चिराग अपनी पार्टी के 'वन मैन आर्मी'... फिर कौन सेट कर रहा है NDA का पॉलिटिक्स?

1 day ago

Last Updated:June 03, 2025, 15:19 IST

Chirag Paswan Politics: चिराग पासवान का विधानसभा चुनाव लड़ने का बयान क्या उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है? अपनी पार्टी के 'वन मैन आर्मी' ने एनडीए को घेरने के लिए क्या बनाया है नया प्लान?

चिराग अपनी पार्टी के 'वन मैन आर्मी'... फिर कौन सेट कर रहा है NDA का पॉलिटिक्स?

क्या चिराग पासवान ने एनडीए के भीतर नया प्लान तैयार किया है?

हाइलाइट्स

चिराग पासवान ने 2025 विधानसभा चुनाव लड़ने के क्यों दिए संकेत?क्या चिराग का चुनाव लड़ने वाला बयान एनडीए में दबाव की राजनीति का हिस्सा?चिराग की 'बिहार फर्स्ट' सोच से उनकी स्वीकार्यता बढ़ाने का प्रयास.

पटना. चिराग पासवान का विधानसभा चुनाव लड़ने का बयान और उसे पार्टी पर छोड़ना क्या एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा तो नहीं? क्या यह पार्टी के कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने का प्रयास है या फिर एनडीए के भीतर सीट बंटवारे में बेहतर सौदेबाजी की कोशिश? राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पार्टी में चिराग पासवान की ‘वन मैन आर्मी’ छवि के बावजूद, यह कदम सामूहिक निर्णय की आड़ में दबाव की राजनीति को दर्शाता है. क्या चिराग इस दबाव की राजनीति कर बिहार की सियासत में नया इतिहास रच पाएंगे? लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने हाल ही में संकेत दिए हैं कि वे 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि, उन्होंने यह फैसला अपनी पार्टी पर छोड़ दिया है, जो उनके ‘वन मैन आर्मी’ छवि के विपरीत प्रतीत होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चिराग का यह बयान उनकी रणनीति का हिस्सा है या एनडीए के भीतर सीट बंटवारे और प्रभाव बढ़ाने के लिए दबाव की राजनीति का दांव?

चिराग पासवान ने हाल ही में वैशाली के महुआ में कहा, “अगर पार्टी चाहेगी, तो मैं जरूर चुनाव लड़ूंगा. यह कोई बहानेबाजी नहीं, बल्कि पार्टी इस पर गंभीरता से विचार कर रही है.” उनकी पार्टी के सांसद अरुण भारती ने भी इस बात को दोहराया कि चिराग को विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भेजा गया है, क्योंकि बिहार को युवा नेतृत्व की जरूरत है. यह बयान उस छवि से मेल नहीं खाता, जिसमें चिराग को लोजपा (रामविलास) का एकमात्र चेहरा और निर्णय निर्माता माना जाता है. उनके पिता रामविलास पासवान की तरह केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहने वाले चिराग का यह कदम बिहार की सियासत में उनकी नई भूमिका की ओर इशारा करता है. लेकिन पार्टी पर फैसला छोड़ने की बात उनके मजबूत नेतृत्व की छवि को कमजोर करती नजर आती है.

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर तनाव की खबरें सामने आ रही हैं. चिराग की पार्टी को 20-22 सीटें ऑफर की गई हैं, जबकि वे कम से कम 40 सीटों की मांग कर रहे हैं. यह मांग एनडीए के प्रमुख घटक दलों बीजेपी और जदयू के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि दोनों दल अपनी-अपनी सीटों को अधिकतम करना चाहते हैं. चिराग का चुनाव लड़ने का ऐलान और इसे पार्टी के सर्वे पर छोड़ना एक रणनीतिक कदम हो सकता है. इससे वे न केवल अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं, बल्कि एनडीए के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए दबाव भी बना रहे हैं.

क्या है चिराग का मकसद?

चिराग की रणनीति का एक और पहलू उनकी ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ की सोच है. वे सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, ताकि उनकी छवि केवल दलित या पिछड़े वर्ग तक सीमित न रहे. यह कदम उनकी व्यापक स्वीकार्यता को बढ़ाने और बहुजन नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश का हिस्सा है. साथ ही, उनकी हालिया मुलाकात तेजस्वी यादव के साथ और राजद की तारीफ करना भी एनडीए को यह संदेश देता है कि उनके पास अन्य विकल्प भी हैं.

चिराग का बिहार विधानसभा में उतरना केवल विधायक बनने तक सीमित नहीं हो सकता. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि उनका लक्ष्य भविष्य में मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री जैसे बड़े पद की दावेदारी हो सकती है. हालांकि, चिराग ने साफ किया है कि 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और मुख्यमंत्री पद पर कोई रिक्ति नहीं है. फिर भी, उनकी पार्टी के भीतर से मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में उनकी उम्मीदवारी की बात उठ रही है. यह दिखाता है कि चिराग अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं.

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