गोडसे और आप्टे के शव परिवारवालों को क्यों नहीं दिए, गुपचुप हुआ अंतिम संस्कार

2 hours ago

हाइलाइट्स

गोडसे और आप्टे को अंबाला सेंट्रल जेल में एक ही समय फांसी पर लटकाया गयादिल्ली से खास निर्देश आए थे कि फांसी के जल्द शवों का अंतिम संस्कार तुरंत कर दिया जाएगोडसे और आप्टे के शवों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में जेल अधिकारियों ने पूर्ण नियंत्रण रखा

अंबाला जेल में 15 नवंबर 1949 एक अजीब सी हलचल थी. सुबह तड़के महात्मा गांधी के हत्यारों नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी पर लटकाया जा चुका था. गोडसे ने इस दौरान ‘अखंड भारत’ के नारे लगाए, जबकि आप्टे ने ‘अमर रहे’ का उद्घोष किया. उनकी फांसी के तुरंत बाद अंबाला जेल के अधिकारियों ने ही उनका अंतिम संस्कार किया. फिर गुपचुप तरीके से उनकी अस्थियां गुपचुप तरीके से घग्गर नदी में प्रवाहित कर दी गईं.उनके परिजन चाहते थे कि शव उन्हें दे दिए जाएं लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

गोडसे ने महात्मा गांधी के अहिंसा और हिंदू स्वतंत्रता एकता के प्रयासों को राष्ट्र के लिए कष्टकारी माना, विशेष रूप से विभाजन के समय उसे लगा कि महात्मा गांधी हिंदू समाज का नुकसान कर रहे हैं. गोडसे का मानना ​​था कि गांधी की सहिष्णुता विश्वासघात के बराबर थी. इतिहासकार हमा गेबे ने उल्लेख किया कि गोडसे ने गांधी के मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा और उनके साथ द्विपक्षीय संबंधों के प्रयासों की निंदा की.

इतने सालों बाद अब गोडसे के विचारों से सहमति जताने वालों की संख्या बढ़ रही है. हिंदू हितों की रक्षा का दावा करने वाले दल गोडसे को आदर्श या महापुरुष बताने लगे हैं. उसे राष्ट्रवादी भी माना जाने लगा है.

30 जनवरी, 148 को गोडसे द्वारा गांधी की हत्या भारतीय इतिहास का एक अत्यंत विवादास्पद प्रकरण बना हुआ है. गोडसे ने प्रार्थना सभा के दौरान गांधी पर तीन गोलियां चलाईं. उसने किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाया. उसके खिलाफ मुकदमा दिल्ली के लाल किले पर 22 जनवरी 1948 को शुरू हुआ.

कब सुनाई मौत की सजा
अभियोजन पक्ष ने माना कि गांधी की हत्या एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा थी. 10 अक्टूबर 1949 को न्यायाधीश आत्मा चरण ने अपने फैसले में गांधी और नारायण आप्टे को मौत की सजा सुनाई गई जबकि हत्या में शामिल अन्य लोगों को भी दोषी ठहराया गया.

अपील की सुनवाई के दौरान कोडसे ने एक लंबा भाषण दिया, जिसमें उन्होंने गांधी की नीतियों की आलोचना की. ये कहा कि इससे भारत का “विभाजन” हुआ.

गोपाल गोडसे ने सजा पूरी करने के बाद किताब लिखी
गोपाल गोडसे, वियाबियो करकरे, मदनीसी पुही, शंकर किस्तया और दत्तात्रेय परचुरे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में ये सभी अपनी सजा पूरी करके रिहा भी हो गए. गोडसे ने अदालत में अपना अपराध स्वीकार किया. तर्क दिया कि उसने जो किया, वो गांधीजी की नीतियों से प्रेरित थे, उसका मानना था कि गांधीजी की नीतियों ने भारत को कमजोर कर दिया था.

1966 में गोपाल गोडसे ने अपनी सजा पूरी कर ली. फिर उसने गांधी हत्या और हत्याकांड के पीछे के कारणों और घटनाओं के बारे में विस्तार से बताने वाली एक पुस्तक प्रकाशित की.

तब डीएम और स्टाफ को फांसी में मौजूद रहना पड़ता था
उन दिनों जब फांसी दी जाती थी तो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और उनके कार्यालय के सारे स्टाफ को वहां मौजूद रहना होता था. यही लोग फांसी के बाद मृत्यु की तस्दीक करते थे और फिर पार्थिव शरीर का उस सूरत में अंतिम संस्कार जबकि शव को परिजनों को नहीं सौंपा जाना होता था या कोई परिजन शव लेने नहीं आता था.

अंतिम संस्कार और विसर्जन भी जिलाधिकारी स्टाफ ने किया
उन दिनों गोडसे और आप्टे का अंतिम संस्कार जिलाधिकारी स्टाफ ने किया. उसी ने अस्थियों को इकट्ठा करके उसका विसर्जन भी किया. ये स्टाफ तब फांसी की सजा पाये दोषियों से उनकी इच्छा पूछता था और इसे रिकार्ड भी करता था.

क्या थी उस दिन गोडसे और आप्टे की हालत
15 नवंबर को उन्हें तड़के सूरज निकलने से पहले ही अंबाला सेंट्रल जेल के अंदर फांसी दे दी गई. जब प्रत्यक्षदर्शी ने फांसी से पहले जेल की कोठरी में गोडसे को पुकारा तो वह कुछ गमगीन था जबकि उसकी तुलना में आप्टे कहीं मजबूत लग रहा था. गोडसे की आवाज कुछ कमजोर लग रही थी. हालांकि बाद में गोडसे ने फांसी के तख्ते की ओर बढ़ते हुए नारे भी लगाये.

नारे जो गोडसे और आप्टे ने लगाए
राबर्ट पेन की किताब “द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी” कहती है आप्टे जेल में आदर्श कैदी की तरह था. जेल में उसने भारतीय चिंतन पर एक किताब भी लिखी. 15 नवंबर को जब अंबाला जेल में फांसी दी जाने वाली थी, तब आप्टे शांत और अपने आपमें मगन था. फांसी की ओर जाते हुए गोडसे तो अखंड भारत के नारे लगा रहा था तो आप्टे और मजबूत आवाज में अमर रहे कहकर उसका साथ दे रहा था. आप्टे जब अमर रहे कह रहा था तो उसकी आवाज ज्यादा दमदार थी. हालांकि इसके अलावा दोनों ही काफी शांत थे.

फिर फंदे पर लटकाया गया
दोनो ठीक एक ही समय फांसी पर लटकाया गया. आप्टे की मृत्यु तुरंत हो गई लेकिन गोडसे को कुछ समय लगा. ये प्रत्यक्षदर्शी बाद में उस टीम का सदस्य भी था जिसने दोनों की मृत्यु को सत्यापित किया. हालांकि इसे देखना आसान नहीं था क्योंकि ये दृश्य कई दिनों तक जेहन में आते रहे.

तुरंत अंतिम संस्कार के थे निर्देश
मृत्यु के कुछ ही घंटों के अंदर अंबाला जेल में अंदर ही दोनों का अंतिम संस्कार जिलाधिकारी स्टाफ ने ही किया. इसके लिए दिल्ली से खास निर्देश आए थे कि इसे फांसी के जल्द बाद कर दिया जाए. इसी टीम ने फिर दोनों की अस्थियां बटोरीं. फिर इसे एक बख्तरबंद वाहन घग्गर नदी में ले जाकर विसर्जित किया गया. इस वाहन के साथ एक पुलिस का वाहन भी सुरक्षा में साथ गया था.

अस्थियां भी गुपचुप प्रवाहित की गईं
जब अस्थियां प्रवाहित की गईं तो उसमें भी कोशिश की गई कि कोई उन्हें देख नहीं रहा हो और ना कोई वहां मौजूद हो. लिहाजा पहले वाहन नदी के पास पहुंचा और फिर वहां से आगे बढ़ गया. फिर वापस लौटा. वो ऐसी धार की ओर पहुंचे जहां से अस्थियां कोई बटोरना भी चाहे तो नहीं बटोर पाए. ये नदी की ऐसी जगह थी जहां जाना और उसे याद कर पाना शायद इस टीम के किसी भी सदस्य के लिए संभव नहीं था.

10 फरवरी 1949 को सुनाई गई थी सजा
गांधीजी की हत्या के मामले में 10 फरवरी 1949 के दिन विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी. नौ आरोपियों एक को बरी कर दिया. बरी होने वाले थे विनायक दामोदर सावरकर. बाकी आठ लोगों को गांधीजी की हत्या, साजिश रचने और हिंसा के मामलों में सजा सुनाई गई. दो लोगों नाथूराम गोडसे और हरि नारायण आप्टे को फांसी की सजा मिली. इसके अलावा अन्य छह लोगों को आजीवन कारावास, जिसमें नाथूराम गोडसे का भाई गोपाल गोडसे भी शामिल था.

क्या वो वाकई ब्रिटिश खुफिया एजेंट था
1966 में जब सरकार ने दोबारा गांधी हत्या मामले को खोला तो जस्टिस जेएल कपूर की अगुवाई में जांच कमीशन का गठन किया गया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में आप्टे के बारे में कहा कि वो ऐसा शख्स था, जिसकी सही पहचान को लेकर शक है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में उसे भारतीय वायुसेना का पूर्व कर्मी भी बताया.

क्या चौथी गोली आप्टे की थी
इसी रिपोर्ट के बिना पर जब अभिनव भारत मुंबई नाम की संस्था ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर से जानकारी मांगी. तो उन्होंने कहा कि विभिन्न स्तरों पर की गई छानबीन के बाद रिकॉर्ड बताते हैं कि आप्टे कभी एयरफोर्स में नहीं रहा. बाद में अभिनव भारत के प्रमुख डॉक्टर पंकज फडनिस ने कहा कि उनकी रिसर्च कहती है कि आप्टे ब्रिटिश खुफिया एजेंसी फोर्स 136 का सदस्य था. गांधीजी पर तीन गोलियां तो गोडसे के रिवाल्वर से निकली थीं लेकिन चौथी गोली आप्टे ने चलाई थी.

क्यों शव परिजनों को नहीं सौंपे
नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के शवों को उनके परिवारों को नहीं सौंपा गया, जिसके पीछे कई कारण थे
सरकारी निर्णय – भारतीय सरकार ने यह निर्णय लिया कि गोडसे और आप्टे के शवों को उनके परिवारों को नहीं दिया जाएगा. इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि उनके शवों का महिमामंडन न हो और किसी भी प्रकार की राजनीतिक या सामाजिक अस्थिरता से बचा जा सके.

सुरक्षा और स्थिरता – उस समय भारत विभाजन के परिणामों से जूझ रहा था. सरकार ने यह सुनिश्चित करना चाहा कि गोडसे और आप्टे के शवों का उपयोग किसी भी राष्ट्रवादी या कट्टरपंथी समूह द्वारा प्रतीक के रूप में न किया जाए. इसलिए शवों का अंतिम संस्कार गुपचुप तरीके से किया गया.

अंतिम संस्कार की प्रक्रिया- गोडसे और आप्टे के शवों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में जेल अधिकारियों ने पूर्ण नियंत्रण रखा, जिससे परिवार की भागीदारी को रोका जा सके.

कौन था नारायण आप्टे
विकीपीडिया के अनुसार आप्टे आकर्षक व्यक्तित्व का शख्स था, उसने बांबे यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद कई तरह के काम किए. इसमें टीचिंग भी शामिल थी. वो ऐसे परिवार से था, जिसकी पुणे में संस्कृत विद्वानों के ब्राह्मण परिवार के रूप में धाक थी.

वैवाहिक जीवन अच्छा था
नारायण आप्टे ने 1939 में अहमदनगर में टीचर की नौकरी करने के दौरान हिंदू महासभा के साथ खुद को जोड़ा था. फिर अपनी पारिवारिक स्थितियों के काऱण उसे पुणे के अपने पुश्तैनी घर में संयुक्त परिवार की देखभाल के लौटना पड़ा. उसकी पत्नी भी पुणे के असरदार परिवार से थी. दोनों का वैवाहिक जीवन अच्छा बताया जाता है. उसका एक बेटा भी था, जिसकी तबीयत खराब ही रहती थी.

Tags: Air force, Ambala news, Mahatma gandhi, Nathuram Godse

FIRST PUBLISHED :

November 15, 2024, 12:16 IST

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