जब गांधीजी ने भी तोड़ा बड़े बेटे से रिश्ता, क्यों आईं बाप-बेटे में दूरियां

1 day ago

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को ना केवल घर से निकाल दिया बल्कि उससे संबंध भी तोड़ लिये. भारतीय राजनीति में रिश्तों की टूट-फूट के कई किस्से हैं. सबसे बड़ा मामला महात्मा गांधी का था, जिन्होंने अपने बड़े बेटे हरिलाल से एक तरह संबंध तोड़ लिए थे. दोनों के बीच रिश्तों में बहुत गहरी खाई बन गई थी.

महात्मा गांधी के चार बेटे थे – हरिलाल, रामदास, हरिदास और देवदास. हरिलाल उनमें सबसे बड़े बेटे थे. उनका जन्म 1888 में हुआ. वह बचपन से बुद्धिमान और तेजस्वी थे. पढाई में विशेष रुचि थी. उनका सपना था कि वो भी पिता की तरह इंग्लैंड जाकर वकालत की पढाई करें औऱ प्रतिष्ठित बैरिस्टिर बनें. लेकिन गांधीजी इसके एकदम खिलाफ थे. उन्होंने विदेश जाकर उनकी वकालत की पढ़ाई को एक सिरे से खारिज कर दिया.

तब बाप-बेटे में पहली दरार आई

गांधीजी का मानना था कि उच्च शिक्षा का उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहीं, बल्कि समाजसेवा और नैतिक उत्थान होना चाहिए. उनका विश्वास था कि भारतीय संस्कृति और जीवनमूल्य पश्चिमी जीवनशैली के असर में आकर भ्रष्ट हो जाते हैं. इसी मतभेद ने बाप-बेटे के रिश्ते में पहली दरार पैदा की. गांधीजी ने इसका उल्लेख अपनी आत्मकथा “द स्टोरी ऑफ माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रूथ” में किया.

गांधीजी ने हरिलाल की इंग्लैंड जाकर वकालत पढ़ने की इच्छा को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि ज्यादा बेहतर हो कि हरिलाल समाज सेवा में लगें और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लें, ये ज्यादा जरूरी है. हरिलाल को गहरा आघात लगा. वह इसे अपनी स्वतंत्रता और स्वाभिमान पर चोट मानने लगे.

सावर्जनिक तौर पर पिता का विरोध करने लगे

हरिलाल ने अपने पिता के विरोध में कई बार सार्वजनिक तौर पर असहमति जताई. वह धीरे-धीरे गांधीजी की विचारधारा के विरोधी बनते चले गए. इस दौरान हरिलाल ने अपने पिता के आंदोलन में भी भाग नहीं लिया. परिवार और समाज में यह चर्चा का विषय बन गया. गांधीजी ने इस विद्रोह को बहुत गंभीरता से लिया. हरिलाल को अपने जीवन से धीरे-धीरे दूर करना शुरू कर दिया.

अखबारों में पिता के खिलाफ लेख लिखे

हरिलाल ने महात्मा गांधी की नीतियों की कई बार सार्वजनिक आलोचना की. वह कहते थे कि गांधीजी ने अपने देश और जनता को तो आज़ादी का सपना दिखाया, लेकिन अपने परिवार के प्रति अन्याय किया. हरिलाल ने कई अखबारों में अपने पिता के खिलाफ पत्र और लेख लिखे. वह पश्चिमी शिक्षा और आधुनिक जीवनशैली के समर्थक थे. (संदर्भ: Bakshi, Chandulal. ‘Harilal Gandhi: A Life’, 1969)

धर्म बदलकर मुस्लिम हो गए

गांधीजी ने कई बार हरिलाल को सुधारने का प्रयास किया, लेकिन वह भी अपने तौरतरीकों पर अडिग रहे. साल 1936 में हरिलाल गांधी ने इस्लाम धर्म अपना लिया. अपना नाम ‘अब्दुल्ला गांधी’ रख लिया. यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैली.

गांधीजी ने कई बार उन्हें सार्वजनिक रूप से डांटा – फटकारा था. हरिलाल को लगता था कि पूरा समाज उन्हें सिर्फ ‘गांधीजी के बिगड़े बेटे’ के रूप में देखता है. ये माना जाता है कि धर्म बदलने का काम भी उन्होंने केवल अपने पिता को और दुख देने के लिए ही उठाया. उस समय के अख़बारों में रिपोर्ट छपीं कि हरिलाल ने सियासी और पारिवारिक विद्रोह जताने के लिए ऐसा किया.

इससे रिश्ते और टूट गया

महात्मा गांधी को इससे गहरा आघात पहुंचा. क्योंकि वह पहले से ही हरिलाल की शराबखोरी, गलत संगत और अनियमित जीवनशैली से परेशान थे. धर्म परिवर्तन ने इस रिश्ते की बची-खुची कड़ी भी तोड़ दी. (संदर्भ: Guha, Ramachandra. ‘Gandhi: The Years That Changed the World, 1914-1948’, 2018)

गांधीजी ने इस घटना को व्यक्तिगत पीड़ा की तरह लिया. हालांकि हरिलाल ने बाद में फिर से हिंदू धर्म अपना लिया, लेकिन तब तक पिता-पुत्र के बीच की खाई पाटने लायक नहीं रह गई.

तुम मेरी सबसे बड़ी विफलता हो

गांधीजी ने हरिलाल को कई पत्र लिखे, जिनमें वे पिता के रूप में नहीं, बल्कि एक नैतिक शिक्षक के रूप में संवाद करते थे. वह हरिलाल से कहते थे कि वह आत्मसुधार करे और शराब और बुराइयों से दूर रहे. गांधीजी की चिट्ठियों में हरिलाल के लिए स्नेह तो होता था लेकिन लेकिन कठोरता भी.
एक चिट्ठी में गांधीजी ने लिखा –
“तुम मेरी सबसे बड़ी विफलता हो.” ये वाक्य उनके रिश्ते की गहराई और टूटने को पूरी तरह सामने लाता है.”

मुंबई की सड़कों पर बदहाली में हुई मौत

महात्मा गांधी की 1948 में हत्या हो गई. कुछ महीनों बाद ही हरिलाल गांधी की मौत मुंबई की सड़कों पर गुमनामी और बदहाली में हुई. उनके अंतिम संस्कार में परिवार के केवल कुछ लोग शामिल हुए. हरिलाल का जीवन शराब, कर्ज, बीमारी और निराशा में खत्म हुआ. कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने अपने अंतिम समय में हरिलाल का नाम लेना तक छोड़ दिया था.

बहुत से लोगों से पिता के नाम पर उधार लिया

हरिलाल ने देशभर के गांधी-समर्थक अमीर व्यापारियों, समाजसेवियों और परिवार-परिचितों से ‘बापू के नाम पर’ कर्ज़ लिये. गांधीजी को इसकी जानकारी जब मिलती, तो वे बेहद नाराज़ होते. सार्वजनिक तौर पर घोषणा करते कि “हरिलाल का मेरे नाम से कोई लेना-देना नहीं है.”

हरिलाल ने हरिलाल ने कई बार गुजरात और मुंबई के अमीर व्यापारी, जमींदार और समाजसेवियों से उधार लिया. इनमें अहमदाबाद के एक जाने-माने व्यापारी ‘मगनलाल गांधी’ (महात्मा गांधी के रिश्तेदार) का भी ज़िक्र आता है. कुछ मुंबई के व्यापारी जैसे शेट्टी परिवार और धीरजलाल ठाकरसी का नाम भी समकालीन पत्रों में दर्ज है, जिन्होंने बाद में गांधीजी से शिकायतें कीं. जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे, उस समय भी हरिलाल ने कई व्यापारियों और गांधी समर्थकों से उधारी ली थी. हरिलाल ने गांधी सेवा संघ और अन्य संस्थानों से भी ‘बापू के नाम पर आर्थिक सहायता’ मांगी थी.

शादी हुई लेकिन पत्नी परेशान रही

हरिलाल गांधी की शादी गुलाब गांधी से हुई थी. वह एक साधारण और सुसंस्कारी महिला थीं. गुलाब ने जीवन में काफी कठिन परिस्थितियों का सामना किया. पति की शराब की लत, अनियमित जीवनशैली और पिता से तनावपूर्ण संबंधों के बीच गुलाब ने अपने परिवार को संभालने की भरसक कोशिश की. हरिलाल की शराब और आर्थिक बर्बादी ने गुलाब को गहरी पीड़ा दी. लेकिन हरिलाल कभी नहीं बदले. आखिरकार 1918 में प्लेग महामारी में गुलाब की मृत्यु हो गई. हरिलाल के पांच बच्चे हुए लेकिन उनमें से ज़्यादातर का जीवन भी संघर्ष और दुखदायी रहा

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