देहरादून. उत्तराखंड में गंगा जल की रिपोर्ट पर एनजीटी ने सवाल खड़े किए हैं. चीफ सेक्रेटरी को हाल ठीक करने की हिदायत दी है, क्योंकि गंगोत्री से ही गंगा जल पीने लायक नहीं है. सरकार अब कारवाई की बात कर रही है. सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में पैरवी करने में उत्तराखंड के अफसर पहले ही बदनाम है, तो गंगा जल की क्वालिटी पर अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जजों ने लताड़ लगाई है. 5 नवंबर को गंगा की सफाई से जुड़ी सुनवाई में उत्तराखंड सरकार को न सिर्फ शर्मिंदा होना पड़ा, बल्कि गंगा सफाई के बड़े बड़े दावों की धज्जियां उड़ गई, और गंगा गंगोत्री से ही गंदी है, ये बात एनजीटी ने साबित कर दी.
एनजीटी ने गंगा सफाई पर उत्तराखंड सरकार और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट देखी, तो दावों पर सवाल उठ गए. गंगोत्री में सीवर का पानी गंगा में गिर रहा है, और गंगा जल गंगोत्री से ही प्रदूषित हो रहा है. स्टैंडर्ड के मुताबिक 100 एमएल पानी में फिकल कोलीफॉर्म का लेवल 500 से कम होना चाहिए, जबकि गंगोत्री में ये 540 मिला. फिकल कोलीफॉर्म का लेवल बताता है कि पानी में सीवरेज पॉल्यूशन ज्यादा है, जो इंसान के लिए खतरनाक हो सकता है. इतना ही नहीं गंगा में गिरने वाले 53 नाले अभी टैप नहीं है, तो कई सीवरेज प्लांट की क्षमता कम है.
उत्तराखण्ड में गंगा जल के इस हाल पर एनजीटी ने 13 फरवरी तक चीफ सेक्रेटरी से रिपोर्ट मांगी है, और एक्शन लेने को कहा है. वहीं सरकार का कहना है कि एनजीटी के आदेश के मुताबिक काम होगा, और कमी कहां है, ये दिखवाया जाएगा.
उत्तराखंड में हरिद्वार से लेकर गंगोत्री पर करोड़ों भक्त हर साल कांवड़ भरते हैं. करोड़ों लोग गंगा में स्नान करते हैं. इसी गंगा जल से आचमन करके पाठ पूजन करते हैं, लेकिन गंगा गंगोत्री से ही साफ नहीं है. एनजीटी ने इस पर सबकी आंखें खोलकर रख दी हैं.
चीफ सेक्रेटरी के सामने रिपोर्ट देने और एक्शन के लिए ठीक 3 महीने हैं, लेकिन जो काम 8 साल में नहीं हो सका, वो 3 महीने में होने की उम्मीद ना के बराबर है, वहीं जब उत्तराखंड के दावे एनजीटी मानने को तैयार नहीं है, तो आम आदमी क्या भरोसा करे, जिसकी गंगा पर आस्था टिकी है.
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FIRST PUBLISHED :
November 13, 2024, 18:42 IST