जब आडवाणी ने की जिन्ना की तारीफ, अपनों से हुए दूर, क्या थी 20 साल पुरानी घटना?

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Last Updated:November 10, 2025, 08:03 IST

जब आडवाणी ने की जिन्ना की तारीफ, अपनों से हुए दूर, क्या थी 20 साल पुरानी घटना?2005 में जिन्ना की कब्र पर विजिटर बुक में संदेश लिखते आडवाणी. फोटो- रायटर

When Lal Krishna Advani Praised Muhammad Ali Jinnah: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ करते हुए उनकी तुलना पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व पीएम दिवंगत इंदिरा गांधी से की है. आडवाणी के 98वें जन्मदिन पर उन्होंने एक पोस्ट में लिखा कि जब जवाहरलाल नेहरू के करियर की समग्रता का आकलन चीन की विफलता और इंदिरा गांधी के करियर का आकलन सिर्फ आपातकाल से नहीं किया जा सकता, तो उनका मानना ​​है कि हमें आडवाणी के प्रति भी यही शिष्टाचार दिखाना चाहिए. उनके इस बयान के बाद भारत की राजनीति में पूर्व डिप्टी पीएम आडवाणी के योगदान पर एक बार बहस छिड़ गई है. शशि थरूर के इस बयान से कांग्रेस पार्टी ने खुद क अलग कर लिया है. खैर इस विवाद में पड़े बिना हम आज लालकृष्ण आडवाणी के योगदान और उसने जुड़े एक किस्से की बात करते हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि आजाद भारत की राजनीति में आडवाणी एक आधार स्तंभ रहे हैं. मौजूदा भाजपा के वे शिखर पुरुष हैं. आडवाणी ने ही मौजूदा भाजपा की नींव रखी थी. राम मंदिर आंदोलन के जनक भी आडवाणी ही थे. यानी आडवाणी एक ऐसे शख्स रहे हैं जो करीब 60 सालों तक भारतीय राजनीति के केंद्र में रहे. पक्ष या विपक्ष के हर एक विमर्श के केंद्र में आडवाणी रहे. लेकिन कई ऐसे मौके आए जब आडवाणी ने अपनी ही बनाई राह से थोड़ा भटकने की कोशिश की और इस कोशिश में वह अपनों से दूर हो गए. ऐसी ही घटना 2005 का उनका पाकिस्तान दौरा.

आडवाणी का पाकिस्तान दौरा
वर्ष 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद 2005 में विपक्ष के नेता के तौर पर लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान दौरा किया. जून 2005 की गर्मियों ने हुए इस दौरे के दौरान आडवाणी ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की. उन्होंने जिन्ना को हिंदू-मुस्लिम एकता का मसीहा बताया. उनके इतना कहने भर से भारतीय राजनीति और भाजपा के भीतर की राजनीति दोनों का तापमान चरम पर पहुंच गया. उस समय आडवाणी भाजपा के अध्यक्ष थे और वह छह दिनों तक पाकिस्तान में रहे. इस दौरान वह अपने जन्म स्थल कराची भी गए. देश के विभाजन से पहले डवाणी का जन्म कराची में हुआ था. इस दौरे में जिन्ना की तारीफ के कारण आडवाणी को पहली बार अपनी ही पार्टी के भीतर चुनौती मिली. अंततः आडवाणी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. आडवाणी का दौरा 28 मई 2005 को शुरू हुआ था और तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें आमंत्रित किया था. यात्रा का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया को मजबूत करना था.

आडवाणी ने इस्लामाबाद, लाहौर और कराची का दौरा किया. उन्होंने पाकिस्तानी संसद को संबोधित किया, जहां उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार, संस्कृति और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर जोर दिया. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उनका स्वागत किया और दोनों नेताओं ने कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की संभावनाओं पर चर्चा की. आडवाणी ने कटास राज मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्घाटन भी किया, जो हिंदू धरोहर का प्रतीक था. यात्रा के दौरान आडवाणी ने कहा कि भारत पाकिस्तान को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार करता है और विभाजन को इतिहास मानकर हमें आगे बढ़ना चाहिए. यह बयान सकारात्मक लग रहा था, लेकिन असली विवाद चार जून को कराची में जिन्ना की कब्र पर पहुंचा.

कराची पहुंचते ही आडवाणी भावुक हो गए. उन्होंने अपनी पत्नी कमला और बेटी प्रतिभा के साथ जिन्ना की कब्र का दौरा किया. यहां उन्होंने आगंतुक पुस्तिका में लिखा- इतिहास पर अमिट छाप छोड़ने वाले कई लोग होते हैं, लेकिन इतिहास रचने वाले बहुत कम होते हैं. जिन्ना उनमें से एक हैं. उन्होंने जिन्ना के 11 अगस्त 1947 के पाकिस्तान संविधान सभा के भाषण का हवाला देते हुए कहा कि यह पाकिस्तान को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने का प्रभावशाली उदाहरण है, जहां हर नागरिक अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद ले सके. आडवाणी ने जिन्ना को महान व्यक्ति करार दिया और कहा कि वह हिंदू-मुस्लिम के बीच मित्रता चाहते थे. यह बयान उनके भाषण लेखक सुधीरेंद्र कुलकर्णी द्वारा मीडिया को जारी किया गया, जो दिल्ली पहुंचते ही आग उगलने लगा.

भारत लौटते ही विवाद भड़क उठा. भाजपा के कट्टरपंथी गुटों और संघ ने आडवाणी के बयान को अनुचित करार दिया. तत्कालीन आरएसएस प्रमुख सुदर्शन ने कहा कि जिन्ना का पाकिस्तान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य नहीं, बल्कि धार्मिक आधार पर बना देश था. उन्होंने आडवाणी के बयान को हिंदुत्व की विचारधारा के खिलाफ बताया. भाजपा कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किए. गुजरात और महाराष्ट्र में हिंदू कार्यकर्ताओं ने ढोल पीटे और पटाखे फोड़े, आडवाणी के इस्तीफे की मांग की. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चुप्पी साधी, लेकिन पार्टी के अन्य नेता जैसे मुरली मनोहर जोशी और गोविंदाचार्य ने आलोचना की.

इस घटना के बाद अपनी ही पार्टी में आडवाणी कमजोर पड़ते दिखे. उन पर सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाने का आरोप लगा. ताकि वह खुद को भाजपा के बाहर भी स्वीकार्य बना सके. लेकिन, हुआ उल्टा. भाजपा के बाहर निश्चिततौर पर आडवाणी की स्वीकार्यता बढ़ी लेकिन, पार्टी के भीतर उनकी पकड़ कमजोर होती गई. 2009 के आम चुनाव में वह आधिकारिक तौर पर भाजपा की ओर से पीएम उम्मीदवार बनाए गए गए लेकिन उस चुनाव भाजपा की बुरी हार हुई. इस हार के पीछे एक सबसे बड़ी वजह भाजपा और संघ के हिंदुवादी कार्यकर्ताओं में दिल में आडवाणी के प्रति लगाव का कम होना था. फिर 2014 में भाजपा के भीतर नरेंद्र मोदी का उभार हुआ और धीरे-धीरे आडवाणी की पकड़ कमजोर पड़ती गई. अंतिम बार 2014 में आडवाणी ने लोकसभा चुनाव लड़ा. उसके बाद वह 2019 के आम चुनाव से खुद को चुनावी राजनीति से दूर कर लिया.

संतोष कुमार

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...

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First Published :

November 10, 2025, 08:03 IST

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