क्यों केवल गंगा जल ही पीते थे मुगल बादशाह, सैकड़ों किमी से मंगाते थे ये पानी

1 hour ago

मुगल बादशाह गंगा के पानी को अमृत का पानी कहते थे या अमरता का पानी. अकबर से लेकर औरंगजेब तक पीने के लिए इसी पानी का सेवन करते थे. यहां तक कि जब उनकी रसोई में खाना बनता था तो इसमें गंगा जल जरूर मिलाया जाता था. वो इसे शुद्ध पानी मानते थे. हालत ये हो गई थी कि अकबर तो सैकड़ों किलोमीटर दूर से गंगा से पानी अपने महल तक मंगवाकर पीता था. इसमें पैसे भी खूब खर्च होते थे. इसके लिए एक अलग विभाग ही बनवा दिया गया था.

बेशक मुगल सल्तनत के पहले दो बादशाहों ने गंगा के पानी की बहुत तारीफ की लेकिन वो इसे इतनी दूर से मंगाकर नहीं पीते थे. ये काम अकबर के शासनकाल में शुरू हुआ और औरंगजेब तक चलता रहा.

बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में गंगा जल को काबुल की नदियों का विकल्प माना. इसकी शुद्धता की तारीफ की. कुछ इतिहासकारों के अनुसार, बाबर इसे “आब-ए-हयात” या जीवन का पानी मानते थे. हुमायूं को भी गंगा जल पसंद था. वह भी इसकी शुद्धता से प्रभावित थे.

अकबर ने इसकी शुरुआत की 

अकबर ने गंगा जल को नियमित रूप से पीने की परंपरा को संस्थागत बनाया. अबुल फजल की किताब “आइन ए अकबरी” में विस्तार से लिखा है कि अकबर केवल गंगा जल पीते थे. इसे दूर से मंगवाते थे. इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई.

इतिहासकार डॉ. राम नाथ की किताब “प्राइवेट लाइव्स ऑफ द मुगल्स” में भी इसका जिक्र है कि किस तरह अकबर केवल गंगा जल पीता था. इसके लिए उसने खास बजट की व्यवस्था की. एक महकमा ही बना दिया. पानी को लाने से पहले चखकर उसकी गुणवत्ता की जांच करने वाले लोग भी होते थे. अकबर रोज करीब एक लीटर गंगा जल पीता था.

आइन-ए-अकबरी के अनुसार, गंगा जल सोने या चांदी के बर्तनों में रखा जाता था. सर्दियों में इसे गर्म पानी से गर्म किया जाता था, जबकि गर्मियों में साल्टपीटर (नाइट्रेट) से ठंडा किया जाता था. खाना पकाने के लिए गंगा जल का उपयोग नहीं होता था. उसके लिए वर्षा का पानी और यमुना नदी का पानी मिलाकर इस्तेमाल किया जाता था, जिसे कपड़े से फिल्टर किया जाता था.

अमूमन ये हरिद्वार से लाया जाता था

भरोसेमंद लोगों को हरिद्वार और अन्य जगहों से गंगा जल लाने की जिम्मेदारी दी जाती थी. ये व्यवस्था ऐसी थी कि पानी की आपूर्ति लगातार होती रहे. पानी को सीलबंद जार या मटकों में भरकर लाया जाता था, ताकि यह शुद्ध रहे.दूर से लाए गए पानी को उबालकर इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन हरिद्वार से लाए गए गंगा के पानी का इस्तेमाल सीधे ही किया जाता था, क्योंकि इसे सबसे शुद्ध माना जाता था.

पानी लाने का काम मुख्य रूप से नदियों के रास्ते नावों से या जमीन पर अनुभवी लोग जानवरों के जरिए ये काम करते थे. मुगल काल में गंगा नदी प्रणाली व्यापार और परिवहन का प्रमुख माध्यम थी.

औरंगजेब ने भी गंगा जल ही पीया

अकबर के बाद जहांगीर और शाहजहां ने इन प्रथाओं को जारी रखा. वो भी केवल गंगाजल ही पीते थे. फ्रांकोइस बर्नियर के अनुसार, औरंगजेब भी हमेशा गंगा जल पीता था. एक और विदेशी यात्री टैवर्नियर का मानना ​​है कि गंगाजल प्राप्त करने के लिए काफी धन खर्च किया जाता था. इसके औषधीय गुणों के कारण कई लोग इसे लगातार पीते थे.कई प्रायोगिक अध्ययनों से पता चला है कि हरिद्वार के ऊपर से लिया गया गंगा का जल खुद शुद्धिकरण की असाधारण क्षमता रखता है.

इस काम में हजारों रुपए सालाना खर्च होते थे

इतिहासकार जैसे डॉ. राम नाथ की किताब का अनुमान है कि इस काम में सालाना हजारों रुपए खर्च होते होंगे, हालांकि स्पष्ट आंकड़ा नहीं है. ये जरूर है कि अकबर ने अपने समय में इस पर अलग विभाग बना दिया था.

सलमा हुसैन की किताब “The Emperor’s Table: The Art of Mughal Cuisine” कहती है कि शाही घराने में पीने का पानी एक बड़ा खर्च का मद था. क्योंकि इसे दूर-दूर से लाने की व्यवस्था महंगी पड़ती थी. इसे औलदार-खाना कहा जाता था. यही विभाग शाही पानी की नियमित और शुद्ध आपूर्ति का जिम्मेदार था. इस विभाग में अनुभवी जल-चखने वाले भी होते थे, जो जहर की जांच करते थे. ये व्यवस्था यात्राओं या शिकार पर भी साथ जाती थी.

सवाई माधो सिंह लंदन गंगाजल लेकर गए

मुगल बादशाहों के अलावा भी कई भारतीय राजाओं और शासकों ने गंगा जल को पवित्र मानकर दूर से मंगवाया और पीने या धार्मिक कामों में इस्तेमाल किया. जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह द्वितीय विदेश जाने के दौरान हमेशा गंगा जल साथ लेकर जाते थे. उन्होंने यूरोपीय पानी को अशुद्ध मानकर पीने से इनकार कर दिया. वह हरिद्वार से 27,000 लीटर गंगा जल विशेष चांदी के तीन विशाल जारों में भरवाकर जहाज पर ले गए. ये जार आज भी जयपुर पैलेस में रखे हैं. यह यात्रा किंग एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक के लिए थी, और उन्होंने जहाज को भी गंगा जल से शुद्ध किया. यह सबसे प्रसिद्ध और दस्तावेजी उदाहरण है.

चोल साम्राज्य के राजेंद्र चोल प्रथम ने 11वीं शताब्दी में अपनी नई राजधानी गंगैकोंड चोलपुरम को पवित्र करने के लिए गंगा जल से एक विशाल कृत्रिम झील भरी, जो आज भी भारत की सबसे बड़ी मानव-निर्मित झीलों में एक है.

मराठा साम्राज्य की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 18वीं शताब्दी में पूरे भारत के मंदिरों उत्तर में काशी विश्वनाथ से दक्षिण में रामेश्वरम तक के लिए गंगोत्री से गंगा जल की नियमित आपूर्ति की व्यवस्था की. वह बांस की नलियों में जल भरवाकर दूर-दूर तक भिजवाती थीं, ताकि पूजा-पाठ और अभिषेक में इस्तेमाल हो सके.

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