Last Updated:March 23, 2025, 11:24 IST
Martyr Day 2025: PM नरेंद्र मोदी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि दी. भगत सिंह ने 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था, लेकिन क्या आपको पता...और पढ़ें

शहीद भगत सिंह: क्रांति की मशाल और उनकी जीवन यात्रा.
हाइलाइट्स
प्रधानमंत्री मोदी ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को श्रद्धांजलि दी.भगत सिंह ने 1929 में असेंबली में बम फेंका.क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी.शहीद भगत सिंह का नाम सुनते ही आंखों में क्रांति की आग और कानों में ‘इंकलाब जिंदाबाद’ की गूंज छा जाती है. आज 23 मार्च है और आज ही के दिन 1931 में भगत सिंह को फांसी हुई थी. भगत सिंह को जॉन सॉन्डर्स और चन्नन सिंह की हत्या का दोषी ठहराया गया और वो 23 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बान हो गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि दी.
क्रांति की पाठशाला
भगत सिंह का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में हुआ था. भगत सिंह जाट सिख परिवार से थे. उनका परिवार आजादी की लड़ाई में सक्रिय था. उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष के कारण जेल गए थे.
बचपन तो हम सबका बीतता है खेल-कूद में, पर भगत सिंह का बचपन कुछ अलग ही मिट्टी का बना था. पंजाब की सरजमीं पर पैदा हुए भगत सिंह का परिवार ही क्रांति की पाठशाला था. जैसे कि हमने आपको बताया कि पिता और चाचा दोनों आजादी की लड़ाई में जेल की सलाखों के पीछे जा चुके थे. अब ऐसे माहौल में पला-बढ़ा बच्चा क्या करेगा? जाहिर है, वो भी वही करेगा जो उसके घर के बड़े कर रहे थे – यानी क्रांति की राह पकड़ेगा.
लेकिन ये जुनून कब और कैसे उनके अंदर आया? बात 1919 की है, जब जलियांवाला बाग में फिरंगी हुकूमत ने गोलियों की बारिश कर दी थी. जब भगत सिंह 12 साल के थे, जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ. ब्रिटिश फौज ने निर्दोष लोगों पर गोलियां चला दीं. कई मासूम लोग मारे गए और यहीं से भगत सिंह के दिल में ऐसी चिंगारी भड़क उठी, जो कभी बुझी ही नहीं.
भगत सिंह की पढ़ाई गांव के स्कूल से शुरू हुई. बाद में, उन्होंने लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में पढ़ाई की, जिसे आर्य समाज चलाता था. पहले, वो महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़े, लेकिन 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद जब गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया, तो भगत सिंह ने सशस्त्र क्रांति के रास्ते पर चलने का फैसला किया.
क्रांतिकारी गतिविधियां और बड़े कदम
भगत सिंह ने अपनी क्रांतिकारी यात्रा की शुरुआत हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से की. उनकी सलाह पर इसे बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) नाम दिया गया. 1926 में, उन्होंने युवाओं को संगठित करने के लिए नौजवान भारत सभा बनाई.
17 दिसंबर 1928, भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश अफसर जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी. दरअसल, उनका निशाना एसपी जेम्स स्कॉट था, जिसने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज कराया था. इस हमले में लाला जी की जान चली गई थी. भगत सिंह और उनके साथियों ने इसे इंसाफ का बदला बताया. इस दौरान, चंद्रशेखर आजाद ने चन्नन सिंह नाम के अफसर को भी मार गिराया.
भगत सिंह एक्टिंग भी करते थे
स्कूल की पढ़ाई निपटाने के बाद भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया. अब यह कोई मामूली कॉलेज नहीं था. यह तो देशभक्तों का कारखाना था, जहां छात्रों को किताबों के साथ-साथ इंकलाब की घुट्टी भी पिलाई जाती थी. भगत सिंह पर भी इसका असर हुआ, और फिर क्या था—देशभक्ति का रंग चढ़ गया.
भगत सिंह का मन थिएटर और लेखन में भी लगता था. वो नाटक लिखते भी थे और बढ़िया एक्टिंग भी कर लेते थे. 1928 में लाला लाजपत राय पर साइमन कमीशन के विरोध के दौरान अंग्रेजों ने बेरहमी से लाठियां बरसाईं. लाला जी के ये घाव इतने गहरे थे कि कुछ समय बाद ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
भगत सिंह और उनके साथियों का खौल गया. उन्होंने ठान लिया कि इस अन्याय का जवाब देना है और फिर हुआ वो, जो इतिहास में दर्ज हो गया—ब्रिटिश अफसर जॉन सांडर्स को गोली मार दी गई. अब यह काम तो हो गया, लेकिन असली टेंशन थी लाहौर से बचकर निकलने की.
यहीं आया भगत सिंह का थिएटर का हुनर काम. भगत सिंह ने गजब का दिमाग लगाया—एकदम अंग्रेजों की नाक के नीचे से साहब बनकर निकल गए. सिर पर हैट, स्टाइलिश कोट और हाथ में अखबार. कहा जाता है कि उन्होंने ने अपने बाल कटवा लिए, दाढ़ी-मूंछ साफ कर दी.साथ में थीं दुर्गा भाभी, जिनकी गोद में उनका छोटा सा बच्चा था. किसी को शक तक नहीं हुआ कि ये वही भगत सिंह हैं, जिनकी तलाश में अंग्रेज शहर छान मार रहे थे.
दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था. उनका मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार को यह दिखाना था कि भारतीय क्रांतिकारी अब चुप नहीं बैठेंगे. इस बम धमाके के जरिए उन्होंने “बहरे कानों तक अपनी आवाज पहुंचाने” की कोशिश की थी.
कौन सा बिल पास हो रहा था?
जिस दिन भगत सिंह और दत्त ने बम फेंका, उस दिन “पब्लिक सेफ्टी बिल” और “ट्रेड डिस्प्यूट बिल” पर चर्चा हो रही थी. ट्रेड डिस्प्यूट बिल पहले ही पास हो चुका था, जिसमें मजदूरों की हड़ताल पर रोक लगा दी गई थी. पब्लिक सेफ्टी बिल ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार देता था कि वे किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार कर सकते थे.
बम फेंकने के बाद क्या हुआ?
जैसे ही असेंबली में “पब्लिक सेफ्टी बिल” पर चर्चा शुरू हुई, दोनों ने पब्लिक गैलरी से बम फेंक दिया. बम इस तरह बनाया गया था कि कोई मरे नहीं, सिर्फ आवाज और धुआं हो ताकि अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराया जा सके. बम फेंकते ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने “इंकलाब जिंदाबाद!” के नारे लगाने शुरू कर दिए. वे भाग सकते थे, लेकिन उन्होंने खुद को गिरफ्तार करवा दिया ताकि वे अपने विचारों को जनता तक पहुंचा सकें.
भगत सिंह की भूख हड़ताल
क्रांतिकारी बाहर ही नहीं, जेल में भी लड़ते हैं. जेल में भगत सिंह ने देखा कि अंग्रेज कैदियों को बेहतरीन खाना और सुविधाएं मिलती हैं, जबकि भारतीय कैदियों को जानवरों से भी बदतर हालात में रखा जाता है. अब वो चुप कैसे रहते? शुरू कर दी 116 दिन की भूख हड़ताल. पूरे मुल्क में खलबली मच गई और हुकूमत हिल गई.
मुकदमा, फांसी और शहादत
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर लाहौर षड्यंत्र केस चला. 7 अक्टूबर 1930, उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. 23 मार्च 1931, तय समय से 11 घंटे पहले, अंग्रेज़ों ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया. फिर उनके शवों को हुसैनीवाला ले जाकर गुप्त रूप से सतलुज नदी में बहा दिया.
क्रांति की किताबें: भगत सिंह का पुस्तक प्रेम
भगत सिंह बहुत किताबें पढ़ते थे. उनकी लाइब्रेरी में क्रांति और समाजवाद पर ऐसी किताबें भरी पड़ी थीं कि बड़े-बड़े विद्वान भी दंग रह जाएं. कार्ल मार्क्स, लेनिन, और फ्रेडरिक एंगेल्स की किताबें उनकी सोच को धार देती रहीं.
भगत सिंह और सोवियत क्रांति का असर
भगत सिंह सिर्फ भारत के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित नहीं थे, बल्कि दुनिया भर के आंदोलनों को भी पढ़ते थे. रूसी क्रांति और लेनिन की विचारधारा से वो इतने प्रभावित थे कि जब उन्हें फांसी दी जाने वाली थी, तब भी वो लेनिन की किताब पढ़ रहे थे.
First Published :
March 23, 2025, 11:24 IST