असम में हाल ही में एक गैंडे का जन्म हुआ है. खास बात ये है कि ऐसा एक दशक बाद हुआ है कि असम में किसी गैंडे का जन्म हुआ है. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि आखिर इसमें इतना वक्त क्यों लग गया? इसका मादा गैंडों की प्रग्नेन्सी से क्या संबंध है? यहां के गैंडों की प्रजनन दर और उनकी कम जनसंख्या में कितना गहरा नाता है?
News18 हिंदीLast Updated :November 15, 2024, 12:39 ISTWritten byVikas Sharma
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भारत के असम में कांजीरंगा नेशनल पार्क है. यहां के एक सींग के गैंडे दुनिया के ऐसे गैंडों की आबादी की 80 फीसदी हिस्सा हैं. एक समय इनके विलुप्त होने का बहुत बड़ा खतरा था. लेकिन पिछले चार पांच दशकों में इनकी जनसंख्या में खासा इजाफा है. इसकी वजह इनके शिकार संबंधी गतिविधियों पर काबू होना है. लेकिन एक खबर एक अलग तरह की चिंता बढ़ाने वाली लगती है. हाल ही में यहां के एक जू में एक गैंडे का जन्म हुआ है जो एक दशक के बाद होने वाली पहली घटना है. आखिर ऐसा क्यों है, क्या गैंडे की प्रैग्नेन्सी ज्यादा मुश्किल होती है? यह कितनी चिंता वाली बात है? (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
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भारतीय गैंडे जिनका वैज्ञानिक नाम राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस बड़े एक सींग वाले गैंडे के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं. इन्हें महान भारतीय गैंडे या संक्षेप में भारतीय गैंडे के रूप में भी जाना जाता है. इसकी वजह ये है कि यह प्रजाति खास तौर से भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है. यह गैंडे की दूसरी सबसे बड़ी मौजूदा प्रजाति है, जिसमें वयस्क नर का वजन 2.07-2.2 टन और वयस्क मादा का वजन 1.6 टन होता है. त्वचा मोटी होती है और गुलाबी रंग की त्वचा की सिलवटों के साथ भूरे-भूरे रंग की होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
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भारत के असम में मिलने वाले ये गैंडे असल में असम से लेकर नेपाल में मिलते हैं. ये गैंडे दुनिया के एक सींग वाले गैडों की 80 फीसदी आबादी की प्रतिनिधित्व करते हैं. अकेले काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही इनकी आबादी 70 फीसदी है. जहां ये करीब 4000 तक की संख्या में हैं. यह गैंडा डायनासोर के साथ-साथ एक प्रागैतिहासिक प्रजाति का आभास देता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
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एक सींग वाले जंगली में गैंडे की लंबी उम्र या जीवन अवधि आमतौर पर 35 से 45 साल होती है. लेकिन जू में या नियंत्रित हालात में ये 47 साल तक जी लेते हैं. एक सींग वाला गैंडा प्रकृति में काफी हद तक एकाकी होता है और अकेले रहना पसंद करते हैं. नर और मादा केवल संभोग के मौसम के दौरान ही एक साथ देखे जाते हैं. एक सींग वाला गैंडा क्षेत्रीय नहीं होता है ये घूमते फिरते रहते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
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एक मादा गैंडे का प्रैग्नेन्सी पीयरेड करीब 15.7 महीने का होता है. यानी बच्चा मां के गर्भ मेंम 15.7 तक रहने के बाद बाहर आता है. एक बार में एक ही बच्चा पैदा होता है. जुड़वा बच्चे अपवाद ही रहते हैं. दो बच्चों के बीच जन्म का अंतर भी करीब 34 से 51 महीने यानी 3 से 5 साल के बीच रहता है. लेकिन जंगली गैंडों यह अंतर अक्सर बहुत ज्यादा हो जाता है. ऐसे में इनकी संख्या तेजी से बढ़ने के बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
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नियंत्रित हालात में रखे गए गैंडे पांच साल की उम्र में प्रजनन करने लगते हैं, लेकिन जंगली गैंडे बहुत बाद में काफी बड़े होने के बाद भी प्रजनन प्रक्रिया में शामिल होते हैं. मादा गैंडे चार साल की उम्र से ही प्रजनन करने लगती हैं, लेकिन जंगल में वे छह साल की उम्र से ऐसा शुरू करती हैं. वे अपना बच्चे के साथ चार साल तक रहती हैं. इस लिहाज से एक मादा गैंडा 6 से 10 बार ही गर्भवती हो सकती है लेकिन ऐसा कम ही होता है. लेकिन जंगली गैंडों के साथ ऐसा कम ही हो. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
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भारत में गैंडों के बीच लिंगानुपात 1.31 है. यानी हर एक मादा पर 1.31 नर है. यह एक गंभीर असंतुलन माना जाता है. ऐसा खास तौर से इसलिए है जब गैंडों में प्रजनन दर कम है. फिलहाल इनकी प्रजनन दर 0.17 प्रति वर्ष है. इसके अलावा गैडों के बच्चे 10 फीसदी शिकार का कारण खत्म हो जाते हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि गैडों की जनसंख्या बढ़ाने पर खास ध्यान दिया जाए. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
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भारतीय गैंडों को अस्तित्व का खतरा उनकी जनसंख्या या प्रजननता से कम उनके शिकार से ज्यादा रहा है. वैसे तो पिछले कई दशकों से शिकार पर काबू करने से गैंडों की जनसंख्या को नियंत्रित किया गया है. लेकिन उनकी कम प्रजनन दर, लिंगानुपात, प्रेग्नेन्सी पीयरेड आदि की वजह से उनके प्रजनन के लिए खास प्रयास संरक्षण प्रयास करने पड़ रहे हैं. पिछले सप्ताह पैदा हुआ गैंडे का बच्चा उसी के खास प्रयास का नतीजा है.(प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)