गया. कुछ दिनों बाद ही उसकी टुकड़ी को अफगानिस्तान जाने का आदेश मिला. उसने प्रथम अफगान युद्ध (1839-42) में हिस्सा लिया. जॉन निकोलसन ने कश्मीर और पंजाब में राजनीतिक पदों पर भी काम किया. फिर वहीं द्वितीय सिख युद्ध में साल 1848-49 में हिस्सा लिया. कुछ विवरणों में उसे 1857 के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण बताया गया है, जबकि अन्य उसे कठोर और तानाशाही प्रवृत्ति का व्यक्ति मानते हैं. उसके कामों में भारतीय नेताओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना और कठोर दंड देना शामिल था. जिसके कारण आधुनिक इतिहासकार उसे ‘औपनिवेशिक मनोरोगी’ के रूप में आलोचना करते हैं. निकोलसन 1857 में दिल्ली की घेराबंदी के दौरान मारा गया था. 

ये भी पढ़ें- अकाल तख्त क्यों घोषित करता है तनखैया? सुखबीर बादल से पहले जैल सिंह और बूटा को भी मिल चुकी ये सजा

भारतीयों को लगाता था कोड़े
ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार जॉन निकोलसन भारतीयों को बिना किसी वजह के कोड़े मारता था. कभी-कभी जब उसके पास ऐसा करने का अधिकार भी नहीं होता था, तब भी वह ऐसा करता था. एक बार, जब एक भारतीय व्यक्ति ने उसके सामने जमीन पर थूका तो निकोलसन ने इसे गंभीर अपमान मानते हुए उस व्यक्ति को थूक चाटने के लिए मजबूर किया. एक अन्य मौके पर जब निकोलसन एक मस्जिद के पास से गुजर रहा था तो उसने देखा कि एक इमाम ने व्यस्त होने के कारण उसे सलाम नहीं किया. इसके जवाब में, निकोलसन ने इमाम को बुलवाया और उसकी दाढ़ी  मुंडवा दी. यह एक मुस्लिम के लिए अत्यंत अपमानजनक था. वह भारतीय नेताओं का अपमान करने और उनसे टकराव लेने के लिए उतावला रहता था. इतिहासकारों ने निकोलसन को ‘सैडिस्टिक बुली’ के रूप में वर्णित किया है.

स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने की जिम्मेदारी
निकोलसन को अफगानिस्तान, पंजाब और कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान एक सफल सैनिक अफसर के रूप में पहचाना गया. उसे प्रमोशन देकर ब्रिगेडियर जनरल बना दिया गया. इस बीच 1857 का स्वतंत्रता संग्राम  शुरू हो चुका था. इसे शांत करने की जिम्मेदारी ब्रिटिश शासन ने उसके कंधों पर डाल दी.  निकोलसन को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम  को कुचलने के लिए दिल्ली में तैनात किया गया था. दिल्ली में भारतीयों से लड़ते हुए वह गंभीर रूप से घायल हो गया और कुछ दिन बाद 23 सितंबर 1857 को उसकी मौत हो गई. उसे दिल्ली में कश्मीरी गेट के पास दफनाया गया. 

देश में मिला भरपूर सम्मान
जॉन निकोलसन ऐसा अंग्रेज सैन्य अधिकारी रहा जिसे अपने सेवाकाल में तो पूरा सम्मान मिला ही, मरने के बाद उससे सम्मान मिला. आयरलैंड में उसकी हथियारों के साथ लगी आदमकद प्रतिमाएं इसकी गवाही देती हैं. ब्रिटिश शासन ने उसे शहीद के रूप में सम्मानित किया. निकोलसन अविवाहित थे, उन्होंने शादी नहीं की थी.

Tags: British Raj, Central government, PM Modi

FIRST PUBLISHED :

December 4, 2024, 13:18 IST

Read Full Article at Source