क्‍या है BMP-2? जिससे खरोंच तक नहीं आई, सेना ने 24 घंटे में निपटा दिए 3 आतंकी

3 weeks ago

हाइलाइट्स

जम्‍मू-कश्‍मीर के अखनूर में सेना और आतंकियों के बीच एनकाउंटर हुआ.पहली बार भारतीय सेना ने BMP-2 तकनीक का इस्‍तेमाल किया.24 घंटे के अंदर सेना ने 3 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया.

नई दिल्‍ली. जम्मू में आतंकियों का खिलाफ ऑपेरशन में पहली बार इस्तेमाल किया गया BMP -2. जिसकी मदद से सेना ने आतंकियों के करीब महज 24 घंटे में पहुचकर उन्‍हें ख़त्म कर दिया. सोमवार को सुंदरबनी सैक्टर के असन इलाके में आतंकियों ने भारतीय सेना के क़ाफ़िले पर हमला किया और वो घने जंगल की तरफ भाग खड़े हुए. हालाकि इस हमले में भारतीय सेना का कोई जवान हताहत नहीं हुआ और आतंकियों के ख़ात्मे के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन को लॉन्‍च किया लेकिन ये ऑपरेशन बाक़ी ऑपरेशन से कुछ अलग था. अलग इसलिए क्योंकि पहली बार इंफ़ैंट्री कॉंबेट वेहिकल यानी की BMP -2 को इस ऑपरेशन में लॉन्‍च किया गया था. हालंकि BMP-2 को सिर्फ प्रोटेक्शन के लिए इस्तेमाल किया गया. इसके वेपन को यूज नहीं किया गया.

दरअसल, जिस जगह ये ऑपेरशन चल रहा था वो एक खुला जंगल मैदान वाला इलाका है और उस जगह कोई दूसरी गाड़ी के जरिए ट्रूप मूवमेंट संभव नहीं था और यह सुरक्षित भी नही था. आतंकी घने जंगल में कहीं भी छिपकर ऑपरेशन के लिए आगे बढ़ने वाले भारतीय सैनिकों को निशाना बना सकते थे. लिहाजा कैज़ुअलटी ना हो इसके लिए एहतियातन इंफ़ैंट्री कॉंबेट वेहिकल के ज़रिए ट्रूप की मूवमेंट की गई और इसी BMP-2 के ज़रिए ही सेना में ऑपरेशन को महज दो दिन में ख़त्म कर दिया. इन्हीं BMP के ज़रिए सैनिकों को उस इलाक़े तक पहुंचाया गया जहां पर आंतकी मौजूद थे.

BMP-2 का मुख्य काम ही है दुशमन के एरियल ख़तरे और सामने से गोलीबारी से सैनिकों को बचाते हुए सैनिकों को वॉर ज़ोन में पहुंचाना और फिर दुश्मन पर धावा बोलना. चूंकि ये ऑपेरशन जंगल के इलाक़े में था तो BMP का इस्तेमाल किया गया और अगर ऑपरेशन अर्बन इलाके में होता तो बख्तरबंद गाड़ियों जैसे की कैस्पर का इस्तेमाल किया जाता है.

BMP-2 में क्या है खासियत?
पाकिस्तान और चीन के मोर्चे पर ख़ास तौर पर लद्दाख और सिक्किम में भारतीय सेना के आर्मड और मैकइंफेंट्री के भारी भरकम टैंक और BMP-2 तैनात हैं. इंफेंट्री कॉम्बेट व्‍हीकल का असल काम जंग के मैदान में सैनिको को दुश्मन की गोलीबारी से बचाते हुए आगे बढ़ाना है. आसान भाषा में अगर कहें तो लड़ाई के दौरान टैंक फ़ार्मेशन के साथ ये मैकेनाइज्ड इंफ़ैंट्री के व्हीकल मूव करते है. जब टैंक के जरिए दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त कर दिया जाता है तो इन्ही इंफ़ैंट्री कॉंबेट व्हीकल में सवार सैनिक दुश्मन के इलाकों में घुसते हैं और उनके इलाको पर क़ब्ज़ा करते हैं. इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल में सैनिको का प्रोटेक्शन होता है. BMP-2 में 30 mm की गन लगी होती है और एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल भी लगाई जा सकती हैं.

नदी-नालों को आसानी से पार कर सकते हैं…
खास बात तो ये है कि BMP-2 एंफीबियस वेहिकल है यानी की जमीन पर तो आसानी से दौड़ सकते हैं और ये नदी नालों को आसानी से पार कर सकते हैं. अगर हम भारतीय सेना की मैकेनाइजड इंफ़ैंट्री की बात करें तो फिलहाल भारतीय मैक इंफ़ैंट्री की कुल 50 बटालियन है और हर बटालियन में 52 ICV हैं और इनमें व्हील्ड और ट्रेक वाले ICV मौजूद हैं. चूंकि अब BMP-2 पुराने हो चले हैं, लिहाजा भारतीय सेना पहले फेज में 9 बटालियन को नए आधुनिक ICV से बदलने जा रही है. इन 50 बटालियन में  11 रेकी एंड सपोर्ट बटालियन है जबकि 39 स्टैंडर्ड मैकेनाइजड इंफ़ैंट्री बटालियन है और इन 39 में से 9 बटालियन को नए ICV से बदलना है. तकरीबन 500 के करीब नए आधुनिक ICV भारतीय सेना को पहले फेज में लेने है. तकनीक के सहारे लड़ाई में बढ़त तो बनाई जा सकती है लेकिन जमीन की लडाई और दुश्‍मन के इलाके में कब्ज़ा करना हो तो वो मैकेनाइजड इंफ़ैंट्री ही कर सकते है और ऐसे में दुश्‍मन के एरियल अटैक सैनिकों को बचाते हुए दुशमन के डिफेंस और टैंकों को नष्ट कर जंग में इंफ़ैंट्री कांबेट वेहिकल बढ़त बनाने के लिए सबसे जरूरी होता है.

Tags: Indian army, Jammu kashmir news

FIRST PUBLISHED :

October 29, 2024, 12:22 IST

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